काम नहीं तो पगार नहीं, यह हँसी ठिठोली नहीं बल्कि कोर्ट के सख्त निर्देशों में से एक बात है जो केरल हाईकोर्ट ने कही। राज्य में वामपंथी प्रशासन को दो दिवसीय राष्ट्रव्यापी हड़ताल के तहत अपने कर्मचारियों को ड्यूटी से दूर रहने से रोकने के लिए कदम उठाने का निर्देश देने के कुछ घंटों बाद, सरकार ने सोमवार, 28 मार्च को एक ‘डाई-नॉन’ आदेश जारी किया था। केरल सेवा नियमों के तहत, मुख्य सचिव वीपी जॉय ने एक आदेश में कहा, “हड़ताल में भाग लेने वाले कर्मचारियों की काम और दफ्तर के समय अनुपस्थिति को Dies Non अर्थात No Work No Pay के अंतर्गत माना जाएगा।”
हड़ताल किसी भी बात के लिए की जाती है तो उसमें नुकसान जनता की ही होता है, वैसे भी कोरोनाकाल में सब ठप्प पड़ा हुआ था, ऐसे में जब कोरोना से लड़कर अब फिर से सभी क्षेत्र खुल रहे हैं तो हड़ताल करकर उसमें व्यवधान पैदा करना कोई खास समझदारी नहीं है। इसी से जुड़ा राष्ट्रव्यापी हड़ताल का समर्थन करते हुए कई सरकारी और गैर सरकारी कर्मचारी इसको सफल कराने के लिए जुट गए जिसके बाद कोर्ट को हस्तक्षेप करना पड़ा क्योंकि कारण बड़ा स्पष्ट था, किसी भी हड़ताल में एक तबके नहीं अपितु पूरे समाज का नुकसान होता है चाहे वो संसाधनों की बर्बादी हो या समय की, अन्तोत्गत्वा पैसा तो फूंकना एक दम तय होता है। इसी को रोकने के लिए केरल सेवा नियमों के भाग 1 के नियम 14 ए के तहत, मुख्य सचिव वीपी जॉय ने एक आदेश में कहा, “हड़ताल में भाग लेने वाले कर्मचारियों की अनधिकृत अनुपस्थिति को डेड-नॉन (कोई काम नहीं, कोई वेतन नहीं) के रूप में माना जाएगा।” आदेश में यह भी कहा गया है कि सरकारी कर्मचारियों को तब तक किसी भी प्रकार की कोई छुट्टी नहीं दी जाएगी जब तक कि व्यक्ति या पत्नी, बच्चों, पिता और माता जैसे रिश्तेदारों की बीमारी न हो।
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आदेश में यह भी कहा गया है कि जिला कलेक्टर, विभागाध्यक्ष, जिला पुलिस प्रमुख आदि “हड़ताल नहीं करने वालों को सुरक्षा प्रदान करने और सरकारी कार्यालयों और संस्थानों तक निर्बाध पहुंच सुनिश्चित करने” और गेट के सामने भीड़भाड़ से बचने के लिए कार्रवाई करेंगे। सरकारी आदेश में कहा गया है कि उच्च न्यायालय ने चल रही हड़ताल को अवैध घोषित किया है और सरकार को कर्मचारियों को हड़ताल में शामिल होने से रोकने का निर्देश दिया है। उच्च न्यायालय ने एलडीएफ सरकार को दो दिवसीय देशव्यापी हड़ताल के तहत अपने कर्मचारियों को ड्यूटी से दूर रहने से रोकने का निर्देश दिया है। अदालत ने कहा कि सरकारी कर्मचारियों को काम में किसी भी तरह की संगठित या संगठित मंदी में शामिल नहीं होना चाहिए।
सौ बात की एक बात यह भी है कि किसी राजनीतिक षड्यंत्र का शिकार होने से बेहतर है कि व्यक्ति को अब अपने बल-बुद्धि और विवेक का उपयोग करना चाहिए क्योंकि सरकार को घेरने के लिए ऐसे कई बंद बुलाए जाते हैं और इसमें पिसता है वो वर्ग जिसे रोज कमाना पड़ता है। इसी को देखते हुए कोर्ट ने हड़ताल की आड़ में सुस्ताने वाले बाबुओं को निर्देशित कर दिया है कि काम नहीं करोगे तो पैसा भी नहीं मिलेगा, जाओ कर लो प्रदर्शन।
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