उत्तराखंड में बेहतरीन जीत के साथ ही भाजपा चुनाव पूर्व अपने किए गए वादों को अमल में लाने की तैयारियों में लग गई है। पिछले दिनों दूसरी बार राज्य के मुख्यमंत्री बने पुष्कर सिंह धामी ने प्रदेश में समान नागरिक संहिता यानी UCC लागू करने की दिशा में कदम बढ़ाने का ऐलान कर दिया। उनके इस फैसले के बाद से ही लिबरलों और कट्टरपंथियों के अंग विशेष में आग लग गई है! इसी बीच भारतीय अमेरिकी मुस्लिम परिषद (IAMC) ने उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता (UCC) लागू करने के उत्तराखंड सरकार के फैसले के खिलाफ एक लंबा बयान पोस्ट किया है। IAMC ने ट्विटर पर समान नागरिक संहिता (UCC) को लागू करने के भाजपा शासित उत्तराखंड राज्य के फैसले की निंदा है। IAMC ने अपने बयान में कहा है कि “हिंदू वर्चस्ववादियों के लिए UCC, प्रगतिशीलता की ओर एक कदम होने के बजाय, मुसलमानों और ईसाइयों द्वारा उनके निजी जीवन में धार्मिक विश्वास के अभ्यास करने के अधिकार पर हमला करने और उनपर मुकदमा चलाने का एक और तरीका है।”
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अंतरराष्ट्रीय समुदाय से हस्तक्षेप की अपील
मुस्लिम काउंसिल ने समान नागरिक संहिता को धार्मिक अधिकारों का उल्लंघन बताते हुए कहा, “UCC को लागू करना धर्म की स्वतंत्रता का उल्लंघन है और नागरिकों, विशेष रूप से मुसलमानों और ईसाइयों के निजी जीवन में आक्रमण है, जो पहले से ही भारत में गंभीर रूप से हाशिए पर हैं।” मुस्लिम काउंसिल का कहना है कि “समान नागरिक संहिता मुस्लिम महिलाओं की मुक्ति अथवा समाज में धार्मिक विभिन्नता के बीच एकता को बढ़ावा देने के लिए नहीं बनी है। यूसीसी न तो मुक्त करेगा और न ही एकजुट करेगा, बल्कि एकरूपता के हिंदू-केंद्रित विचार को आगे बढ़ाएगा।”
इस काउंसिल ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय से भी भारत के आंतरिक मामले में हस्तक्षेप की अपील की है। कहा गया है कि “IAMC भारत के धर्मनिरपेक्ष और बहुलवादी लोकाचार को बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध है और भारत के धार्मिक अल्पसंख्यकों को डराने के लिए भाजपा के इस नवीनतम कदम की निंदा करने के लिए अंतरराष्ट्रीय समुदाय से मुखर होने का आग्रह करता है।”
अब हमें ये सिखाएंगे सेक्युलरिज्म
यह हास्यास्पद है कि मुस्लिम काउंसिल, जो मुसलमानों का संगठन है, जिसका निर्माण मजहबी आधार पर हुआ है, जो भारत के बाहर भी ‛भारतीय’ पहचान के स्थान पर ‛भारतीय मुस्लिम’, इस पहचान के साथ चल रहा है, वह भारत के ‛सेक्युलर’ ढांचे की रक्षा की बात कर रहा है। इस्लामिक कानून, जो अत्यंत दकियानूसी हैं, जो हलाला रूपी बलात्कार और मुताह रूपी वेश्यावृत्ति जैसी कुप्रथाओं को, इस्लामी कानून का दर्जा देकर, उन्हें न्यायोचित ठहरते हैं, कई बीवियों को रखने की अनुमति देकर स्त्रियों के अधिकार का परिहास करते हैं, उन्हें बचाने के लिए भारत के ही नहीं, भारत के बाहर रहने वाले मुसलमानों में भी छटपटाहट है। अन्य भारतीय समुदाय जहां भारत में निवेश की बात करते हैं, विदेशों में अपनी सनातन संस्कृति को फैलाने का प्रयास करते हैं, वहीं भारतीय मुस्लिम अरब के एम्बेसडर, अरब के लोगों से भी बड़े इस्लामिक संस्कृति के वाहक बन जाते हैं। हालांकि, यह अलग बात है कि अरबी लोग भारतीय मुसलमानों को नीच समझते हैं।
IAMC का बयान बताता है कि अंग्रेजी बोलने और कोट पहनने वाले मुस्लिम की मानसिकता, बड़े भाई का कुर्ता और छोटे भाई का पजामा पहनने वाले लंबी दाढ़ी वाले मुस्लिम से अलग हो, यह आवश्यक नहीं। शिक्षा जिहादी मानसिकता को नहीं बदलती, केवल शिक्षित जिहादी पैदा करती है, वो भी अंग्रेजी बोलने और कोट पहनने वाले जिहादी। एक महत्वपूर्ण तथ्य यह भी है कि भारत सरकार को IAMC के दुष्प्रचार को लेकर सतर्क रहना चाहिए। मुस्लिम समाज का पढ़ा-लिखा वर्ग ही मुस्लिम समाज के सुधार में सबसे बड़ा बाधक है। सुधार लागू भी हुए तो बलपूर्वक करने पड़ेंगे, ऐसे में विदेशों में स्थित भारतीय मुस्लिम समुदाय इसी प्रकार विद्रोही रुख अपनाएगा। इन्हें नियंत्रित करने और इनके नैरेटिव के प्रत्युत्तर में भारतीय विमर्श को दृढ़तापूर्वक रखने हेतु विदेशों में बसे भारत के राष्ट्रवादी समुदाय को एकजुट होने की आवश्यकता है! भारत के दूतावासों के माध्यम से इस हेतु कार्य करना चाहिए!
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