कांग्रेस के अंत से खुल रहा है आप के राष्ट्रीय विपक्ष बनने का रास्ता

कांग्रेस कहीं की नहीं रही!

सबका टाइम आएगा, यही मंत्र आज के भारतीय राजनीति में चरितार्थ होता दिखायी देता है। जहां देश की सबसे पुरानी पार्टी होने के बावजूद कांग्रेस आज देश में हाशिए पर चली गई है तो वहीं कभी 2 सीटों पर रहने वाली भारतीय जनता पार्टी लगातार दूसरी बार देश में सरकार चला रही है और सबसे बड़ी पार्टी बन चुकी है। ऐसे में मुख्य विपक्षी पार्टी का भी तमगा हाथ के हाथ से सरकता दिख रहा है।

लोहा गर्म होते ही आप ने पंजाब में चला दिया हथौड़ा

अब देश में वो क्षेत्रीय पार्टियां जो राष्ट्रीय पार्टी बनने के सपने संजो रही थीं आज उनको अपने क्षेत्र और राज्य में ही संघर्ष करना पड़ रहा है, तो वहीं दूसरी तरफ वो दल जिसने नई मुख्य विपक्षी पार्टी बनने के लिए कमर कसती दिखायी दे रही है वो है “आम आदमी पार्टी।” यह अचंभे वाली बात नहीं है क्योंकि आज वो पंजाब में भी दिल्ली के 2015 और 2020 जैसे प्रचंड बहुमत को लाने में कामयाब रही। उसने सबसे पहले विपक्ष की भूमिका में पंजाब को 5 साल समझा और 2022 के चुनाव में लोहा गर्म होते ही हथौड़ा चला दिया।

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पंजाब में विधानसभा चुनाव जीतकर कुल 117 सीटों में 92 सीटों पर जीत दर्ज़ करने के बाद आम आदमी पार्टी का गढ़ राजधानी दिल्ली के बाद एक और राज्य पंजाब हो चुका है। यह कांग्रेस के लिए नई बात नहीं है क्योंकि वर्ष 2015 में भी आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस को दिल्ली से उखाड़ फेंका था, बिलकुल वही हाल पंजाब में इस बार देखने को मिला है। कांग्रेस की शीला दीक्षित सरकार को ‘शून्य’  पर ला देने का काम करने वाली आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस से उसका किला पंजाब भी छीन लिया। ऐसे में प्रश्न यह उठता है कि विपक्षी दलों में अब ऐसा कौन सा दल है जो राष्ट्रीय स्तर पर प्रमुख विपक्षी दल के रूप में उभरेगा क्योंकि कांग्रेस की हालत तो पतली ही होती जा रही है। एक ज़माने में सरकारों की संख्या गिनने वाली पार्टी अपने बचे-कूचे कुनबे को समेटने में संघर्ष करती दिख रही है तो ऐसे में विपक्षी दल का अगला स्वरूप कहीं आम आदमी पार्टी तो नहीं बन रही !

शीला दीक्षित सरकार को आप ने करा दिया था मौन

2013 में शीला दीक्षित ने आम आदमी पार्टी के चुनाव लड़ने के पहले चरण में यह कहा था कि कौन है यह “आप”? कौन है अरविन्द केजरीवाल? ‘यह कौन’, शीला दीक्षित की सरकार को कब मौन कर गया किसी को पता नहीं चला। 2013 के बाद से अपने उदय से ही शीर्ष पर पहुंचने की अभ्यस्त हो चुकी आम आदमी पार्टी शुरुआती दिनों से राष्ट्रीय मुद्दों की राजनीति कर अपने अस्तित्व को दिखाने में आगे दिखती थी। वह कभी भी एक क्षेत्र तक सीमित बातों की राजनीति करने से परहेज करती आई है। दिल्ली में दो बार प्रचंड बहुमत लाना कोई आसान काम नहीं था, अरविंद केजरीवाल ने हमेशा से साम-दाम-दंड-भेद वाली चाणक्य नीति का अनुसरण कर अपनी राजनीति चमकाने का काम किया।

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अपना उल्लू सीधा करने के लिए आम आदमी पार्टी गठबंधन से परहेज करने से कभी झिझकती नहीं थी, फिर चाहे वो पहले बार कि दिल्ली वाली 49 दिन की सरकार ही क्यों न हो। इससे यह पहली बार प्रदर्शित हुआ था कि आम आदमी पार्टी समावेशी राजनीति को इस कदर अपनाती है जैसे कि कोई चाहे कुछ भी बोले, अपना अंतिम लक्ष्य तो सत्ता प्राप्ति है।

पंजाब में आप का एकतरफा सेंधमारी

ऐसे ही दिल्ली में कांग्रेस को वनवास भेजने के बाद और अब पंजाब में प्रचंड बहुमत प्राप्त करने के उपरांत जिस प्रकार कांग्रेस शासित प्रदेश अब कांग्रेस विहीन हो रहे हैं ऐसे में अब आम आदमी पार्टी का स्वाभाविक उदय शुरू हो गया है। संविधान के अनुसार एक राष्ट्रीय पार्टी होने के लिए किसी भी दल को 4 राज्यों में अपनी राजनीतिक उपस्थिति दर्ज़ कराने के साथ ही 5 से 6 प्रतिशत वोट शेयर धारक होना आवश्यक होता है। ऐसे में दिल्ली के बाद पंजाब में एकतरफा सेंधमारी कर सरकार बना लेने के बाद उसके 2 राज्य तो पूर्ण रूप से पक्के हो गए, शेष अन्य राज्यों में भी जिस प्रकार आम आदमी पार्टी पैर पसार रही है यह मानदंड भी आम आदमी पार्टी शीघ्र पूर्ण कर लेगी ऐसा प्रतीत होता है।

यह आम आदमी पार्टी के लिए गर्व करने की और अन्य पार्टियों के लिए सीखने की बात होगी कि आम आदमी पार्टी में जिस नेता को जो जिम्मेदारी दी जाती है वो उसके लिए जुटकर काम करता है। ऐसे में अपने प्रभावशाली होने के बाद भी अरविंद केजरीवाल को यह डर सताता भी हो कि कल को मनीष सिसोदिया वर्चस्व कायम कर लें, संजय सिंह पार्टी का एकाधिकार न हड़प लें इसके बावजूद पार्टी में टूट के स्वर नहीं उष्मित होते क्योंकि वो सब अपने काम करने के लिए प्रतिबद्ध होते हैं। यह अन्य किसी भी पार्टी में देखने नहीं मिलता इसी कारण से धीमे-धीमे कछुआ चाल चलते हुए आम आदमी पार्टी कांग्रेस का पत्ता साफ कर अपना सिक्का बुलंद कर रही है।

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जैसे-जैसे पंजाब आम आदमी पार्टी ने अपने हाथ ले लिया, उसका अगला निशाना हिमाचल प्रदेश, गुजरात,राजस्थान जैसे राज्य हो सकते हैं जहां वो अपनी स्थिति पंजाब की तरह भुनाने में कब से जुटी पड़ी है। यह आम आदमी पार्टी के एक ध्येय पर काम कर रही टीम का ही परिणाम है जो वो एक-एक कर सभी विपक्षी दलों को क्षेत्रीय लड़ाई में भिड़ने के लिए छोड़ स्वयं राष्ट्रीय राजनीति का रुख कर रही है।

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