विश्व गुरु बनने की राह पर भारत का एक और कदम

हमें अपनी विरासत, अपनी संस्कृति पर गर्व होना चाहिए

मैकाले एक ऐसा नाम जिसने प्राचीन भारतीय शिक्षा प्रणाली को बहुत नुकसान पहुंचाया । शिक्षा के संबंध में अंग्रेजों के द्वारा किया गया सर्वप्रथम प्रयास गवर्नर जनरल लॉर्ड विलियम बेन्टिक के समय किया गया | विलियम बेन्टिक पाश्चात्य शिक्षा के समर्थक थे परंतु उन्होंने अपने विचारों को लागू करने के लिए भरपूर प्रयास नहीं किया | बेन्टिक ने मैकाले को शिक्षा समिति का सभापति नियुक्त किया | 2 फरवरी 1835 ने अपने विचारों को प्रस्तुत किया उसने भारतीय शिक्षा पद्धति को बहुत ही दीन-हीन  बताया और अंग्रेजी भाषा को शिक्षा का माध्यम बनाया |

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मैकाले  ने अधोगामी निस्पंदन का सिद्धांत ( Downward Filteration Theory) दिया जिसका प्रमुख उद्देश्य ”भारत के उच्च तथा माध्यम वर्ग के एक छोटे से हिस्से को शिक्षित करना था ताकि एक ऐसा वर्ग तैयार हो जो रंग और खून से भारतीय हो लेकिन विचारों, नैतिकता तथा बुद्धिमता से अंग्रेज हो ”| भारतीयों में भारतीयता का संचार करने के लिए शिक्षा प्रणाली का भारतीयकरण होना अति आवश्यक है, और यही आवश्यकता भारत की नई शिक्षा नीति का केंद्र भी है, जो मातृभाषाओं को बढ़ावा देने पर बहुत जोर देती है।

भगवाकरण में क्या गलत है?

स्वतंत्रता के 75वें वर्ष देव संस्कृति विश्वविद्यालय ( हरिद्वार ) में मैकाले शिक्षा प्रणाली को खारिज करने का आह्वान करते हुए उप राष्टपति श्रीमंत एम वेंकैया नायडू जी  ने कहा कि भारतीयों को औपनिवेशिक मानसिकता त्याग देनी चाहिए और अपनी भारतीय पहचान पर गर्व करना चाहिए | हालांकि इस कारण से वर्तमान केंद्र सरकार पर शिक्षा का भगवाकरण करने का आरोप लग रहा है, इसका जवाब देते हुए उपराष्ट्रपति जी ने कहा की भगवाकरण में क्या गलत है?”इस शिक्षा पद्धति के बारे में स्वयं मैकाले ने कहा था कि जो शिक्षा पद्धति मैं लागू कर रहा हूं उसके पाठ्यक्रम के अनुसार यहाँ के शिक्षित युवक देखने में हिंदुस्तानी लगेंगे किंतु उनका मस्तिष्क अंग्रेजियत से भरा होगा। तब वे अंग्रेजो की कठपुतली व रोबोट की तरह नाचेंगे।मैकाले ने कहा कि हम शिक्षा केवल उच्च वर्गों के लोगों को ही देगें। मैकाले का उद्देश्य यह था कि उच्च वर्गों के लोगो को प्रशिक्षित करने पर निम्न वर्ग के लोगों तक शिक्षा छन – छन कर पहुँच जाएगी जिससे खर्च भी कम लगेगा।

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शिक्षा को समृद्ध वर्ग और अंग्रेजी भाषी लोगों तक सीमित करने की औपनिवेशिक मानसिकता ने हमें खुद को एक निम्न जाति के रूप में देखना सिखाया। हमें अपनी संस्कृति, पारंपरिक ज्ञान का तिरस्कार करना सिखाया गया। इसने एक राष्ट्र के रूप में हमारे विकास को धीमा कर दिया। हमारे शिक्षा के माध्यम के रूप में एक विदेशी भाषा को लागू करने से शिक्षा सीमित हो गई।  समाज का एक छोटा सा वर्ग शिक्षा के अधिकार से एक बड़ी आबादी को वंचित कर रहा है।

अपनी संस्कृति, अपने पूर्वजों पर गर्व महसूस करना चाहिए

हमें अपनी विरासत, अपनी संस्कृति, अपने पूर्वजों पर गर्व महसूस करना चाहिए। हमें अपनी जड़ों की ओर वापस जाना चाहिए। हमें अपनी औपनिवेशिक मानसिकता को त्यागना चाहिए और अपने बच्चों को उनकी भारतीय पहचान पर गर्व करना सिखाना चाहिए। हमें जितनी भी भारतीय भाषाएं सीखनी चाहिए। हमें अपनी मातृभाषा से प्रेम करना चाहिए। हमें अपने शास्त्रों को जानने के लिए संस्कृत सीखनी चाहिए, जो ज्ञान का खजाना हैं।

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भारत आने वाले विदेशी गणमान्य व्यक्ति अंग्रेजी जानने के बावजूद अपनी मातृभाषा में बोलते हैं क्योंकि उन्हें अपनी भाषा पर गर्व है पर हम आज भी अंग्रेजी के लिए एक और हिंदी के लिए दो दबाते हैं। एक समय था जब दुनिया भर से लोग नालंदा और तक्षशिला के प्राचीन भारतीय विश्वविद्यालयों में पढ़ने के लिए आते थे, लेकिन अपनी समृद्धि के चरम पर भी, भारत ने कभी किसी देश पर हमला करने के बारे में नहीं सोचा क्योंकि हम दृढ़ता से मानते हैं कि दुनिया को शांति की जरूरत है।

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