भाजपा ब्राह्मणों की पार्टी है, भाजपा पूंजीपतियों की पार्टी है और न जाने कितनों की पार्टी है। यह सब तथ्य देने वाले विपक्षी दल इस बार धराशाई हो गए, क्योंकि भाजपा को सबसे ज्यादा वोट प्रतिशत उन्हीं ग्रामीण क्षेत्रों से मिला है, जिनसे विपक्ष कहती थी कि भाजपा को उनसे कोई सरोकार ही नहीं है। इस बार सभी मिथ्या बातों पर बाबा का बुलडोजर चलने के साथ ही ये स्पष्ट हो गया कि भाजपा शहरी नहीं ग्रामीण अंचल से निकली पार्टी है, जिसका प्रत्यक्ष उदाहरण इस बार के विधानसभा चुनावों के नतीजे हैं। ध्यान देने वाली बात है कि अबकी बार भाजपा ने उत्तर प्रदेश के नतीजों में सर्वाधिक मत प्रतिशत ग्रामीण क्षेत्रों से हासिल किया है, ऐसे में उन सभी निराधार बातों पर पूर्णविराम लग गया जहां अब तक भाजपा को शहरी पार्टी बताया जाता था। इससे यह साबित हुआ कि भाजपा सिर्फ एक शहरी पार्टी नहीं है, यूपी की जीत से पता चलता है कि भाजपा ग्रामीण राजनीति में गहरी पैंठ बना चुकी है।
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ग्रामीण क्षेत्रों में भी भाजपा ने लहराया परचम
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों के नतीजे पूर्ण रूप से भगवामय होने के बाद जहां एक ओर यह साबित हुआ कि जनता का रुख राष्ट्रवाद वाली सोच से अलग नहीं हुआ है, तो वहीं अब तक जिन बातों का उलाहना विपक्ष दिया करता था उसका भी पर्दाफाश चुनावी नतीजों के सामने आने के बाद हो गया। वर्ष 2022 के इन विधानसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी (BJP) की जीत किसी के लिए भी आश्चर्य की बात नहीं थी और निश्चित रूप से उन लोगों के लिए भी नहीं, जिनके सूत्र जमीन पर थे। हालांकि, इसका पैमाना कुछ ऐसा था जिसकी कुछ ही लोगों को उम्मीद थी। भाजपा की जड़ें देश में व्यापक रूप से फैल रही थी, इसकी तीव्रता को कम करके आंका गया और उसे चुनौती देने वाले सभी तंत्रों की चुनाव बाद पोल ही खुल गई।
इस बार के विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को उत्तर प्रदेश के कुल 197 ग्रामीण क्षेत्रों से निर्णायक जीत का तमगा हासिल हुआ, जो समाजवादी पार्टी के हिस्से मात्र 90 तक ही सिमट कर रह गया। इसके साथ ही अर्ध-शहरी (Semi Urban) इलाकों में भी यह जीत भाजपा के लिए 45 तो सपा के लिए 15 इलाकों तक की सिमट कर रह गई। ऐसे में भाजपा विरोधी लहर का नामों निशान कहीं दिखाई नहीं दिया और तो और ग्रामीण इलाकों की जनता के मन में कितनी भाजपा विरुद्ध लहर है, विपक्षियों के ऐसे दावों की भी पोल पट्टी खुल गई। ऐसे में भाजपा के विरुद्ध शहरी पार्टी होने का नैरेटिव स्थापित करने के विपक्ष के हर प्रयास को जनता ने तिलांजलि देकर यह जता दिया कि उसका ये Narrative अब काम नहीं आएगा। ग्रामीण इलाकों में ऐसी बढ़त और किसी भी पार्टी के लिए फिलहाल मुश्किल जान पड़ती है।
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