जातीय समीकरण के चक्रव्यूह में फंसे उत्तर प्रदेश की राजनीति को योगी सरकार ने भेद दिया है। अंततोगत्वा, कमंडल की राजनीति मंडल की राजनीति पर भारी पड़ गई। भले ही आम जनमानस को यह लगता हो कि विधि व्यवस्था को सही करने के लिए योगी सरकार सिर्फ माफियाओं पर ही कार्रवाई कर रही है, पर ऐसा नहीं है। योगी सरकार ने यूपी विधानसभा चुनाव में सबसे बड़ी सर्जिकल स्ट्राइक राजनीतिक माफियाओं पर की, जो अपने अपने जाति के ठेकेदार बने बैठे हैं। वैसे तो यह ठेकेदार अपनी जाति के लिए कुछ नहीं करते, लेकिन उन्हें दिग्भ्रमित करके सालों साल तक राजनीतिक मलाई जरूर चाटते रहते हैं।
हाल के चुनावों में राजनीतिक पंडितों का गुणा गणित गलत साबित हुआ और जैसा आप लोगों को बताया जा रहा था कि माफियाओं पर कार्रवाई से ब्राह्मण, किसान आंदोलन की वजह से जाट, नागरिकता कानून की वजह से मुस्लिम और हाथरस की वजह से दलित नाराज हैं, पर वास्तविकता बिल्कुल उलट है। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि इन्हीं जातियों ने सबसे बढ़ चढ़कर योगी और भाजपा का समर्थन किया। इस आर्टिकल में हम विस्तार से जानेंगे कि कैसे विकास आधारित कमंडल की राजनीति ने मंडल की राजनीति को ध्वस्त करते हुए सामाजिक और आर्थिक न्याय के मुद्दे पर कभी सपा, बसपा और रालोद के वोट बैंक कहे जाने वाली जातियों को भी अपने पाले में लाकर खड़ा कर दिया।
और पढ़ें: यूपी चुनाव के परिणाम ने स्पष्ट कर दिया कि जाट-मुस्लिम एकता पूरी तरह से ‘छलावा’ था
भाजपा फायर है फायर!
दरअसल, हाल ही में हुए उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में अपने शानदार प्रदर्शन के साथ, भाजपा भारत के सबसे अधिक आबादी वाले राज्य में 2 तिहाई बहुमत के साथ सत्ता में लौट आई है। जातिवादी और सांप्रदायिक राजनीति से त्रस्त राज्य में पार्टी की सत्ता में वापसी के साथ, भाजपा ने दिखाया है कि वह पारंपरिक जाति की राजनीति से ऊपर उठने में कामयाब रही है। उसने जिन 370 सीटों पर चुनाव लड़ा था, उनमें से बीजेपी 255 सीटें जीतने में सफल रही। यह व्यापक रूप से माना जाता रहा कि चुनाव पारंपरिक जाति के आधार पर होंगे। कुछ विपक्षी दल इस जाति आधारित मतदान के प्रति इतने आश्वस्त थे कि उन्होंने भाजपा को ठाकुरों की पार्टी के रूप में चित्रित करने के लिए योगी आदित्यनाथ को अजय बिष्ट के रूप में संबोधित करते हुए 5 साल बिताए। हालांकि, परिणाम सामने आने के बाद लोगों को पता चला कि न सिर्फ ठाकुरों ने भाजपा को वोट दिया, बल्कि ब्राह्मण, जाट, दलित और यहां तक कि यादवों तथा मुसलमानों ने भी भाजपा को वोट दिया।
उत्तर प्रदेश में ब्राह्मण, ठाकुर, जाट, यादव, दलित और मुस्लिम समाज के मुख्य वर्ग हैं, जो राज्य की अधिकांश सीटों को प्रभावित करते हैं। दलितों में भी, जाटव और गैर-जाटव दलित और उनके मतदान पैटर्न के बीच स्पष्ट अंतर है। इसलिए यह देखना आवश्यक हो जाता है कि इन समुदायों के प्रभुत्व वाले निर्वाचन क्षेत्रों में भाजपा ने कैसा प्रदर्शन किया है और पूरे राज्य में उसे कैसी जीत मिली है।
ब्राह्मण बहुल सीटों पर जमाया कब्जा
ध्यान देने वाली बात है कि उत्तर प्रदेश में ब्राह्मण मतदाताओं की संख्या लगभग 14 फीसदी है और राज्य की 115 सीटों पर, ब्राह्मण मतदाता ही जीत और हार का फैसला करते हैं। इसलिए सभी राजनीतिक दल चुनाव से पहले ब्राह्मण मतदाताओं को लुभाने के लिए विशेष प्रयास कर रहे थे। वर्ष 2017 में जब से योगी सरकार सत्ता में आई, तब से सीएम योगी आदित्यनाथ पर ब्राह्मण विरोधी होने का आरोप लगा। आठ पुलिसकर्मियों की हत्या करने वाले खूंखार गैंगस्टर विकास दूबे के इनकाउंटर ने विपक्ष को योगी आदित्यनाथ को ब्राह्मण विरोधी व्यक्ति के रूप में लेबल करने का मौका दिया।
हालांकि, विपक्ष ने इस ब्राह्मण वोट बैंक को लुभाने के लिए हर तरह के वादे किए लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। शीर्ष 10 ब्राह्मण बहुल विधानसभा सीटों के नतीजे बताते हैं कि ब्राह्मणों ने योगी सरकार पर अपना विश्वास कायम रखा। खबरों की मानें तो भाजपा से ब्राह्मणों की कथित नाराजगी का दावा खारिज हो गया है। पिछली बार के विधानसभा चुनाव की तुलना में 6 फीसदी अधिक ब्राह्मणों ने भाजपा गठबंधन को वोट दिया है।
यादव बहुल सीटों पर सेंधमारी
वफादार समाजवादी मतदाता यादव, जो यूपी में आबादी के 9 फीसदी हैं, राज्य के सबसे महत्वपूर्ण वोट बैंकों में से एक हैं। यादव बहुल शीर्ष दस सीटों के नतीजों पर नजर डालें, तो इनमें से 7 सीटों पर समाजवादी पार्टी ने जीत हासिल की है। ये सभी सीटें इटावा के नजदीक हैं और पार्टी का पारंपरिक गढ़ है। भाजपा ने अपने सहयोगी अपना दल के साथ यादव बहुमत वाली इन दस सीटों में से 3 सीटें जीतने में कामयाबी हासिल की है। छिबरामऊ और बख्शी का तालाब निर्वाचन क्षेत्रों में मतदाताओं ने भाजपा उम्मीदवारों को तरजीह दी।
ध्यान देने वाली बात है कि जाट मतदाता उत्तर प्रदेश में लगभग 6 से 7 प्रतिशत हैं, लेकिन उनका प्रभाव पश्चिमी यूपी में काफी बढ़ गया है। कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के विरोध के बाद व्यापक रूप से उम्मीद की जा रही थी कि पश्चिमी यूपी में भाजपा को बड़ा झटका लगेगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। पश्चिमी यूपी में जाटों ने योगी आदित्यनाथ पर पूरा भरोसा जताया है और भाजपा ने इस क्षेत्र में काफी बेहतरीन प्रदर्शन किया है।
और पढ़ें: योगी आदित्यनाथ ने कैसे ‘नोएडा जिंक्स’ के मिथक को ध्वस्त कर दिया है
बीएसपी के वोट बैंक में बीजेपी की सेंधमारी
एक जमाना था जब बसपा जाटव वोट साध कर उत्तर प्रदेश की सत्ता हांसिल कर लेती थी, लेकिन BSP के पारपंरिक वोटर माने जाने वाले दलितों में भी बीजेपी ने सेंधमारी की है। आपको बता दें कि जाटव समुदाय का 21 फीसदी वोट इस बार के चुनाव में बीजेपी गठबंधन को गया है, जबकि 65 फीसदी जाटव ने बीएसपी को वोट दिया है। गौरतलब है कि वर्ष 2017 में 8 फीसदी जाटव और 32 फीसदी गैर-एससी ने बीजेपी गठबंधन को वोट दिया था, जबकि 87 फीसदी जाटव और 44 फीसदी गैर-SC ने BSP के पक्ष में वोटिंग किया था। चुनाव दर चुनाव, दलित मतदाताओं के बीच बीजेपी का वोट शेयर बढ़ता रहा है। उत्तर प्रदेश के चुनाव में एक बार फिर भाजपा को दलितों का भारी समर्थन मिला, न केवल गैर-जाटवों से, बल्कि बसपा के जाटव वोट-बैंक से भी। मायावती ने भी स्वीकार किया कि समाजवादी पार्टी के गुंडा राज के डर से काफी दलितों ने बीजेपी को वोट दिया।
मुस्लिम वोटों में हुई बढ़ोत्तरी
आपको बताते चलें कि 90 के दशक ने भारतीय राजनीति ने कई उतार-चढ़ाव देखे, जिनमें बाबरी मस्जिद का विध्वंस और मंडल आयोग की सिफारिशों के आसपास के मुद्दे शामिल थे। तत्कालीन प्रधानमंत्री वी.पी. सिंह उस समय की राजनीति में एक प्रमुख व्यक्ति थे। मंडल आयोग की सिफारिशों को पीएम के रूप में उनके कार्यकाल के दौरान मंजूरी दी गई थी। इसका प्रभाव देश की राजनीति में जमकर देखने को मिला है, लेकिन अब लोग इससे भी बाहर निकलने लगे हैं। गौरतलब है कि भाजपा हमेशा से हिन्दुओं का पक्षधर रही है। हिन्दुओं की सुरक्षा के लिए भाजपा हर मोर्चे पर बदनामी सहते हुए भी हिन्दुओं के लिए खड़ी रही है और इसके कारण कुछ अल्पज्ञानी बुद्धिजीवी भाजपा पर मुस्लिमों को परेशान करने का आरोप लगाते रहते हैं। हालांकि, अब यह मिथक भी टूट रहा है।
अगर हम बात मुस्लिम मतदाताओं की करें, तो 2017 के विधानसभा चुनाव की तुलना में इस बार 2 फीसदी अधिक मुस्लिमों ने बीजेपी गठबंधन को वोट दिया है। दरअसल, 2017 में 6 फीसदी मुस्लिमों ने भाजपा गठबंधन को वोट दिया था, जबकि 2022 में यह 8 फीसदी तक पहुंच गया है। ध्यान देने वाली बात है कि योगी सरकार ने न सिर्फ विकास आधारित अपनी राजनीति, बल्कि सामाजिक और आर्थिक न्याय के अस्त्र से इन सभी के तिलिस्म को ध्वस्त किया, जिसके कारण जनता ने भी उनका भरपूर समर्थन करते हुए उनका साथ दिया। इस बार के चुनाव में ब्राह्मण, जाट, मुस्लिम, यादव और दलितों ने मुख्य रूप से योगी सरकार को वोट दिया और इन जातियों के मत प्रतिशत में अप्रत्याशित रूप से बढ़ोत्तरी हुई है।
और पढ़ें: भाजपा के साथ-साथ देश की अर्थव्यवस्था के लिए भी फायदेमंद है मोदी-योगी की जोड़ी, समझिए क्यों?