आम आदमी पार्टी प्रमुख अरविंद केजरीवाल कोई नेता नहीं, बल्कि एक राजनीतिक बहरूपिया हैं! जनता को मूर्ख बनाने में उनका कोई सानी नहीं है. केजरीवाल भ्रष्टाचार के खात्मे के नाम पर सत्ता में आए और भ्रष्टाचार के संरक्षक बन गए. राजनीति में न उतरने की कसम खाई लेकिन अब सत्ता प्राप्ति के लिए स्वतंत्र पंजाब के प्रधानमंत्री बनने में भी उन्हें कोई गुरेज नहीं है. उन्होंने जिन लोगों के नाम पर राजनीतिक सत्ता प्राप्त की उन्हीं को अपनी राजनीतिक पार्टी से बेदखल कर दिया. स्वच्छ राजनीति और आम आदमी को राजनीति की मुख्यधारा में लाने का वादा करने वाले केजरीवाल के 59 फ़ीसदी जनप्रतिनिधि न सिर्फ दागी हैं, बल्कि करोड़पति भी है. अगर आप की तरफ से राज्यसभा में भेजे जाने वाले जनप्रतिनिधियों का मूल्यांकन करें तो यही आंकड़ा 100% तक पहुंच जाता है.
इतना ही नहीं केजरीवाल ने हमें ऐसा दिग्भ्रमित किया कि वो हमें राजनीति के एक धर्मनिरपेक्ष छवि के राजनेता लगते हैं, लेकिन आप मानें या न मानें पर उनके जैसा सांप्रदायिक भारतवर्ष में नहीं है! पर क्या आपने कभी सोचा है कि ऐसा क्या कारण है कि केजरीवाल सांप्रदायिक होने के बावजूद हमें राजनीति के एक धर्मनिरपेक्ष छवि के नेता लगते हैं. आखिर ऐसा क्या कारण है कि ताहिर हुसैन और अमानतुल्ला खान सरीखे सांप्रदायिक नेताओं से सजी यह पार्टी धर्मनिरपेक्ष होने का झूठा भ्रमजाल बुन लेती है. इसका एक ही उत्तर है कि केजरीवाल नकाब ओढ़ने में माहिर है. जैसे राम मंदिर का खूब विरोध किया लेकिन मंदिर के बनने का मार्ग प्रशस्त होते ही बूढ़े लोगों को निशुल्क यात्रा की सुविधा मुहैया करा दी. पर वह कहावत है न कि नफरत और मोहब्बत ज्यादा देर तक छुपी नहीं रह सकती. अतः यदा-कदा केजरीवाल का नकाब उतरते रहता है और उनके तुच्छ उद्देश्यों का पर्दाफाश होते रहता है.
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केजरीवाल की घटिया और ओछी राजनीति
हाल ही में केजरीवाल का नकाब तब उतरा जब उन्होंने कश्मीर फाइल की आलोचना की और इसका प्रचार प्रसार एवं विज्ञापन करने वाले लोगों तथा बीजेपी के राजनेताओं को दिल्ली विधानसभा में खूब कोसा. उनकी इस निंदा ने न सिर्फ उनके मानसिक दिवालियापन बल्कि दोगलेपन का भी पर्दाफाश किया! विवेक अग्निहोत्री द्वारा निर्देशित कश्मीर फाइल्स का प्रमोशन करने के लिए भाजपा नेताओं का मजाक उड़ाने वाले केजरीवाल खुद यह भूल गए कि उन्होंने आर्टिकल 15 से लेकर सांड की आंख जैसी फिल्मों का प्रमोशन व्यक्तिगत स्तर पर अपने ट्वीट के माध्यम से किया है. आप स्वयं सोचिए एक अल्पसंख्यक समुदाय का मुस्लिम कट्टरपंथियों द्वारा बड़े पैमाने पर नरसंहार किया जाता है, उन्हें इतना सताया और तड़पाया जाता है कि वह अपनी मातृभूमि को छोड़कर अपने ही देश में शरणार्थी के रूप में रहने के लिए मजबूर हो जाते हैं और दिल्ली के गद्दी पर बैठा एक शख्स सत्ता के नशे में इतना चूर होता है वो न सिर्फ उनकी नरसंहार की मार्मिक कहानी को कर मुक्त करने का विरोध करता है, बल्कि उन पर किए गए अत्याचारों का भी मखौल उड़ाता है और वह भी भरी सदन के सामने.
आप स्वयं सोचिए कि अपनी घटिया और ओछी राजनीति के लिए केजरीवाल जिस तरह एक समुदाय के जख्मों पर नमक-मिर्च रगड़ रहे हैं क्या वह उचित है? किसी से यह बात नहीं छिपी कि केजरीवाल आखिर ऐसा क्यों कर रहे हैं. हम सब जानते हैं कि केजरीवाल ऐसा इसलिए कर रहे हैं ताकि मुस्लिमों का एक वर्ग उनसे नाराज न हो. लेकिन अगर यही केजरीवाल जम्मू के इलाके में मत मांगने जाएंगे तो कश्मीरी पंडितों के हितैषी बनकर जाएंगे. जनता के समक्ष भ्रम जाल बुनने का उनका यही सबसे कारगर मॉडल है. आप भले ही न माने तो यह बात कहीं नोट कर लें कि केजरीवाल जैसा छद्म, छलिया और बहरूपिया नेता इस देश में दूसरा कोई और नहीं है. उनका कोई ईमान नहीं है, उनका कोई धर्म नहीं है. सत्ता ही उनका एकमात्र सिद्धांत है.
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मूर्खता की पराकाष्ठा है केजरीवाल की मांग
कश्मीर फाइल्स के संदर्भ में दूसरी बात जो केजरीवाल ने कही है वो यह है कि अगर कश्मीरी पंडितों के प्रति सरकार और उसके निर्देशक विवेक अग्निहोत्री की इतनी ही संवेदना है तो वह इसे यूट्यूब पर क्यों नहीं डाल देते. केजरीवाल की यह मांग मूर्खता की पराकाष्ठा है. केजरीवाल को यह समझना चाहिए कश्मीरी पंडितों के दर्द के प्रति हमारे आज के युवाओं को जागृत करने के लिए इसका व्यापक स्तर पर प्रचार, प्रसार एवं विज्ञापन करना आवश्यक है। लेकिन इसके साथ-साथ भारत के इतिहास में दबी ऐसी चीखों को उजागर करने के लिए जरूरी है कि विवेक अग्निहोत्री जैसे निर्देशकों को प्रोत्साहन मिलता रहे ताकि भविष्य में ऐसी फिल्में बनती रहे. इसके लिए यही उपयुक्त है और शासन का इतना ही दायित्व भी है कि राज्य सरकार इसे कर मुक्त कर दे. पर नहीं, केजरीवाल को तो यह पिक्चर यूट्यूब पर देखनी है. अब केजरीवाल से यह सवाल कौन पूछे कि महिला हॉकी टीम पर चक दे इंडिया बनाने वाले कबीर खान ने महिला हॉकी टीम की उत्थान के लिए कितने पैसे दान में दिए या फिर सेना पर फिल्म बनाने वाले निर्देशकों ने सेना के आधुनिकीकरण और उत्थान के लिए कितनी राशि जमा कराई है.
केजरीवाल अपनी ही पार्टी को बर्बाद करने का पूरा प्रबंध कर चुके हैं!
दिल्ली में दोबारा प्रचंड बहुमत आने और पंजाब में प्रचंड जीत के बाद लोग आम आदमी पार्टी को कांग्रेस के स्थान पर मुख्य विपक्षी दल के रूप में देखने लगे थे, परंतु हाल के दिनों में केजरीवाल ने जनमानास से जुड़े मुद्दों पर अपनी जैसी राय और प्रतिक्रिया व्यक्त की है वह उनकी पार्टी को उसी स्थान पर पहुंचा देगी जहां से उन्होंने शुरू किया था। और सबसे खास बात यह है कि इस बार उन्हें उत्थान के कोई अवसर नहीं, बल्कि हमेशा पतन की पराकाष्ठा ही दिखेगी. निश्चित रूप से कश्मीर फाइल्स का विरोध करने, इसका विज्ञापन करने वालों का मजाक उड़ाने तथा कश्मीरी हिंदुओं का मजाक उड़ाकर उनके दर्द को कुरेदने के केजरीवाल के कुकृत्य का खामियाजा आम आदमी पार्टी को आगामी गुजरात और हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनाव में देखने को मिलेगा.
अब स्वयं याद करिए कि गोधरा में 59 कारसेवकों को जिंदा जलाए जाने के बावजूद भी जब सोनिया गांधी ने तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी को मौत का सौदागर कहा था तो गुजरात के लोगों ने उन्हें क्या सबक सिखाया था. केजरीवाल को यह समझना होगा कि भारतीय जनमानस कभी भी अहंकार और राष्ट्र के प्रति तिरस्कार को बर्दाश्त नहीं कर सकती. किंचित रूप से धीरे-धीरे कर केजरीवाल के चेहरे से यह नकाब उतरेगा. उनकी हिंदू विरोधी और राष्ट्र विरोधी मानसिकता पूर्ण रूप से पटल पर आ जाएगी और जनता उन्हें उनकी औकात और स्थान दोनों याद दिला देगी.
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