साहस सौन्दर्य का सर्वोत्तम स्वरूप है और शिथिलता मुर्दों की परिभाषा। हार निश्चित होने के बाद भी रण में अड़े रहना अभिमन्यु जैसे अमर वीरों की निशानी है, जबकि विश्व के सर्वोत्तम योद्धाओं से सुसज्जित होने के बावजूद भी सहायता हेतु चीख-पुकार मचाना कायर जयद्रथ की। आज के उभरते परिस्थिति में हिंदुओं को इन्हीं सिद्धांतों और व्यक्तियों में से किसी एक को चुनना पड़ रहा है। पर, हम क्या चुन रहें है? हम चुन रहे हैं कायरता और पलायन। कहते हैं जब अस्तित्व और अस्मिता पर प्रश्नचिन्ह उठता है, तब इंसान तो क्या जानवर भी प्रतीकार कर देते हैं। पर, हिंदुओं ने कायरता और पलायन के साथ-साथ अस्तित्व परिवर्तन और धर्मांतरण को चुना! लेकिन आखिर कब तक? कश्मीर, कैराना, मुजफ्फरनगर, बंगाल, पंजाब, असम, भैंसा, केरल, कर्नाटक, संभल, आंध्रा, हैदराबाद और ये सूची अंतहीन रूप से बढ़ती जाती है, पर हिन्दू समुदाय भागते-भागते नहीं थकता।
ये तो अपने देश का हाल है, अगर पाक, बांग्लादेश और अफगानिस्तान की बात करें, तो ये सूची वास्तव में आपको अनंत से अवगत करने का माद्दा रखते हैं। न तो हमारे पांव थकते हैं और न ही हमारी जमीर जागता है। बस, हम घर बार छोड़कर पलायन कर जाते हैं। स्वयं सोचिए, क्या होगा यदि कोई आपके घर पर अवैध रूप से कब्जा कर लेता है? क्या आप अपनी मेहनत की कमाई छोड़ देंगे या अपने हक के लिए लड़ेंगे? यही हिंदुओं को सीखने की जरूरत है। यह सही समय है कि वे एक विकल्प के रूप में पलायन को चुनना बंद कर दें और इसके बजाय जो उनका है उसके लिए संघर्ष करें। हिन्दुओं की घटती जनसंख्या और उनके एक स्थान से दूसरे स्थान पर पलायन की प्रवृति एक दिन उनके भागने का स्थान और मार्ग दोनों बंद कर देगी।
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कश्मीर से कैराना तक: हिन्दुओं का पलायन भारत ने देखा
19 जनवरी 1990 की अंधेरी रात में भयानक परिदृश्य देखा गया, जब कश्मीरी मुसलमान घाटी की मस्जिदों में इकट्ठा होकर भारत-विरोधी और पंडित-विरोधी नारे लगाने लगे। सैकड़ों निर्दोष पंडितों को प्रताड़ित किया गया, मार डाला गया और उनकी बहन-बेटियों का बलात्कार किया गया। तब हिंदुओं ने क्या किया? घाटी में इस्लामी आतंकवाद के उदय के बाद, कश्मीरी हिंदुओं के पास जाने के अलावा कोई विकल्प नहीं था। जम्मू-कश्मीर स्टडी सेंटर की रिपोर्ट के अनुसार, मार्च 1990 तक घाटी में रहने वाले 90 प्रतिशत से अधिक हिंदुओं ने अपना घर छोड़ दिया था। 1986 और 1990 के बीच 700,000 से अधिक कश्मीरी पंडितों को अपना घर और संपत्ति छोड़नी पड़ी।
भारत लंबे समय से हिंदुओं का पलायन देख रहा है। इससे पहले वरेष 2016 में टीएफआई द्वारा रिपोर्ट किया गया था कि 346 हिंदू परिवारों को कथित तौर पर ‘शांतिपूर्ण’ समुदाय से बार-बार मौत की धमकी मिलने के बाद शामली जिले के एक छोटे से शहर कैराना, यूपी छोड़ने के लिए मजबूर किया गया था। अप्रत्याशित रूप से, शहर में उक्त समुदाय की 85 फीसदी आबादी है। कश्मीर सिंड्रोम यानी विशेष समुदाय द्वारा अपने खिलाफ ठोस हमलों के बाद हिंदुओं का सामूहिक पलायन का रोग पश्चिम बंगाल में भी लौट आया, जब चुनाव पश्चात हिंदुओं ने असम में शरण ली।
बंगाल से पलायन
ध्यान देने वाली बात है कि बंगाल के आसनसोल जिले से भी हिंदुओं का पलायन देखने को मिला है। आसनसोल में भारी हिंसा के बाद मुसलमानों ने स्थानीय किराने का सामान और सब्जी मंडियों को जलाकर राख कर दिया था और हिंदुओं ने प्रतीकार करने के बजाय पलायन करना शुरू कर दिया। बंगाल में बड़े पैमाने पर गुंडागर्दी और मौजूदा मुख्यमंत्री ममता बनर्जी द्वारा किए जा रहे खुले अल्पसंख्यक तुष्टीकरण के कारण हिंदुओं को अपना घर छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा। मौजूदा समय में राज्य में कानून-व्यवस्था की कीमत हिंदुओं का समूहिक पलायन बन चुकी है।
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प्रिय हिन्दुओं! अपने हक के लिए लड़ो
ऐसा लगता है कि कई लोगों ने विलुप्त होने के अपने भाग्य को स्वीकार कर लिया है। और इस प्रकार, उन्होंने जीवित रहने के लिए पलायन का सहारा लिया है। लेकिन, अब समय आ गया है कि वे ‘Survival Fittest’ के सिद्धांत को पढ़ें। जीवित रहने के लिए, किसी को अपने अधिकारों के लिए लड़ने की जरूरत है। हिंदू सरकार से मांग करते रहते हैं कि अपराधियों के खिलाफ कार्रवाई की जाए, ताकि पीड़ितों को न्याय सुनिश्चित किया जा सके। लेकिन उन्हें इस बात का एहसास नहीं है कि हिंदुओं को उन इलाकों में आत्मरक्षा का अभ्यास करना चाहिए, जहां उन्हें लगता है कि उन्हें धार्मिक नरसंहार का खतरा हो सकता है। भले ही सरकार हिंदुओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए उत्सुक है, व्यक्तिगत सुरक्षा और गरिमा को लोगों के संगठन या सरकार को आउटसोर्स नहीं किया जा सकता है। स्व प्रतिरक्षा का अधिकार हमारा संवैधानिक अधिकार है, हिंदुओं को यह बात समझनी होगी, वरना आये दिन उनकी दुर्गति होती रहेगी।