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रूस ने 1-2 बार नहीं पूरे 6 बार भारत को बचाने के लिए UN में किया है वीटो का इस्तेमाल

पश्चिमी देशों की आंखों में यूं ही नहीं लग रही मिर्ची

Aniket Raj द्वारा Aniket Raj
4 March 2022
in चर्चित
United Nation

Source- Google

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मित्रता निभाने में भारत का कोई सानी नहीं है। हम भारतीयों ने अपनी संस्कृति, विरासत और पुरुषों से यही सीखा है कि जान जाए पर मित्र पर कोई आंच ना आए। रामायण और महाभारत में भी यही लिखा है। राम ने अपने मित्र सुग्रीव को किष्किंधा का राज दिलाया, तो कृष्ण ने मित्रता का मान रखते हुए पांडवों को महाभारत का रण जिता दिया। यह ऐसा ही रण आज रूस और यूक्रेन के मध्य लड़ा जा रहा है। ऐसा लग रहा है मानव विश्व पुनः दो भागों में विभक्त हो चुका है। एक तरफ यूरोप और पश्चिमी देश हैं और दूसरी तरफ रूस खड़ा है।

ऐसे में इस प्रश्न की महत्ता अत्यंत बढ़ जाती है कि आखिर भारत किसके पक्ष में खड़ा है? इस मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र संघ के आपातकालीन सुरक्षा परिषद की विशेष बैठक बुलाई गई। सभी को लगा कि भारत रूस का पक्ष नहीं लेगा। पर, भारत ने मित्रता का मान रखते हुए रूस के विपक्ष में मतदान करने से इनकार कर दिया। इससे पश्चिमी देशों की आंखों में बहुत मिर्ची लगी। वैश्विक राजनीति के इस सबसे बड़े संकट में भी भारत जिस मजबूती के साथ रूस की ढाल बना हुआ है, वह पश्चिमी जगत के लिए हैरान करने वाला है। सबके मन में मात्र एक ही सवाल है कि आखिर भारत रूस के लिए पूरी दुनिया से लड़ने को क्यों तैयार है? इसका उत्तर हम आपको बताते हैं।

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आज भले ही पश्चिम आग बबूला हो रहा है, लेकिन एक समय था जब भारत संयुक्त राष्ट्र में पश्चिम के वीटो अत्याचार से बेजान था और हर बार सोवियत संघ भारत को बचाने के लिए अपनी वीटो शक्ति का इस्तेमाल करता था। वर्ष 1957 और 1971 के बीच, सोवियत संघ ने भारत को बचाने के लिए छह बार अपनी वीटो शक्ति का इस्तेमाल किया। आइये बताते हैं कब और कैसे?

और पढ़ें: यूक्रेन संकट के बीच मेडिकल छात्रों के लिए मोदी सरकार का बड़ा फैसला, अब सरकारी शुल्क पर ही चलेंगे निजी मेडिकल कॉलेज

20 फरवरी, 1957- जब संयुक्त राष्ट्र ने कश्मीर मामले में दखल देने की कोशिश की

अंग्रेजों के भारत छोड़ने के बाद कश्मीर ने भारत का हिस्सा बनने का फैसला किया। फिर भी, 20 फरवरी, 1957 को, ऑस्ट्रेलिया, क्यूबा, ​​​​यूके और अमेरिका एक प्रस्ताव लेकर आए, जिसमें UNSC अध्यक्ष से अनुरोध किया गया कि वो इस मामले में दखल दें। यह भारत के संप्रभुता पर प्रत्यक्ष हमला था। इस प्रस्ताव के मसौदे के अनुसार दोनों देशों की सेनाओं को भी पीछे हटाकर कश्मीर में अस्थायी संयुक्त राष्ट्र के सैनिकों की तैनाती का प्रस्ताव था। अमेरिका का इरादा कश्मीर को स्वतंत्र राष्ट्र बनाकर वहां की सरकार को अपना पिट्ठू बनाना था, ताकि वह भारत-चीन पर नज़र रख सके। मुस्लिम बहुल आबादी के कारण पाकिस्तान स्वाभाविक रूप से वहां सॉफ्ट पावर बन जात और अंततः भारत कश्मीर खो देता। पर, उस समय सोवियत संघ ने प्रस्तावित प्रस्ताव को वीटो कर भारत को बचा लिया।

18 दिसंबर, 1961- जब पश्चिम ने गोवा और दमन और दीव पर आक्रोश प्रदर्शित किया

वर्ष 1947 में भारत ब्रिटिश साम्राज्यवाद से तो स्वतंत्र हो गया, पर पुर्तगालियों को गोवा, दमन और दीव से बाहर खदेड़ने में 14 साल का समय और लगा। लेकिन पश्चिमी शक्तियां भारत में अपने साम्राज्यवादी एजेंडे के अंत को बर्दाश्त नहीं कर पा रही थी। इसलिए, फ्रांस, तुर्की, यूके और अमेरिका ने UNSC में भारत के खिलाफ प्रस्ताव लाकर भारत द्वारा गोवा सशस्त्र बलों के इस्तेमाल पर आपत्ति जताई थी। भारत को अपनी सेना को हटाने और 17 दिसंबर, 1961 से पहले की स्थिति को बहाल करने के लिए कहा गया था। चिली, चीन, इक्वाडोर, फ्रांस, तुर्की, यूके और यूएस ने प्रस्ताव का समर्थन किया था। हालांकि, सोवियत संघ ने वीटो करके पुनः भारत को बचा लिया।

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22 जून, 1962- कश्मीर का मुद्दा फिर उठा

22 जून, 1962 को कश्मीर मुद्दे का अंतरराष्ट्रीयकरण करने का एक और घिनौना प्रयास किया गया। अमेरिका के समर्थन से आयरलैंड सुरक्षा परिषद में एक प्रस्ताव लेकर आया, जिसमें भारत और पाकिस्तान से कश्मीर विवाद को सुलझाने के लिए कहा गया। दोनों देशों को सौहार्दपूर्ण समाधान हेतु अनुकूल माहौल बनाने के लिए कहा गया था। पुनः वह सोवियत संघ ही था, जिसने इस प्रस्ताव को वीटो कर भारत की संप्रभुता और अखंडता की रक्षा की।

4 दिसंबर, 1971- बांग्लादेश मुक्ति के दौरान युद्धविराम की मांग की गई

वर्ष 1971 के युद्ध में पाकिस्तान एक अपमानजनक हार की ओर बढ़ रहा था। पश्चिम स्वाभाविक रूप से चिंतित था। इसलिए, अमेरिकी नेतृत्व में भारत-पाक सीमा पर युद्धविराम घोषित करने के लिए एक प्रस्ताव लाया गया, ताकि पाक को हार से बचाया जा सके और बांग्लादेश की मुक्ति को रोका जा सके। अर्जेंटीना, बेल्जियम, बुरुंडी, चीन, इटली, जापान, निकारागुआ, सिएरा लियोन, सोमालिया, सीरिया और अमेरिका ने प्रस्ताव का समर्थन किया। लेकिन सोवियत संघ ने इस प्रस्ताव के विरूद्ध न सिर्फ वीटो शक्ति का प्रयोग किया, बल्कि पश्चिम और चीन को भी भारत की ओर आंख उठाकर देखने से रोका। इस युद्ध में जितने मोर्चे पर भारत लड़ा, उतने ही मोर्चे पर रूस ने भी लड़ाई लड़ी।

5 दिसंबर 1971- संघर्ष विराम के लिए शरणार्थियों का इस्तेमाल करने का प्रयास

अपने पहले प्रस्ताव के विफल होने के साथ अर्जेंटीना, बेल्जियम, बुरुंडी, इटली, जापान, निकारागुआ, सिएरा लियोन और सोमालिया के देशों ने एक और युद्धविराम का प्रस्ताव रखा। शरणार्थियों की वापसी सुनिश्चित करने का ढोंग करते हुए उन्होंने ऐसा किया। सोवियत संघ ने फिर से भारत के खिलाफ प्रस्ताव को वीटो कर दिया, जबकि अमेरिका ने प्रस्ताव का समर्थन किया।

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14 दिसंबर, 1971- सोवियत संघ ने भारत-पाक युद्ध के दौरान तीसरे प्रस्ताव को वीटो कर दिया

14 दिसंबर 1971 को पाकिस्तान को एक बड़े अपमान से बचाने के लिए पश्चिमी देशों मुख्य रूप से अमेरिका ने एक आखिरी हताशापूर्ण प्रयास किया। अमेरिका द्वारा प्रायोजित इस प्रस्ताव में कहा गया कि भारत और पाकिस्तान दोनों को अपनी सेना वापस खींचकर युद्धविराम की घोषणा करनी चाहिए। फिर से, कई देशों ने प्रस्ताव के पक्ष में मतदान किया, जबकि यूएसएसआर ने भारत के खिलाफ अमेरिका द्वारा प्रायोजित प्रस्ताव को फिर से वीटो कर दिया।

कुल मिलाकर रूस ने 6 बार वीटो कर भारत की एकता, अखंडता और सम्मान की रक्षा की, हमें यह नहीं भूलना चाहिए। एक भारतीय होने के नाते यह हमारे नैतिकता में नहीं है। हम भारतीय कृतज्ञता और मित्रता के भाव से भरे होते हैं। मित्र चाहे कितनी भी गलती करे, दुनिया के सामने उसका रक्षण करना हमारा फर्ज़ है, ज्ञान देने का काम तो पूरी दुनिया करती है!

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