यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद वहां कई देशों के नागरिक फंस गए हैं। भारत सरकार ने अपने नागरिकों को निकालने के लिए ऑपरेशन गंगा शुरू किया है। बड़े पैमाने पर भारतीय नागरिकों को बस तथा अन्य यातायात के साधनों के माध्यम से यूक्रेन से बाहर निकालकर यूक्रेन के पड़ोसी देशों में भेजा जा रहा है। यूक्रेन में भारतीय दूतावास इस पूरी प्रक्रिया की निगरानी कर रहा है और रोमानिया के लिए भारत से लगातार एयर इंडिया की फ्लाइट उड़ान भर रही है। भारतीयों को जारी की गई एडवाइजरी में कहा गया है कि वह जिस भी वाहन से यूक्रेन के बाहर निकल रहे हों उसके फ्रंट पर भारत का झंडा लगा दें, जिससे यूक्रेन अथवा रूस, दोनों पक्षों में कोई भी उनकी गाड़ी को कोई नुकसान न पहुंचाएं। एयर इंडिया ने अब तक रोमानिया की राजधानी बुखारेस्ट से लगभग 500 भारतीयों को सुरक्षित भारत पहुंचा दिया है।
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जानें क्या है पूरा मामला?
एक और भारत सरकार अपने लोगों को यूक्रेन से सुरक्षित निकालने के लिए तेजी से अभियान चला रही है, वहीं दूसरी ओर कथित महाशक्ति अमेरिका ने अपने नागरिकों को एडवाइजरी जारी करके यह कहा है कि वह उन्हें यूक्रेन से निकालने में सक्षम नहीं है। एडवाइजरी में स्पष्ट रूप से लिखा गया है कि “अमेरिकी सरकार यूक्रेन से अमेरिकी नागरिकों को निकालने में सक्षम नहीं होगी। कृपया समीक्षा करें कि विदेशों में संकट में आपकी सहायता के लिए US सरकार क्या कर सकती है और क्या नहीं। अमेरिकी नागरिक पड़ोसी देशों में अमेरिकी दूतावासों और वाणिज्य दूतावासों में प्रत्यावर्तन ऋण, पासपोर्ट और वीजा सेवाओं के अनुरोध सहित काउंसलर सेवाओं की मांग कर सकते हैं।”
United States in its latest travel advisory tells its citizens in Ukraine that it won’t be able to evacuate them during this crisis.
India has also ready rescued over 469 Indian citizens from Ukraine and almost 15000 more to go in coming days.
What happened to the Super Power? pic.twitter.com/CBbMzbyDKC
— Aditya Raj Kaul (@AdityaRajKaul) February 26, 2022
न केवल महाशक्ति अमेरिका अपने लोगों को यूक्रेन से निकालने में असफल है, बल्कि अमेरिका ऐसा पहला देश था जिसने युद्ध शुरू होते ही अपने दूतावास को यूक्रेन की राजधानी कीव से पश्चिमी यूक्रेन में स्थानांतरित कर दिया था। ऐसे में महाशक्ति में कितनी शक्ति बची हुई है। जबकि भारत ने युद्ध छिड़ने के बाद भी यूक्रेन में अपने दूतावास को बंद नहीं किया, बल्कि हंगरी जैसे पड़ोसी देशों से भारतीय दूतावास के कर्मचारियों को यूक्रेन में फंसे भारतीयों की मदद के लिए युद्धग्रस्त क्षेत्र में भेज दिया। अमेरिका जिस प्रकार अफगानिस्तान से भागा था और अब जिस प्रकार उसने यूक्रेन को उसके हाल पर छोड़ दिया है, उसने अमेरिका की महाशक्ति वाली छवि को भारी नुकसान पहुंचाया है। पहले भी देखा गया है कि अमेरिका किसी संकट को शुरू तो करता है, किंतु जब संकट बड़ा होने लगता है तो अमेरिकी प्रशासन और सेना बीच में ही भाग खड़ी होती है। अपने सहयोगी देशों के संबंध में अमेरिका का यह व्यवहार सर्वविदित है।
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अमेरिका ने अपनी विश्वसनीयता को कर दिया है कमजोर
ध्यान देने वाली बात है कि अमेरिका ने वर्षों तक अफगानिस्तान में लोकतंत्र की रक्षा के लिए अपनी प्रतिबद्धता जाहिर की, किंतु जब अमेरिका ने पीछे हटने का निर्णय लिया, तो यह सब इतना अव्यवस्थित ढंग से किया गया कि अफगानिस्तान की रक्षा के लिए बनाई गई नेशनल आर्मी को संभलने का मौका ही नहीं मिला। यदि अमेरिका भारत जैसे सहयोगी देशों के साथ बात करके अफगान नेशनल आर्मी को तालिबान के विरुद्ध सैन्य सहयोग देता रहता, तो तालिबान को इतनी आसानी से विजय हासिल नहीं होती। जिस प्रकार अमेरिका ने अफगानियों को वर्षों तक लोकतंत्र के सुनहरे भविष्य के सपने दिखाए, उसी प्रकार यूक्रेन को नाटो की शक्ति का आश्वासन दिया, किंतु संकट की स्थिति में यूक्रेन को उसी के हाल पर छोड़ दिया। मौजूदा समय में अपने नागरिकों की सुरक्षा के लिए आगे न आकर बाइडन प्रशासन ने अमेरिका की विश्वसनीयता को और भी कमजोर किया है।