मजहब के नाम पर देश बना लेकिन जरा सोचिए कितनी शर्म की बात है अगर किसी मजहब के ठेकेदार आप को दरकिनार कर दें। जी हां हम बात कर रहे हैं पाकिस्तान की जिसे भीख में 2 सिक्के मिलना तो नसीब नहीं लेकिन सपने तो वो मुस्लिम उम्माह का शासक बनने का देख रहा है।
रूस भारत के नजदीक
अंतर्राष्ट्रीय मंच पर भारतीय कूटनीति के बढ़ते रसूख को देखकर पाकिस्तान तिलमिलाया हुआ है। आए दिन आम जनसभाओं में रोते हुए इमरान खान भारतीय कूटनीतिक ताकत का डंका बजाते रहते हैं। उन्हें सबसे बड़ा दुख तो इस बात का है कि गुटनिरपेक्ष विदेश नीति होने के बावजूद भी रूस भारत के नजदीक है और अमेरिका भी भारत को नाराज करने की हिम्मत नहीं जुटा सकता।
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इसीलिए मजहब के नाम पर बने इस देश ने मजहब के आधार पर ही इस्लामी मुल्कों को एकीकृत कर मुस्लिम उम्माह का नायक बनने का सपना संजोता रहता है। अपने दर्शकों को बता दे कि मुस्लिम उम्मा का अर्थ यहां पर एक ऐसे अंतरराष्ट्रीय कूटनीतिक मंच की अवधारणा से है जिसकी सभी सदस्य देश इस्लाम और इस्लामिक राष्ट्र के नाम पर एकीकृत हुए हैं पर क्या करें यहां भी बिचारे पाकिस्तान की भद पिट जाती है। सऊदी की संपन्नता, खाड़ी देशों के तेल और विकास के प्रयास में लगे ये देश पाकिस्तान से ज्यादा भारत को अहमियत देते हैं क्योंकि भारत के पास देने के लिए बहुत कुछ है जैसे ज्ञान, तकनीक, प्रौद्योगिकी, बाजार और सामरिक शक्ति परंतु पाकिस्तान पाव पाव भर के एटम बम, दरिद्रता और आतंकवाद से ज्यादा कुछ नहीं दे सकता।
तुच्छ कोशिशें करता है पाकिस्तान
अपनी इस कपोल काल्पनिक महत्वाकांक्षा को पूरा करने के लिए पाकिस्तान कभी तुर्की और मलेशिया सरीखे कंगालों को मिलाकर फिर से मुस्लिम उम्माह की नींव रखना चाहता है तो कभी कश्मीर मुद्दे पर कांफ्रेंस बुलाकर उनका नेता बनने की तुच्छ कोशिश करता है।
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इसी कड़ी में संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 2022 से इस्लामोफोबिया का मुकाबला करने के लिए 15 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय इस्लामोफोबिया दिवस के रूप में घोषित करने के लिए एक प्रस्ताव को मंजूरी दी। खबर है की मुस्लिम उम्माह को ललचाने के लिए 193 सदस्यीय संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा अपनाया गया यह प्रस्ताव OIC की ओर से पाकिस्तान के राजदूत मुनीर अकरम द्वारा पेश किया गया था। यह उस दिन को चिह्नित करता है जब एक बंदूकधारी ने क्राइस्टचर्च, न्यूजीलैंड में दो मस्जिदों में प्रवेश किया, जिसमें 51 उपासक मारे गए और 40 अन्य घायल हो गए।
तिरुमूर्ति ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में क्या कहा
संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि टीएस तिरुमूर्ति ने संयुक्त राष्ट्र महासभा में कहा कि भारत को उम्मीद है कि अपनाया गया प्रस्ताव एक मिसाल नहीं बनेगा क्योंकि अगर यह मिसाल बना तो चुनिंदा धर्मों के फोबिया के आधार पर कई प्रस्तावों को जन्म देगा. यह संयुक्त राष्ट्र को धार्मिक शिविरों में विभाजित करेगा। भारत ने एक धर्म को अंतर्राष्ट्रीय दिवस के स्तर तक बढ़ाए जाने के खिलाफ फोबिया पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि धार्मिक भय के समकालीन रूप बढ़ रहे हैं, विशेष रूप से हिंदू विरोधी, बौद्ध विरोधी और सिख विरोधी फोबिया।
हालांकि आरंभ में इससे पाकिस्तान के कूटनीतिक जीत के रूप में देखा जा रहा था जिसने इस्लामिक कट्टरता, धर्मांधता और आतंकवाद का प्रत्यक्ष प्रमाण होने के बावजूद भी संयुक्त राष्ट्र द्वारा 15 मार्च को इस्लामिकफोबिया दिवस के रूप में घोषित करा दिया। पाकिस्तान और अपनी इसी उपलब्धि को भुनाना चाहता था, शायद इसीलिए इमरान खान ने मोदी स्टाइल की कूटनीति अपना ली। इमरान खान का राजनीतिक भविष्य इस समय संकट से गुजर रहा है। ‘तब्दीली आई’ का उनका नारा पूरी तरीके से विफल रहा। पाकिस्तान पर कर्ज बढ़ता गया और महंगाई भी। नीतिगत स्तर पर भी वह अमेरिका और रूस और चाइना के बीच त्रिकोणीय संघर्ष में पिसता रहा। इस चक्कर में विपक्षी पार्टियों ने बगावती रुख अपना लिया।
अल्पमत में आ गई है इमरान सरकार
आपको बता दें कि पाकिस्तान के निम्न सदन अर्थात नेशनल असेंबली में कुल 342 सीटें हैं, जिसमें बहुमत के लिए 172 सीटें निर्धारित है। इमरान खान सरकार की कुछ छोटी गठबंधन पार्टियों के बगावती रुख अपना लेने से तथा विपक्षी पार्टियों के पूर्ण रूप से एकजुट हो जाने से इमरान सरकार अल्पमत में आ गई है। अब विपक्षी पार्टिया चाहती है कि सदन में अविश्वास प्रस्ताव पेश किया जाए और इमरान खान से बहुमत पर स्पष्टीकरण मांगा जाए। लेकिन इमरान खान को बेइज्जती से बचाने के लिए पाकिस्तानी सेना जानबूझकर इस अविश्वास प्रस्ताव को इस्लामिक देशों की बैठक के बाद शेड्यूल कराना चाहती है। सूत्रों के हवाले से पता चला है की इमरान खान को 22 तारीख की बैठक के बाद इस्तीफा देने का भी निर्देश दिया गया है जो कि पूरा होता दिख रहा है क्योंकि इस्लामिक देशों कि यह बैठक भी पाकिस्तान के रुख के कारण सफल होती नहीं दिख रही है। खबर है कि ओआईसी के सदस्य देशों के कई विदेश मंत्री इस बैठक का हिस्सा नहीं बनेंगे और जो बनेंगे भी वह भी इसलिए ताकि भारत के प्रति पाकिस्तान के प्रोपेगेंडा को नेस्तनाबूद किया जा सके।
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मोरक्को जो कि ओआईसी का एक संस्थापक सदस्य है उसके विदेश मंत्री भी इस बैठक का हिस्सा नहीं बनेंगे। ओमान के विदेश मंत्री तो उसी समय भारत का दौरा करेंगे। सीरिया, अल्जीरिया और इराक जैसे देशों ने भी कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान के बजाए भारत के पक्ष में समर्थन दिखाया है अतः इनसे भी पाकिस्तान के पक्ष में बोलने की उम्मीद नगण्य है।
सेंट्रल एशिया के सारे मुस्लिम देशों का भारत के प्रति रुख तीखा नहीं
सऊदी और अब और अमीरात तो पहले से ही भारत के पक्ष में हैं और सेंट्रल एशिया के सारे मुस्लिम देश भारत के प्रति तीखा रवैया अपनाने से परहेज करते हैं. अतः कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि 48 सदस्य देशों में से 46 देश भारत के प्रति सहयोग पूर्ण रवैया के पक्षधर हैं. काश्मीर तथा अंतरराष्ट्रीय मुद्दे से संदर्भित किसी भी सवाल पर इन देशों के पाकिस्तान के पक्ष में खड़े होने की संभावना बिल्कुल कम है. मोदी स्टाइल की कूटनीति कर भारत को घेरने की रणनीति खुद ही इमरान खान पर भारी पड़ गई और अब इस बैठक के बाद उनकी सरकार का गिरना तय है. देखते रहिए द ग्रेट सर्कस आफ पाकिस्तान.