उत्तर प्रदेश की सियासत चुनाव के नतीजों के बाद भी उथल-पुथल से भरी नजर आ रही है। जहां एक ओर विधानसभा चुनाव में प्रचंड जीत के बाद भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के नेतृत्व वाला सत्ताधारी गठबंधन लगातार दूसरी बार सरकार बनाने के लिए तैयार है तो वहीं दूसरी तरफ विपक्ष के सामने अपना कुनबा बचाने की चुनौती भी दिखाई पड़ रही है। ओ पी राजभर की सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) के बीजेपी के नेतृत्व वाले गठबंधन में शामिल होने को लेकर आई खबरों ने सूबे का राजनीतिक और चढ़ा दिया है।
पूरे यूपी चुनाव में राजभर ने दिया बड़बोलेपन का परिचय
पूरे यूपी चुनाव में बड़बोलेपन का परिचय देने वाले ओम प्रकाश राजभर चुनाव से पहले एनडीए का दामन छोड़ सपा के साथ गठबंधन में चुनाव लड़े और चुनाव हरने के बाद एक बार फिर से 360 डिग्री पलटी मारने की खबरों ने जोर पकड़ना शुरू कर दिया तो चर्चाएं भी गर्म होने लगीं। स्वयं को राजनीति के मौसम वैज्ञानिक कहने वाले राजभर चुनाव से पहले तक भाजपा पर जमकर निशाना साधते रहे। आरएसएस से लेकर प्रदेश के मुख्यमंत्री तक पर कटाक्ष करने से लेकर अखिलेश को 400 से अधिक सीटें दिलवाने का सपना दिखाने वाले राजभर एक बार फिर जिस नाव में बैठे हैं उसी में छेद करने की फिराक में है।
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अखिलेश यादव के मुख्यमंत्री बनने के सपने को टूटने के बाद ओकप्रकाश एक बार फिर से अपने पुराने गठबंधन में वापस जाने की जुगत में दिखायी दे रहे हैं। बरहाल भाजपा को राजभर और मौर्य से तमाम दलबदलु नेताओं से सावधान रहने की जरूरत है जो सालों साल सत्ता की मलाई खाने के बाद चुनाव से ठीक पहले खुद को अपने अपने जातियों का मसीहा बताते फिरते हैं।
खबरें आ रही की नई दिल्ली में गृहमंत्री अमित शाह से मुलाकात के बाद उन्हें यूपी सरकार में कैबिनेट मंत्री के जगह का आश्वासन दिया है। चुनाव से पहले भी भाजपा से भेंट करने को लेकर चर्चाएं होती रही हैं। हालांकि की भाजपा या सुभासपा की तरफ से कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है।
स्वामी प्रसाद मौर्य और ओम प्रकाश राजभर हैं मौसमी राजनेता
स्वामी प्रसाद मौर्य और ओम प्रकाश राजभर मौसमी राजनेता है जो हवा के साथ साथ अपना रूख बदलते रहते हैं। हालांकि इस बार दोनों ही अपने अपने खेल में फिसड्डी साबित हुए। एक तरफ जहां स्वामी प्रसाद मौर्य चुनाव से ऐन वक्त पहले भाजपा से रिश्ता तोड़ कर सपा में शामिल हुए और अपनी पारंपरिक सीट छोड़ फाजिलनगर से चुनाव लड़े जहा मुंह की खानी पड़ी ।
वहीं ओमप्रकाश राजभर सपा के साथ 18 सीट में से मात्र 6 सीट जीत पाए और अपने बेटे की सीट तक नहीं बचा पाए। हालंकि की अगर सुभासपा एनडीए गठबंधन में आने की जुगत में है तो इससे गठबंधन को कोई खास प्रभाव तो नहीं पड़ेगा लेकिन आगामी लोकसभा चुनाव में पूर्वांचल के गिने चुने क्षेत्रों में जहां कुछ हद तक इनका प्रभाव है वहां भाजपा को पुनः मजबूती मिल सकती है लेकिन फिर भी देखने वाली बात है कि इन दलबदलुओं की कोई खास जरूरत अब भाजपा को रही नहीं क्योंकि भाजपा खुद ही एक मजबूत पार्टी के रूप में दिन ब दिन चुनाव दर चुनाव उभरती जा रही है।
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खैर राजनीति में कब क्या हो जाए कहा नहीं जा सकता। वैसे भी ओमप्रकाश राजभर के लिए भाजपा के तरफ से एक कहावत फिट बैठती है की अगर सुबह का भूला शाम को वापस आ जाए तो उसे भूला नहीं कहते। अब देखना दिलचस्प होगा कि आगे क्या क्या होता है।