समय का चक्र बड़ा बेजोड़ होता है, ये घूमकर पुनः वहीं आता है जहां से वह प्रारंभ होता है। यही बात मनुष्यों पर भी लागू होती है, और ये बात नवजोत सिंह सिद्धू से बेहतर कौन जान सकता है। हाल ही में पंजाब विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का घमंड टूटा, जब आम आदमी पार्टी ने प्रचंड बहुमत से चुनाव में विजय प्राप्त करते हुए 117 में से 92 सीटों पर कब्ज़ा प्राप्त किया। परंतु उससे भी अधिक घमंड टूटा नवजोत सिंह सिद्धू का, जिसने सत्ता के लालच में पहले पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह [सेवानिर्वृत्त] को पार्टी से निकलवाया, उसके बाद अपने आप को सीएम बनवाने के लिए पार्टी को दो फाड़ करने की नौबत कर डाली।
लेकिन चुनाव में पार्टी को सत्ता में लाना तो दूर की बात, नवजोत सिंह सिद्धू तो स्वयं चुनाव नहीं जीत पाए। अमृतसर पूर्व की विधानसभा सीट पर लड़ते हुए वह आम आदमी पार्टी की उम्मीदवार जीवनज्योत कौर से लगभग 6000 से कुछ अधिक वोटों से हार गए –
https://results.eci.gov.in/ResultAcGenMar2022/ConstituencywiseS1918.htm?ac=18
जब कभी वह शीर्ष पर हुआ करते थे
इस पराजय से एक बार फिर नवजोत सिंह सिद्धू वहीं आकर खड़े हो चुके हैं जहां से उन्होंने अपना जीवन प्रारंभ किया था। 1983 में अपने उत्कृष्ट राष्ट्रीय परफ़ोर्मेंस के चलते इन्हे भारतीय क्रिकेट टीम में जगह मिली और इन्हे वेस्ट इंडीज के विरुद्ध पदार्पण करने का अवसर मिला। हालांकि इनका पदार्पण कुछ खास नहीं रहा और यह दो ही मैचों के बाद टीम से बाहर हो गए। तब एक प्रसिद्ध क्रिकेट विश्लेषक राजन बाला ने द इंडियन एक्सप्रेस में सिद्धू के बारे में लिखा था, ‘Sidhu – The Strokeless Wonder’, यानि सिद्धू, वह व्यक्ति जिसमें प्रतिभा तो है, पर उससे सिद्ध करने में शून्य सिद्ध हुए हैं।
इसके पश्चात 4 वर्ष बाद जाकर सिद्धू को भारतीय टीम में जगह मिली, और वह भी सीधे 1987 के रिलायंस विश्व कप में। इस अवसर को नवजोत सिद्धू ने अपने हाथ से बिल्कुल भी जाने नहीं दिया और ताबड़तोड़ 4 मैचों में 4 अर्धशतक जड़े और भारत के सेमीफाइनल यात्रा में एक महत्वपूर्ण भूमिका भी निभाई। नवजोत की आक्रामकता को देखते हुए इसी संस्करण के विजेता ऑस्ट्रेलिया के तत्कालीन कप्तान एलन बॉर्डर ने कहा, “जब ये बावला गेंद को मारता है ना, तो मारता ही चला जाता है”।
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यही बात नवजोत सिंह सिद्धू पर लागू होती थी। कई वर्षों तक उन्होंने भारत के लिए शानदार ओपनिंग की और 1999 में उन्होंने 7000 से अधिक अंतर्राष्ट्रीय रनों के साथ सन्यास लेने का निर्णय लिया। 2001 में उन्होंने क्रिकेट कमेंटरी में अपने हाथ आजमाए और काफी लोकप्रिय भी हुए, क्योंकि वे अंग्रेजी और हिन्दी दोनों में निपुण थे।
अब जो व्यक्ति इतना लोकप्रिय हो, उसके लिए राजनीति एक ऑटोमैटिक स्टेप ही होगा। इसी पर प्रकाश डालते हुए TFI के संस्थापक अतुल मिश्रा ने पूर्व और वर्तमान के टाइमलाइन को मिलाते हुए लिखा,
“……
2001 – सिद्धू बने क्रिकेट कमेंटेटर
2004 – सिद्धू ने भाजपा जॉइन की
2004 – सिद्धू ने अमृतसर से लोकसभा चुनाव जीता
2009 – सिद्धू ने पुनः अमृतसर से लोकसभा चुनाव जीता
2016 – सिद्धू राज्यसभा के सदस्य बने
2016 – सिद्धू ने राज्यसभा से त्यागपत्र दिया
2016 – सिद्धू ने खुद की पार्टी बनाई आवाज ए पंजाब
2016 – सिद्धू ने आवाज ए पंजाब को भंग कर कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण की
2017 – सिद्धू ने अमृतसर पूर्व विधानसभा सीट से विजय प्राप्त की
2019 – सिद्धू ने पंजाब कैबिनेट से इस्तीफा दिया
2021 – सिद्धू पंजाब कांग्रेस का अध्यक्ष बनता है
2022 – सिद्धू अमृतसर पूर्व सीट से हारता है और फिर ढाक के तीन पात हो जाता है….” –
Sidhu – A timeline of the political career of a nutcase
1999: Sidhu quits Cricket and becomes a nobody
— Atul Kumar Mishra (@TheAtulMishra) March 11, 2022
अब राजनीति में जब इन्होंने 2004 से 2016 तक तक भाजपा का साथ दिया, तो इनके लिए सब चंगा सी था। परंतु जब इन्हे अपने हित के अनुकूल कार्य नहीं दिखे, तो सिद्धू की अवसरवादिता जागी, और महोदय ने कुछ ही समय में तुरंत कांग्रेस जॉइन कर ली, और राष्ट्रवादिता, देशभक्ति को ऐसे किनारे रख दिया, मानो दूर दूर तक कोई नाता तक नहीं था।
सत्ता के लोभ में जिस पार्टी ने जिन्हे ‘आश्रय दिया’, उसी के विघटन में भी जनाब ने कोई कसर नहीं छोड़ी, और जब कैप्टन अमरिंदर सिंह ने इनकी हरकतों के प्रति सचेत करने का प्रयास किया, तो उन्हे भी निकलवा दिया। लेकिन आज जिस प्रकार से सिद्धू न घर के रहे, न घाट के, उससे एक बात तो स्पष्ट होती है – समय का चक्र अवश्य घूमता है, और उसके प्रभाव से कोई नहीं बच सकता, स्वयं सिद्धू भी नहीं, और अभी तो वकार यूनुस वाले स्पेशल मैच की चर्चा भी नहीं की है।
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