भारत के कूटनीतिक झटके ने ब्रितानियों की लंका लगा दी है

ये नया भारत है, झुकेगा नहीं!

यूनाइटेड किंगडम भारत

Source- TFIPOST

भारत को 1947 में औपनिवेशिक कब्जे से आज़ादी मिली थी। हमारी आज़ादी के 75 साल हो गए हैं। हालांकि, स्वतंत्रता पश्चात नई दिल्ली की सरकारों ने यूनाइटेड किंगडम (UK) के सामने साष्टांग प्रणाम करने को नीतिगत प्राथमिकता बना दिया था। यहां तक ​​कि संयुक्त राज्य अमेरिका ने भी भारत के उथल-पुथल भरे समय का भरपूर फायदा उठाया है। भारतीय नेताओं ने हमेशा लंदन के फरमानों का पालन करने के लिए नैतिक दायित्व की भावना महसूस की है। जैसा कि पिछले आठ वर्षों में स्थापित तथ्य को देखकर लगता  है कि भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कोई साधारण नेता नहीं है। इसलिए उनकी सरकार निर्णायक रूप से यूनाइटेड किंगडम के सामने खड़ी है और हर पैमाने पर अपनी स्वतंत्रता और संप्रभुता को अक्षुण्ण रख रही है चाहे वह कूटनीतिक मामले हों या फिर अंतरराष्ट्रीय संबंध।

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भारत ने पश्चिम को दिया कड़ा संदेश

दरअसल, मोदी सरकार ने हाउस ऑफ कॉमंस के स्पीकर सर लिंडसे हॉयल और उनके डिप्टी के नेतृत्व में ब्रिटेन के एक उच्चस्तरीय क्रॉस-पार्टी प्रतिनिधिमंडल की भारत यात्रा को रद्द कर दिया है। 10 सदस्यीय मजबूत प्रतिनिधिमंडल में कंजरवेटिव और लेबर कैंप दोनों के सांसद शामिल थे। उक्त प्रतिनिधिमंडल का प्राथमिक लक्ष्य यूके-भारत मुक्त व्यापार सौदे पर प्रगति को प्रोत्साहित करना था।

द गार्जियन की एक रिपोर्ट के अनुसार, फरवरी में यूक्रेन पर आक्रमण के बाद ब्रिटिश प्रतिनिधिमंडल की यात्रा का संदर्भ बदल गया। अब प्रतिनिधिमंडल भारत को एक स्पष्ट रूस विरोधी लाइन अलापने के लिए प्रेरित कर रहा था। दिलचस्प बात यह है कि भारत पर मॉस्को के खिलाफ एक स्टैंड लेने हेतु दबाव बनाने के लिए ब्रिटिश सरकार की सभी शाखाओं को उपयोग में लाया गया। उसके बावजूद भी भारत ने झुकने से इनकार कर दिया है। इसलिए जब प्रतिनिधिमंडल के एजेंडे में भारी बदलाव आया और यह रूस विरोधी मार्ग पर जा खड़ा हुआ, तो नई दिल्ली ने पूरी तरह से नियोजित यात्रा पर रोक लगाने का फैसला किया।

ब्रिटिश प्रतिनिधिमंडल, जो दिल्ली और राजस्थान का दौरा करने वाला था, उसने अंतिम समय में भारतीय उच्चायोग द्वारा आपत्ति जताए जाने के बाद अपनी यात्रा रद्द कर दी। रिपोर्ट के अनुसार, यह अभी तक स्पष्ट नहीं है कि भारत के मुद्दे चुने हुए प्रतिनिधिमंडल के व्यक्तिगत सदस्यों के साथ थे या ब्रिटिश सांसदों को भारत में पीएम मोदी से और अधिक मजबूत स्थिति लेने का आग्रह करने के लिए एक मंच दिए जाने के बारे में व्यापक चिंता से संबंधित थे।

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भारत का संदेश जोर से और स्पष्ट

ध्यान देने वाली बात है कि यूनाइटेड किंगडम विकास को गति देने की कोशिश कर रहा है। ब्रिटिश मीडिया चाहता है कि हर कोई यह विश्वास करे कि यूक्रेन में चल रहे युद्ध में भारत की स्थिति से असहजता के कारण लंदन ने ही यात्रा रद्द की थी। हालांकि, वास्तविकता यह है कि यह भारत ही था जिसने ब्रिटिश दबाव की रणनीति और जबरदस्ती के विरुद्ध खड़े होने का विकल्प चुना। जहां तक ​​मुक्त व्यापार समझौते से संबंधित वार्ताओं का सवाल है, भारत उन्हें भी टाल सकता है। दबाव की रणनीति प्रधानमंत्री मोदी की सरकार के अनुकूल नहीं है। लंदन को अच्छी सलाह दी जाएगी कि वह भारत को रूस पर पश्चिम की रेखा को स्वीकार करने के लिए दो कारणों से मजबूर न करे:

  1. भारत के रूस के साथ बहुत मजबूत संबंध हैं;
  2. भारत एक स्वतंत्र और स्वायत्त विदेश नीति का पालन करता है।

वाशिंगटन में भी महसूस किए जाएंगे झटके

आपको बताते चलें कि ब्रिटिश प्रतिनिधिमंडल का दौरा रद्द कर भारत ने सभी पश्चिमी शक्तियों को कड़ा संदेश दिया है। नई दिल्ली ने यह स्पष्ट कर दिया है कि भारत को मजबूर करने या विदेश नीति के फैसलों के खिलाफ एक संयुक्त मोर्चा बनाने के परिणाम गंभीर होंगे। मोदी सरकार ने जहां लंदन को काफी बुरी तरह पीटा है, वही इसके झटके वाशिंगटन में भी महसूस किए जाएंगे। यूनाइटेड किंगडम अभी भी यह मानता है कि भारत एक ऐसा देश है जिस पर वह हावी हो सकते हैं।  ब्रितानियों का औपनिवेशिक हैंगओवर अभी भी कम नहीं हुआ है, यही वजह ​​​​है कि वे भारत को लंदन द्वारा जारी किए गए निर्देशों का तुरंत पालन करने का फरमान सुनाते हैं। हालांकि, उच्च स्तरीय ब्रिटिश प्रतिनिधिमंडल का भारत दौरा रद्द करना मोदी सरकार द्वारा उठाया गया एक बड़ा कदम है। सरकार का यह कदम ब्रितानियों को यह एहसास दिलाने में एक लंबा रास्ता तय करेगा कि वे अब भारत के मालिक नहीं हैं और दूसरी बात यह है कि नई दिल्ली किसी भी मुद्दे पर अपनी अलग लाइन नहीं बनाएगी, जब तक कि यह हमारे स्पष्ट राष्ट्रीय हितों के विरुद्ध नहीं जाता। ऐसे में यह कहा जा सकता है कि भारत ने अभी-अभी यूनाइटेड किंगडम को उसकी औपनिवेशिक नींद से ठोक-पीटकर जगा दिया है।

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