मौकापरास्त, बरसाती मेंढक, आया राम-गया राम, दलबदलू…..ऐसे अनेकों नाम हैं जिनकी संज्ञा भारतीय राजनीति में आम तौर पर उन लोगों को दी जाती है जो एक दल से दूसरे दल की परिक्रमा मात्र इसलिए करते हैं, क्योंकि उनका अंतिम लक्ष्य सत्ता प्राप्ति होता है, न कि जनता की सेवा। ऐसा ही हाल उन भारतीय राजनेताओं का है, जिनका राजनीति में आने का रास्ता उनके मां-बाप की विरासत बन गया था। इनका क्षणभंगुर इतना ही योगदान था कि इनके बाप-दादा भारतीय राजनीति के चर्चित नाम थे। ऐसे ही एक परिवार से निकले मयंक जोशी, जिन्होंने अब पूर्णतः समाजवादी पार्टी ज्वाइन कर ली है पर अभी भी उनकी माताश्री और मामा श्री भाजपा में डटे हुए हैं।
कांग्रेस पार्टी के शुरूआती नेताओं में से एक और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री हेमवती नंदन बहुगुणा की राजनीतिक विरासत से दो नेता उत्पन्न हुए- विजय बहुगुणा और रीता बहुगुणा जोशी। रिश्ते में दोनों भाई-बहन का संबंध साझा करते हैं पर राजनीतिक रूप से दोनों ने अपने वर्चस्व के लिए सभी तरह के राजनीतिक दांव पेंच खेले हैं। ऐसे में राजनीतिक महत्वकांक्षा होनी लाज़मी है। कांग्रेस कार्यकाल में सत्ता सुख भोगने के उपरांत स्वयं रीता और विजय बहुगुणा अपनी राजनीतिक विदाई को सामने देखते ही दल-बदल वाली श्रेणी में आ गए। मई 2016 में जहां विजय बहुगणा ने कांग्रेस को छोड़ा तो वहीं उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2017 से पूर्व रीता बहुगुणा जोशी ने अक्टूबर 2016 में कांग्रेस छोड़ भाजपा का दामन थाम लिया।
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मौकापरस्ती का पर्याय बना जोशी परिवार
रीता बहुगुणा जोशी को विधानसभा चुनाव लड़ाने के बाद उनकी जीत के बाद उन्हें योगी केबिनेट में मंत्री बनाया गया, उसके बाद शीघ्र ही लोकसभा चुनाव 2019 में पार्टी ने उनपर विश्वास व्यक्त करते हुए लोकसभा चुनाव लड़ाने का निर्णय किया। यह सब उन्हें तब मिला, जब रीता बहुगुणा जोशी की राजनीतिक पृष्ठभूमि 24 वर्ष तक कांग्रेस के साथ थी। इसके बावजूद भाजपा ने उन्हें अपने नेताओं से बढ़कर तरजीह दी। अब जब 2022 यूपी विधानसभा चुनावों की बारी आई तो उनकी आरज़ू फिर से बढ़ गई।
इतना सब मिल जाने के बाद भी रीता बहुगुणा जोशी को संतोष था या नहीं वो उनके मन के ऊपर निर्भर करता है, पर अब लालसा अपने बेटे को स्थापित करने की थी। इस बात पर वो कई बार बोलती भी दिखी कि यदि भाजपा इस बार उनके बेटे मयंक जोशी को टिकट दे देती है, तो वो आगामी 2024 का चुनाव नहीं लड़ेंगी। अगर भाजपा इतनी आसानी से किसी इच्छा को सरलता से पूर्ण कर देती, तो शायद वो कांग्रेस जैसे दल को कभी पछाड़ ही नहीं पाती, जिससे रीता बहुगुणा जोशी छिटक कर भाजपा में आयी थी। नतीजा वहीं रहा, पार्टी ने उनके बयानों को कोई तरजीह नहीं दी।
अपनी ही पार्टी को गुमराह करना, दूसरे दल के नेताओं के साथ जाकर अपनी ही पार्टी को चुनौती देना इन सभी तरह के मामलों में रीता बहुगुणा जोशी के बेटे का नाम उछला। भाजपा से टिकट का कोई स्त्रोत बनता न दिखने के बाद बीते कुछ दिनों पहले रीता बहुगुणा जोशी के बेटे मयंक जोशी ने अखिलेश यादव से मुलाकात की थी, जिसे शिष्टाचार भेंट बताया गया था। सत्ता का सुख और कुर्सी की लालसा में मयंक जोशी जैसे नौसिखिया नेता बहुत बड़ी भूल कर बैठते हैं। इस शिष्टाचार भेंट ने उसी भूल पर मुहर लगाया और अब वह सपाई हो चुके हैं।
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ध्यान देने वाली बात है कि कांग्रेस में रहते हुए सत्ता की मलाई जमकर खाने के बाद जब यह जोशी परिवार भाजपा में शामिल हुआ, जनता का ये कहना था कि अपने लाभ और अपना उल्लू सीधा करने के लिए रीता बहुगुणा और विजय बहुगुणा जोशी कुछ भी कर सकते हैं। बता दें, विजय बहुगुणा भले ही आज किसी राजनीतिक दायित्व पर नहीं हैं परन्तु उनके बेटे सौरभ बहुगुणा वर्तमान में उत्तराखंड की सितारगंज सीट से भाजपा विधायक हैं। यूं तो विजय बहुगुणा ने भी अपने बेटे को स्थापित करने के लिए अपने राजनीतिक करियर पर पूर्णविराम लगाया था, पर रीता बहुगुणा जोशी और उनके बेटे मयंक जोशी ने अपने सुर अलग ही दिशा में मोड़ लिए, जिसका झटका अब जल्द ही रीता बहुगुणा जोशी को लगने वाला है।
गजब की महत्वाकांक्षा है भैया!
सत्ता प्राप्ति की भूख में रीता बहुगुणा जैसी नेता अपने राजनीतिक ग्राफ को बढ़ाने के लिए पीछे का रास्ता अपनाती हैं! अब उनके बेटे सपाई हो गए हैं तो इसपर उन्होंने अभी तक कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है। जबकि वो स्वयं अभी अपने पुराने कांग्रेस परिवार के साथी राज्यसभा सांसद प्रदीप टम्टा के साथ त्रिपुरा में राजभाषा समिति के निमित्त वहीं पर हैं। उनके बेटे के सपा में शामिल होने के बाद उसपर कोई प्रतिक्रिया न देना और कांग्रेस सांसद के साथ परिवार सहित घूमना कई सवालों को चिन्हित करता है कि कैसे रीता बहुगुणा जोशी चारों ओर पैर पसारने की जुगत में हैं।
यह अवसरवाद नहीं तो और क्या है? वर्ष 2016 में पार्टी में आए जुम्मा-जुम्मा चार दिन हुए थे और भाजपा ने विधायक-सांसद सब बना दिया, परंतु यह भूख इतनी है कि रीता बहुगुणा जैसे नेताओं का पेट कभी भी नहीं भरेगा। मयंक जोशी समाजवादी पार्टी में न जाने किस हवा के साथ गए हैं क्योंकि सपा का हाल इस चुनाव में बड़ा डांवाडोल है। ऐसे में अब स्वयं रीता बहुगुणा जोशी को भाजपा की प्राथमिक सदस्य्ता से इस्तीफा दे ही देना चाहिए, क्योंकि अब उनका हाल स्वामी प्रसाद मौर्या पार्ट- -2 वाला हो चुका है! यूं तो विजय बहुगुणा हों या रीता बहुगुणा जोशी, दोनों को ही भाजपा ने विलुप्त हो चुकी उनकी राजनीतिक छवि को पुनर्जीवित करने का अवसर दिया, लेकिन रीता बहुगुणा और उनके बेटे मयंक बहुगुणा जोशी इसे हज़म करने में असफल रहें। अब यह तो स्पष्ट हो गया है कि जोशी परिवार सत्ता के लोभ में आकर कभी भी कुछ भी कर सकता है। उदाहरण सबके सामने है, इतना सब मिलने के बाद भी उनकी महत्वाकांक्षाएं खत्म होने का नाम नहीं ले रही है, इसलिए यह जोशी परिवार मौकापरस्ती का पर्याय बन चुका है!
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