स्मृति ईरानी : अभिनय से राजनीति तक एक अनोखा सफर

बड़े परिवारों का राजनीति से सफाया करने वाली ये हैं एक सशक्त महिला

स्मृति ईरानी

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भारत में अभिनेता से राजनेता बनने वालों की एक लंबी फ़ेहरिस्त है,  पर राजनीति में एक मुकाम तक पहुँच कर उसे बरकरार रख पाना सबके बस की बात नहीं है । फिर चाहे बात राजेश खन्ना की हो, या सुनील दत्त की या फिर गोविंदा की ये सभी कला के महारथी और सिल्वरस्क्रीन के सुपरस्टार तो बनने में कामयाब हुए पर राजनीति में इनका पदार्पण जितनी जल्दी हुआ उससे जल्दी इनकी राजनीति से विदाई हो गई। ऐसे में एक नाम जो इन सभी अभिनेताओं के बाद फिल्मी दुनिया से राजनीति में  आया फिर दिनों दिन उस चेहरे ने राजनीति में अपार सफलता  हासिल की और कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। यह चेहरा है उस महिला अभिनेत्री का जो मॉडल बन कर टीवी की दुनिया में कदम रखती है और बहु बन देश के सारे घरों में अपनी आदर्श बहु वाली छवि से ख्याति पाती है और बाद में यही अभिनेत्री, नेत्री बन सत्ता के रेड कार्पेट पर चलकर केंद्रीय मंत्री भी बनती है और देश के सबसे बड़े राजनीतिक परिवार के वंशज को कड़ी शिकस्त भी देती है, जी हाँ आप सही सोच रहे है यहाँ हम श्रीमती स्मृति ज़ुबिन ईरानी की बात कर रहे हैं ।

स्मृति ईरानी ने तोड़े कई मिथक  

लंबे समय से यह दावा किया जाता रहा है कि अभिनेता अच्छे राजनेता नहीं हो सकते, क्योंकि अभिनेता काल्पनिक भावनाओं के अनुसरण के लिए जाने जाते हैं। यद्यपि इस सिद्धांत को  स्मृति ईरानी ने धूल चटा दी और इस दावे के उलट उन्होंने राष्ट्रीय स्तर पर अपनी छाप बिखरने के साथ ही ये बता दिया कि ध्येय अडिग हो तो कुछ भी किया जा सकता है।  खैर, स्मृति ईरानी राष्ट्रीय स्तर पर राजनीति ऐसा कर रही हैं, जैसे कि उनका राजनीति से कोई पुराना नाता रहा हो। टीवी की ”आदर्श बहू”  से राजनीतिक दिग्गज तक की उनकी यात्रा  काफी उतार-चढ़ाव वाली रही किन्तु उन्होंने हमेशा राजनैतिक परिपक्वता को दर्शाया | स्मृति जुबिन ईरानी का जन्म 23 मार्च 1976 को एक बहु-सांस्कृतिक परिवार में हुआ था। उनका पैतृक पक्ष एक मराठी हिंदू परिवार था, जबकि उनकी मातृ प्रवृत्ति बंगाल से है।

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बचपन से ही उन्हें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के तत्वावधान में तैयार किया गया है। उनके दादा आरएसएस के स्वयंसेवक थे और उनकी मां जनसंघ की सदस्य थीं। स्मृति बचपन में मेधावी छात्रा थीं। हालांकि, अपने कॉलेज के दिनों में, सिनेमाई उद्योग ने उनका ध्यान आकर्षित किया। जिसके बाद उनका रुझान उसमें बढ़ा लेकिन समय काल परिस्थिति ऐसी कि उस दौरान पढाई के साथ-साथ एक होटल में वो वेट्रेस का काम किया करती थीं। इतने लचर हालातों में उन्होंने संघर्ष से कभी मुंह नहीं फेरा। यह कारण है जो आज स्मृति जुबिन ईरानी, नाम से कोई भी अनभिज्ञ नहीं है।

स्मृति का शूरुवाती जीवन 

स्मृति ने अपने करियर की शुरुआत सौंदर्य प्रतियोगिता मिस इंडिया 1998 में एक प्रतिभागी के रूप में की थी। उसी वर्ष, वह मीका सिंह के साथ “सावन में लग गई आग” एल्बम के एक गीत “बोलियां” में दिखाई दीं। बाद में उन्होंने आतिश, हम हैं कल आज और कल, स्टार प्लस पर क्योंकि सास भी कभी बहू थी, डीडी मेट्रो पर कविता जैसे विभिन्न टीवी धारावाहिकों में अभिनय किया। वह सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के लिए लगातार पांच भारतीय टेलीविजन अकादमी पुरस्कार जीतने का रिकॉर्ड रखती हैं।अपने बढ़ते करियर ग्राफ के बीच स्मृति ने वर्ष 2001 में पारसी बिजनेसमैन जुबिन ईरानी से शादी कर ली थी। इनके 2 बच्चे हैं। 2003 में, वह भाजपा में शामिल हो गईं। एक साल के भीतर ही, पार्टी ने उन पर 2004 के लोकसभा चुनाव में कपिल सिब्बल के विरुद्ध लड़ाने का भरोसा जताया। विभिन्न मुद्दों पर उनके वाक्पटु और आत्मविश्वासी रुख के कारण, उन्हें भाजपा की केंद्रीय समिति के कार्यकारी सदस्य के रूप में नामित किया गया था। ईरानी महिलाओं की सुरक्षा को चुनावी मुद्दा बनाने वाले चंद लोगों में से एक हैं। 2010 में उन्हें भाजपा महिला मोर्चा का  राष्ट्रीय अध्यक्ष नियुक्त किया गया था। जिसके बाद उनकी राजनीतिक उद्गमता को कोई नहीं रोक पाया।

राजनैतिक जीवन का महत्वपूर्ण मोड़ 

स्मृति ईरानी हमेशा देश में सम्मान और सम्मान के साथ रहने के महिलाओं के अधिकारों की मुखर समर्थक रही हैं। 2012 के दिल्ली गैंगरेप के मद्देनजर महिलाओं के लिए उनके लगातार समर्थन के कारण , उनकी राजनीतिक यात्रा को  तीव्रता मिली। वह 2014 के चुनावों में भाजपा के प्रमुख  महिला चेहरों में से एक के रूप में उभरीं। हालाँकि, ईरानी ने 2011 से ही राज्यसभा सांसद के रूप में संसद में योगदान देना शुरू कर दिया था | 2014 का आम चुनाव में वह चुनाव हार गयीं | 2014 के चुनावों को वास्तव में उनके राजनीतिक करियर का एक महत्वपूर्ण मोड़ कहा जा सकता है | क्योंकि अमेठी में राहुल गांधी से उनकी कड़ी टक्कर थी और क्योंकि यह सीट गांधी परिवार की परंपरागत सीटों में से एक थी, ऐसे में मुकाबला हार-जीत से बढ़कर हो गया था। हारने के बावजूद स्मृति ईरानी ने अमेठी में  डेरा डाला और अपने अथक प्रयासों से 2019 के  चुनावों में जीत अर्जित की |

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हारने के बावजूद भी श्रीमती ईरानी को मोदी सरकार के पहले मंत्रिमंडल में स्थान दिया गया था और पहला ही मंत्रालय उन्हें मानव संसाधन विकास मंत्रालय मिला।  मानव संसाधन विकास मंत्रालय के रूप में अपने दो साल के छोटे कार्यकाल में उन्होंने पूरी राजनीतिक परिपक्वता के साथ रोहित वेमुला की आत्महत्या और जेएनयू देशद्रोह मामले जैसे विभिन्न धारणाओं वाले मुद्दों को बखूबी  संभाला। कपड़ा उद्योग मंत्रालय में स्थानांतरित होने से पूर्व, ईरानी ने छह विश्वविद्यालयों में नए योग विभाग स्थापित करने की घोषणा की थी जोकि बहुत सराहा गया कदम था। जुलाई 2016 में उन्हें मोदी सरकार में कपड़ा मंत्री का दायित्व सौंपा गया था। उन्होंने अपने पद के लिए हितधारकों से सराहना प्राप्त की और 2019 के चुनावों के बाद भी, उन्हें यह पोर्टफोलियो फिर से सौंप दिया गया। उन्होंने 2017-18 के बीच केंद्रीय सूचना और प्रसारण मंत्री के कार्यभार को बखूबी संभाला था।

जमीनी कार्यकर्ता की छवि 

स्मृति ईरानी को जनता का इतना साथ यूँही नहीं मिला। अमेठी में  चुनाव हारने के बाद भी स्मृति जी वहां जमीनी स्तर पर जुडी रहीं। जब वो दिल्ली में कई मंत्रालय संभाल रही थीं, तब भी वह अमेठी के लोगों की सेवा करना नहीं भूलीं। दरअसल, उन्होंने अमेठी के लोगों की सेवा के लिए बहुआयामी रणनीति शुरू की थी। वह यह सुनिश्चित करने के लिए वहां थीं कि केंद्र और राज्य सरकार की योजनाओं का सभी लाभ वास्तविक लाभार्थियों तक पहुंचे।

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वह हर मोहल्ले में एक जाना-पहचाना चेहरा बन गयीं थी । वास्तव में, वह खुद राहुल गांधी की तुलना में अमेठी के लोगों के लिए अधिक सुलभ हो गयीं  थीं। अपने जमीनी काम से आश्वस्त, स्मृति ने 2019 के आम चुनावों में राहुल को अमेठी से  लिए फिर से चुनौती दी। शायद राहुल ने हार को भांप लिया था और इसीलिए उन्होंने अमेठी के अलावा केरल के वायनाड से भी लोकसभा चुनाव लड़ने का फैसला किया। और जैसे ही चुनाव परिणाम आए तो स्मृति ईरानी ने गांधी परिवार के वंशज को अमेठी से बाहर निकालने वाली पहली नेता बन चुकी थीं, और फिर उनका उदय होता ही चला गया।

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