उदारवादियों और वामपंथी मीडिया में योगी आदित्यनाथ का ऐसा डर था कि उन्होंने मौजूदा सरकार को बदनाम करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। सीएम योगी द्वारा किए गए विकास कार्यों को नजरअंदाज करते हुए उदार मीडिया ने बीजेपी और यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ को फालतू के मुद्दे में फंसाने के लिए अपना सबकुछ दांव पर लगा दिया। वह उम्मीद कर रहे थे कि इससे भाजपा को बुरी तरह से नुकसान होगा और भाजपा बुरी तरह पराजित होगी। पर, हुआ इसके ठीक उलट और पार्टी ने उत्तर प्रदेश सहित चार राज्यों में प्रचंड बहुमत से जीत हासिल की है।
इस लेख में हम आपको उन पांच प्रमुख मुद्दों के बारे में बताएंगे जिनका इस्तेमाल वामपंथी मीडिया योगी सरकार पर हमला करने के लिए करते थे। हालांकि, यह विफल रहा।
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हाथरस रेप केस
क्या आपको हाथरस सामूहिक बलात्कार कांड याद है? एक 19 वर्षीय पीड़िता के साथ चार लोगों ने उसके पैतृक गांव में समूहिक बलात्कार किया जिसके बाद लड़की ने दम तोड़ दिया। मीडिया ने इस मुद्दे को खूब उछाला। आरोपियों को सज़ा दिलाने के बजाए इसे राजनीतिक कोण देने की कोशिश की गयी। इसमे योगी सरकार की विफलता, दलितों पर बर्बरता और विधि व्यवस्था को लेकर फैली अराजकता फैलाई गयी। मीडिया के लिए तो हाथरस जैसे तीर्थ हो गया। योगी सरकार के खिलाफ बोलने के लिए उसके परिवार पर दबाव डाला गया। जिसके कारण विधि व्यवस्था बनाने के लिए योगी सरकार ने आनन-फानन में उसका अंतिम संस्कार किया। पर, जनता सब जानती है। वो तनिक भी दिग्भ्रमित नहीं हुई और मीडिया के राजनीतिक उद्देश्य को विफल कर दिया। जनता देख रही थी की मीडिया कैसे काँग्रेस शासित राज्यों के मामलों को ढक रही थी और हाथरस मामले को उठा रही थी, ये जानते हुए भी की योगी सरकार ने दलितों के उत्थान और सामाजिक न्याय के लिए दिन रात एक कर दिया है। जनता यह भी जानती थी की कैसे भाजपा के शासन में कानून व्यवस्था सुदृढ़ हुई है और बलात्कार के मामले कम हुए हैं। अंततः, जनता ने योगी सरकार भरोसा जताते हुए भाजपा के सभी विधान सभा सीटों पर भाजपा प्रत्याशियों को करीब 50 हज़ार मतों के औसत अंतर से जिताया चाहे वो सिकनदार राव का इलाका हो या फिर शादाबाद आया फिर खुद हाथरस।
लखीमपुर खीरी कांड
आर्यन खान ड्रग स्कैंडल को ढंकने के प्रयास में लुटियंस मीडिया ने लखीमपुर खीरी की घटना को किसान विरोधी घटना के रूप में स्थापित करने का प्रयास किया। इसे मोदी सरकार में एक मंत्री द्वारा जानबूझकर किया गया नरसंहार बताया गया। लेकिन, हकीकत कुछ और ही थी। 3 अक्टूबर 2021 को नकली किसानों ने उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी में हंगामा किया, जिसने आगे एक बदसूरत मोड़ ले लिया जिसमें चार किसानों, चार भाजपा कार्यकर्ताओं और एक पत्रकार सहित नौ से कम लोगों की मौत हो गई। इसे दो गुटों में लड़ाई की जगह मोदी सरकार द्वारा जनित किसान नरसंहार के रूप में दिखाया गया। हालांकि, जनता के जागरूकता ने इसे भी विफल कर दिया और लखीमपुर जिले के 6 की 6 विधानसभा सीटों पर भाजपा विधायक प्रचंड बहुमत से जीते।
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किसानों का प्रदर्शन
इसी तरीके से किसान आंदोलन को भी भाजपा के विरुद्ध एक क्रांति के रूप में पेश किया गया, जबकि किसान यह जानते थे की कृषि कानून किसानों के हक में लाया गया मोदी सरकार द्वारा एक सुधारवादी कदम है। सारे राजनीतिक पंडित नित नए गुणा गणित लगाकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भाजपा के खिलाफ लहर की भविष्यवाणी कर रहे थे और उनका आधार किसान आंदोलन के साथ-साथ जाट समाज में फैले गुस्से को बता रहे थे। परंतु, जनता ने उन सारे राजनीतिक पंडितों की कपोल कल्पनाओं और भविष्यवाणियों को धता बताते हुए योगी सरकार के किसान समर्थित कदमों को खूब सराहा। योगी सरकार द्वारा गन्ना किसानों को दिए जाने वाले समर्थन मूल्य में बढ़ोतरी से भी किसान काफी खुश थे। इतना ही नहीं पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जाटलैंड में भी मतों की खूब बढ़ोतरी हुई और जाटों के मत प्रतिशत में भी अप्रत्याशित रूप से बढ़ोतरी देखने को मिली है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अपना झंडा गाड़ के हुए भगवा पार्टी ने आधे से अधिक सीटों पर अपना कब्जा जमाया और राजनीतिक पंडितों को यह बताया कि किसान यह समझ चुके हैं उनकी असली हितैषी योगी सरकार ही है। वैसे भी अब तो किसान नेता योगेंद्र यादव ने भी स्वीकार कर लिया की किसान आंदोलन का असल उद्देश्य भाजपा के खिलाफ सपा को चुनावी जमीन तैयार कर के देना था।
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प्रवासी संकट
वुहान वायरस महामारी के मद्देनज़र प्रवासी कामगारों पर सबसे ज़्यादा मार पड़ी। उनके दुखों को उनकी संबंधित राज्य सरकारों द्वारा दिखाई गई उदासीनता से और बढ़ा दिया गया है। जहां दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल और बिहार के सीएम नीतीश कुमार ने प्रवासियों की मदद करने से इनकार कर दिया, वहीं योगी सरकार ने सुनिश्चित किया कि उनका सही इलाज हो। वित्तीय सहायता प्रदान करने से लेकर नियमित जांच तक, यूपी सरकार ने प्रभावी ढंग से प्रवासी संकट को प्रभावी ढंग से संभाला।
हालांकि, यह उदार मीडिया ही था जिसने सीएम योगी पर हमला करने का मौका नहीं छोड़ा और उन्हें ऐसे सीएम के रूप में चित्रित किया जो संकट का प्रबंधन नहीं कर सके। योगी सरकार को बदनाम करने के उनके प्रयासों के बावजूद, वे विफल रहे हैं क्योंकि भगवा पार्टी राज्य में प्रचंड बहुमत के साथ सत्ता में वापस आ गई। जनता ने यह समझा की महामारी से हुई त्रासदी एक प्रकृतिक आपदा थी पर जिसतरह से योगी सरकार ने इसका प्रबंधन किया वह अद्वितीय था।
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कोविड संकट
इससे पहले टीएफआई की रिपोर्ट के अनुसार, मीडिया ने प्रयागराज में शवों के अंबार को दिखाया जहां मुख्य रूप से बौद्ध धर्म के लोगों ने अपने प्रियजनों को दफनाया था। उक्त कब्रगाह के दृश्य इधर-उधर ऐसे चमक रहे थे जैसे नारंगी, पीले और लाल कपड़े से ढके शव कोविड-19 संकट का परिणाम हों। आजतक और बरखा दत्त ने सोचा कि भ्रामक गलत सूचना फैलाने से योगी बदनाम होंगे। हालांकि, यह सिर्फ प्रोपगैंडा प्रचार पोर्टल प्रतीत हुआ जो कि महाराष्ट्र, केरल और दिल्ली में बढ़ते मामलों से अनजान था। हालांकि, मतदाताओं को इसके बारे में पता था और यह विधानसभा चुनाव में भाजपा द्वारा हासिल किए गए वोट शेयर में दिखाई दे रहा था।
योगी आदित्यनाथ कोई साधारण मुख्यमंत्री नहीं हैं, जो पांच साल तक इस पद पर रहने के बाद लगातार कार्यकाल जीतने वाले पहले मुख्यमंत्री बने हैं। यह उदार मीडिया के मुंह पर एक कड़ा तमाचा है जो उन्हें नीचा दिखाने पर तुले हुए थे और यह तमाचा जनता नें अपने वोट से जड़ा है।
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