15 मार्च को एक ऐसे वीर की जयंती है जिनके कारण मुंबई हमले में सैकड़ों निर्दोष लोगों की जान बची थी। आज मेजर संदीप उन्नीकृष्णन का जयंती है। मेजर संदीप नेशनल सिक्योरिटी गार्ड के 51 स्पेशल एक्शन ग्रुप का हिस्सा थे, जो भारत की एक स्पेशल फोर्स है। 15 मार्च 1977 को बेंगलुरु में जन्मे संदीप उन्नीकृष्णन अपने माता-पिता की एकमात्र संतान थे। संदीप उन्नीकृष्णन के पिता, के० उन्नीकृष्णन इसरो के अधिकारी थे। संदीप की विद्यालयी शिक्षा बेंगलुरु के ही द फ्रैंक एंथोनी पब्लिक स्कूल से हुई। उसके बाद उनका परिवार केरल के कोझिकोड जाकर बस गया।
संदीप ने गोलीबारी के बीच पोस्ट का किया था निर्माण
संदीप ने 1995 में नेशनल डिफेंस एकेडमी, पुणे में प्रवेश प्राप्त किया। वह ऑस्कर स्क्वाड्रन (नंबर 4 बटालियन) का हिस्सा थे और 94वें कोर्स एनडीए के स्नातक थे। उनके पास BA की डिग्री थी। 12 जून 1999 को संदीप इंडियन मिलिट्री एकेडमी देहरादून से ग्रेजुएट हुए और बिहार रेजिमेंट की सातवीं बटालियन में ल्यूटीनेंट के पद पर उन्होंने सेवा शुरू की। कारगिल युद्ध में चलाए गए ऑपरेशन विजय के दौरान पाकिस्तान की ओर से की जा रही आर्टिलरी शेलिंग और गोलीबारी के बीच संदीप ने 6 सैनिकों के दल के साथ एक विशेष अभियान को अंजाम दिया। उन्होंने विरोधी पक्ष से 200 मीटर दूरी पर गोलीबारी के बीच एक पोस्ट का सफलतापूर्वक निर्माण किया।
12 जून 2003 को उन्हें कैप्टन के रूप में पदोन्नति मिली। 13 जून 2005 को उन्हें मेजर बना दिया गया। भारतीय सैन्य सेवाओं के सबसे कठिन कोर्स ‛ घातक कोर्स’ में संदीप उन्नीकृष्णन दोबारा टॉपर रहे। इसके बाद उन्हें नेशनल सिक्योरिटी गार्ड का हिस्सा बना दिया गया और अपनी ट्रेनिंग पूरी करने के बाद वह जनवरी 2007 में 51 स्पेशल एक्शन ग्रुप का हिस्सा बने।
मेजर संदीप ने कई लोगों की बड़ी बहादुरी से जान बचाई
26 नवंबर, 2008 में हुए मुंबई हमले में जब चार आतंकी ताज होटल में घुस गए और वहां मौजूद लोगों को बंधक बना लिया तो एनएसजी को बुलाया गया। मेजर संदीप उन्नीकृष्णन ने 10 साथियों की टीम के साथ होटल में प्रवेश किया। सीढ़ियों के रास्ते मेजर संदीप और उनके साथी एक एक फ्लोर पर आतंकियों को खोजते रहे। जब यह दल पांचवें और छठे फ्लोर पर पहुंचा तो वहां बहुत से लोग मौजूद थे जिन्हें सुरक्षित निकालना आवश्यकता था। इन लोगों को सुरक्षित निकालने के बाद जब मेजर संदीप और उनका दल चौथे फ्लोर पर पहुंचा तो उन्हें एक कमरे में आतंकियों के छुपे होने का संदेह हुआ। जब एनएसजी की टीम कमरे में घुसी तो आतंकियों ने गोली चला दी जिसके कारण एनएसजी कमांडो सुनील कुमार यादव के दोनों पैरों में गोली लग गई। मेजर संदीप ने उनकी जान बचाई। इसी बीच आतंकवादी भाग निकले।
अगले 15 घंटों तक मेजर संदीप की टीम ने होटल से आम लोगों को बाहर निकाला। सभी होस्टेज को बचाने के बाद मेजर संदीप और उनकी टीम ने एक अत्यंत साहसपूर्ण निर्णय लिया। उन्होंने अपनी टीम के साथ होटल की मुख्य सीढ़ियों से ऊपर जाने का फैसला किया। इसमें जोखिम यह था कि मुख्य सीढ़ियां चौड़ी थी और चारों ओर से खुली हुई थी। ऐसे में आतंकी किसी भी ओर से हमला कर सकते थे। हुआ भी यही और आतंकियों ने पहले फ्लोर से एनएसजी की टीम को देखते ही गोली चलाना शुरु कर दिया। इसमें एक और कमांडो सुनील कुमार जोधा घायल हो गए किंतु अब एनएसजी की टीम को आतंकियों के छिपे होने की जगह का पता लग चुका था। संदीप ने सुनील कुमार जोधा को आतंकियों से बचाया और उन्हें अपने अन्य साथियों के साथ नीचे भेज दिया। जबकि स्वयं संदीप अकेले ही आगे आतंकियों से भिड़ गए।
क्रॉस फायरिंग में संदीप वीरगति को प्राप्त हुए थे
उन्होंने चारों आतंकियों को खदेड़ कर होटल के दक्षिणी हिस्से में स्थित बॉलरूम में घेर लिया। भागने का रास्ता बंद था और आतंकी फँस चुके थे। जब तक बैकअप टीम नहीं पहुंची संदीप अकेले ही उन आतंकियों से लड़ते रहे। इस क्रॉस फायरिंग में संदीप वीरगति को प्राप्त हो गए।
हालांकि उनके अदम्य साहस के कारण ही चारों आतंकी बॉलरूम में घेरे जा सके और उन्हें भागने का मौका नहीं मिला। इसके बाद एनएसजी कमांडो के दल ने चारों आतंकियों को मार गिराया।
संदीप के अदम्य साहस के कारण ना केवल सैकड़ों आम लोगों की जान बच गई बल्कि उनके दल के दो कमांडो की जान भी संदीप नहीं बचाई। उनकी सूझबूझ और बहादुरी के कारण ही आतंकियों का पता लग पाया अन्यथा उन्हें खोजने में और अधिक समय लगता है और अन्य आम लोगों के मारे जाने का खतरा बना रहता है। उनकी वीरता के कारण उन्हें मरणोपरांत अशोक चक्र मिला। 26 जनवरी 2009 को संदीप उन्नीकृष्णन की मां धनलक्ष्मी उन्नीकृष्णन ने भारत की राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल से संदीप का अशोक चक्र प्राप्त किया। वीर संदीप उन्नीकृष्णन के जन्मदिवस पर TFI मीडिया ग्रुप उन्हें नमन करता है।