अगर The Kashmir Files ने लिबरल्स को घाव दिए, तो RRR उस पर खूब नमक रगड़ रही है

लिबरलों की लंका लगी पड़ी है!

RRR & The Kashmir Files

Source- Google

बेचारे वामपंथियों के लिए तो मार्च का महीना किसी प्रलय से कम नहीं रहा है। अभी महीना खत्म होने में दो दिन शेष है,और वामपंथियों को राजनीति से लेकर सिनेमा के क्षेत्र तक इतने झटके लगे हैं कि उनकी हालत पतली हो चुकी है। पहले तो The Kashmir Files ने वामपंथियों को इतना छलनी किया कि वो सोते-जागते बिलबिलाते दिखते थे। अब RRR की प्रचंड सफलता और उसकी अनोखी विचारधारा ने वामपंथियों के उन घावों पर प्रेम से नमक रगड़ने का काम किया है, जो उसे ‘The Kashmir Files’ ने दिए थे।

हाल ही में कई वर्ष की प्रतीक्षा के बाद प्रदर्शित हुए बहुभाषीय फिल्म ‘रौद्रम रणम रुधिरम’ यानी ‘RRR’ भारत के स्वाधीनता आंदोलन के एक अनछुए पहलू पर आधारित है। राम चरण तेजा, नंदमुरी तारक रामराव जूनियर, अजय देवगन समेत कई अभिनेताओं से सजी इस फिल्म की मूल कथा अल्लुरी सीताराम राजू एवं कोमाराम भीम जैसे क्रांतिकारियों के उत्थान पर आधारित है। इसे सुप्रसिद्ध निर्देशक एस एस राजामौली ने निर्देशित किया है, जो ब्लॉकबस्टर हिट ‘बाहुबली’ जैसी फिल्में भी दे चुके हैं। इस फिल्म ने आते ही बॉक्स ऑफिस पर तहलका मचा दिया है और ओपनिंग वीकेंड में ही 550 करोड़ के बजट की तुलना में 500 करोड़ का वैश्विक कलेक्शन कर लिया है –

लिबरलों की लंका लगी पड़ी है!

परंतु ‘RRR’ में ऐसा क्या है, जिससे लिबरल्स तमतमाए तो हुए हैं, परंतु न उनसे निगलते बन रहा है और न ही उगलते? असल में ये फिल्म भारत के स्वाधीनता संग्राम पर आधारित है, जिसकी समयविधि 1920-21 के बीच की है। परंतु न तो कांग्रेस, न ही जवाहरलाल नेहरू और न ही मोहनदास करमचंद गांधी, यानी महात्मा गांधी का लेशमात्र भी उल्लेख किया गया है। इतना ही नहीं, इस फिल्म के अनुसार उस समय देश के सबसे महत्वपूर्ण नेता लाला लाजपत राय थे, महात्मा गांधी नहीं। परंतु, बात यहीं पर खत्म नहीं होती। फिल्म के अंत में एक गीत है, जिसमें भारत के नायकों का महिमामंडन हुआ है और जिसका नाम है ‘शोले’। इसमें देश के कई नायकों का गुणगान किया गया और ‘वन्दे मातरम’ के उस ध्वज का भी उपयोग हुआ, जिसका प्रयोग वीर सावरकर, रास बिहारी बोस जैसे क्रांतिकारियों ने किया था।

इस गीत में कई महानायकों और क्रांतिवीरों को नमन किया गया, ऐसे में नेताजी सुभाष चंद्र बोस, भगत सिंह को नमन करने में यह फिल्म कैसे पीछे रहती? लेकिन जब गुजरात के प्रतीक चिन्ह को चुनने की बारी आई, तो उन्होंने सरदार बल्लभ भाई पटेल को चुना, न कि मोहनदास करमचंद गांधी को। अब यह देखकर हर वामपंथी जमकर बिलबिला रहा है।

लेकिन बेचारे वामपंथी करें तो करें क्या, न राजामौली अन्ना के विरुद्ध कुछ बोल सकते हैं और न ही RRR के विरुद्ध कोई दुष्प्रचार कर सकते हैं। पहली बात तो राजामौली ऐसे लोगों को उतना ही सीरियसली लेंगे, जितना नरेंद्र मोदी, साकेत गोखले और राकेश टिकैत जैसे वामपंथियों की धमकियों को लेते हैं और दूसरी बात, इनका भी वही हाल होगा जो अभी कुछ हफ्तों से द कश्मीर फाइल्स के विरुद्ध दुष्प्रचार करने वाले हर व्यक्ति का हो रहा है। विश्वास न हो रहा हो तो दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल से पूछ लीजिए। वास्तव में RRR और द कश्मीर फाइल्स की प्रचंड सफलता ने वामपंथियों को ऐसा दर्द दिया है कि उन्हें उबरने के लिए महीनों छोड़िए, युगों लग जाएंगे। लेकिन ये तो अभी प्रारंभ है, क्योंकि यह वर्ष अभी खत्म नहीं हुआ है और ‘मेजर’ समेत कई ऐसी फिल्में हैं, जो वामपंथियों की खबर लेने के लिए पूरी तरह तैयार खड़ी हैं।

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