जिसकी नियत अच्छी होती है उसके साथ कभी अन्याय नहीं हो सकता है। ऐसे में सबसे विकाराल परिस्थिति से जुझ रहे विश्व को अभी एक ही चिंता खाए जा रही है कि कैसे भी करके रूस और यूक्रेन का युद्ध रुक जाए। ऐसे में भारत के पूरे मसले पर रहे रवैये को अब क्वाड देशों की स्वीकार्यता मिल गई है। ऑस्ट्रेलियाई दूत बैरी ओ’फैरेल’ ने कहा कि क्वाड सदस्य यूक्रेन संकट पर भारत की स्थिति को समझते हैं। उन्होंने माना कि भारत का रुख तटस्थ क्यों था?
संघर्ष तत्काल समाप्त करने की भारत ने की है मांग
भारत क्वाड का एकमात्र ऐसा सदस्य है जिसने यूक्रेन पर रूस के आक्रमण की निंदा नहीं की है या राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन या रूसी बैंकों और संस्थाओं के खिलाफ दंडात्मक उपायों का समर्थन नहीं किया है। आपको बता दें कि क्वाड देशों में ऑस्ट्रेलिया, जापान और अमेरिका जैसे देश शामिल हैं। जहां तक भारत के रुख की बात करें तो भारत ने राज्यों की क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान करने का आह्वान किया है और यूक्रेन में संघर्ष को तत्काल समाप्त करने की मांग की है।
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ऑस्ट्रेलियाई उच्चायुक्त बैरी ओ’फेरेल की टिप्पणी 24 फरवरी को डोनेट्स्क के यूक्रेनी क्षेत्रों के समर्थन में पुतिन द्वारा “विशेष सैन्य अभियान” पर रूस के खिलाफ एक मजबूत स्थिति लेने पर क्वाड के सदस्यों के बीच मतभेद के बारे में अटकलों की खबरों के खिलाफ आई थी। तिल का ताड़ बनाने की इस प्रवृत्ति पर अंकुश लगाने के लिए ऑस्ट्रेलियाई दूत की यह टिप्पणी बेहद अहम हो जाती है।
सत्य तो ये है की रुस-युक्रेन विवाद के बीच भारत को कैसे नीचा दिखाया जाए, कैसे उसको दबाया जाए कुछ पश्चिमी देश इसी जुगत में थे पर अब आया यह बयान सब की तैयारी को ध्वस्त कर गया। ऑस्ट्रेलियाई उच्चायुक्त बैरी ओ फैरेल ने रविवार को कहा कि चतुर्भुज सुरक्षा वार्ता या क्वाड के सदस्य यूक्रेन संकट पर भारत की स्थिति को समझते हैं और प्रत्येक देश के अपने द्विपक्षीय संबंध हैं।
कठपुतली देशों के मनसूबों पर फिरा पानी
जाकी रही भावना जैसी प्रभु मूरत देखि तीन तैसी। जब ऑस्ट्रेलियाई दूत को ये बात इतनी सरलता से समझ आ गई और बाद में वो उसके प्रति ऐसी प्रतिकृति भी दे रहा है तो अन्य सभी राष्ट्रों ने आंखें क्यों मूंद लीं वो इसलिए क्योंकि उससे एजेंडा नहीं चलेगा और एजेंडा नहीं चलेगा तो रोटी के लाले पड़ जाएंगे क्योंकि जब टूकडों पर और भीख पर आश्रित होकर देश चलता हो तो शामिल होना पड़ता है हर उस भारत विरोधी एजेंडे में जिसका सरोकार भारत से होता है। ऐसे देशों का बस एक ही मंत्र होता है, चुल्हे में जाए कुटनीतिक और द्विपक्षिय संबंध हमें तो बस जो आका कहेंगे हम वही कहेंगे। सच को हज़म कर पाना आज भी मुश्किल पड़ता है और उन में भी जब बात दुर्भावना और नीचा दिखाने की हो तो क्या ही कहना, ऐसे कठपुतली देशों के मनसूबों पर तो पानी फिरना ही था।
प्रधानमंत्री मोदी ने पुतिन और यूक्रेन के राष्ट्रपति वलोडिमिर ज़ेलेंस्की दोनों के साथ ही अपनी हालिया फोन पर हुई बातचीत में शत्रुता को तत्काल समाप्त करने और कूटनीति और बातचीत के रास्ते पर लौटने का आह्वान किया है।
शनिवार को वार्षिक भारत-जापान शिखर सम्मेलन के बाद, एक जापानी प्रवक्ता ने कहा कि जापान के प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा ने यूरोप में संकट को कम करने की आवश्यकता पर पुतिन को प्रभावित करने के लिए मोदी से अधिक सहयोग मांगा था। किशिदा ने यह भी कहा कि यूक्रेन पर रूसी हमले ने “अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था की जड़ें हिला दी हैं” और यथास्थिति को बदलने के एकतरफा प्रयास दुनिया के किसी भी हिस्से में अस्वीकार्य हैं।
ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन ने और क्या कहा?
दूसरे भारत-ऑस्ट्रेलिया आभासी शिखर सम्मेलन से पहले शुक्रवार को जारी एक बयान में, ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन ने कहा कि उन्होंने मोदी के साथ कई क्षेत्रीय और बहुपक्षीय मुद्दों पर चर्चा करने की योजना बनाई है, जिसमें “यूक्रेन की स्थिति और भारत के लिए इसके निहितार्थ शामिल हैं।” रविवार को एक संवाददाता सम्मेलन में, मॉरिसन ने कहा कि ऑस्ट्रेलिया रूस के यूक्रेन के “अकारण, अनुचित आक्रमण” की निंदा करना जारी रखेगा और रूस से अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय के कानूनी रूप से बाध्यकारी निर्णय के अनुरूप यूक्रेनी क्षेत्र से अपनी सेना को तुरंत वापस लेने का आह्वान करेगा।
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उन्होंने कहा कि रूस की कार्रवाई अंतर्राष्ट्रीय कानून और उन सिद्धांतों का घोर उल्लंघन है जो स्वतंत्रता के पक्ष में नियम-आधारित आदेश का समर्थन करते हैं। “यूक्रेन में जो होता है वह सिर्फ यूरोप को प्रभावित नहीं करता है।”
ओ’फैरेल ने उल्लेख किया कि फरवरी में क्वाड नेताओं के शिखर सम्मेलन में सभी सदस्यों ने माना था कि प्रत्येक देश का अपने विशेष द्विपक्षीय संबंधों के कारण यूक्रेन संकट पर एक अलग दृष्टिकोण है। उन्होंने कहा कि क्वाड इंडो-पैसिफिक पर केंद्रित है, जबकि वर्चुअल शिखर सम्मेलन से पहले मॉरिसन के बयान ने यह स्पष्ट कर दिया था कि वह इंडो-पैसिफिक के निहितार्थ पर चर्चा करना चाहते हैं।
एजेंडा चलाने में लगे लोगों के प्रयास पानी में
सारगर्भित बात यह है कि, एजेंडा चलाने वालों के सभी प्रयासों की लंका दहन होने के साथ ही भारत की मजबूती भी प्रत्यक्ष रूप से सामने आ गई कि इधर से उधर हो सकता है पर भारत और उसका आज का रुख मजाल है जो एक पत्ता दूर भी हो जाए। निश्चितरुप से आज अन्य सभी देश भारत की शक्ति और मैत्रीपूर्ण संबंधों से सीख ले रहे हैं की कैसे अपनी बात पर अडिग रहकर कठिन रास्ते पार किए जाते हैं।