मोदी सरकार ने सेना के आधुनिकीकरण के साथ ही सैन्य हथियारों के स्वदेशीकरण की प्रक्रिया को संकल्पपूर्वक आगे बढ़ाया है। भारत ने एक ऐसा दौर भी देखा है, जब भारतीय सेना भारतीय कंपनियों द्वारा बनाए जाने वाले हथियारों को विश्वसनीय नहीं मानती थी। एलसीए तेजस विमान बनाने में 4 दशक का समय लगा था। 1984 में विमान बनना शुरू हुआ और 2016 में पहली स्क्वाड्रन के पहले विमान ने उड़ान भरी। लेकिन अब समय बदल गया है, और अब सेना तथा सरकार न केवल भारतीय कंपनियों पर विश्वास कर रहे हैं, बल्कि भारत रक्षा निर्यातक देश भी बन रहा है, और विदेशों में भी भारतीय सैन्य उपकरणों की मांग बढ़ रही है।
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स्वदेशी उपकरण बनाने पर जोर
25 मार्च को भारतीय सेना से जेन टेक्नोलॉजीज लिमिटेड को बड़ा ऑर्डर मिला है। शेयर बाजार को दी जानकारी के मुताबिक कंपनी सेना के लिए इंटीग्रेटेड एयर डिफेंस कॉम्बैट सिम्युलेटर बनाएगी। इसके अतिरिक्त पहले से मौजूद रशियन मूल के हथियार के स्पेयर पार्ट्स में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने के लिए 107 प्रकार के उपकरणों के आयात पर प्रतिबंध लगाया गया है। इन्हें अगले 6 वर्षों में पूरी तरह स्वदेशी रूप से बनाया जाएगा अर्थात यह स्पेयर पार्ट्स भारत में ही बनाए जाएंगे।
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रक्षा निर्यातक देश के रूप में आगे बढ़ता भारत
विदेशी निर्यात की बात करें तो सरकार ने 25 मार्च को जानकारी दी है, कि देश का रक्षा निर्यात पिछले 7 वर्षों में 6 गुना बढ़ा है। वित्तीय वर्ष 2014-15 में भारत ने 1,941 करोड़ रुपये का निर्यात किया था। वर्ष 2021-22 में यह निर्यात बढ़कर 11,607 करोड़ हो गया है। रक्षा मंत्रालय द्वारा 2017 में 254 की तुलना में, 2018 में 288, 2019 में 668, 2020 में 829 और वर्ष 2021 में 954 निर्यात प्राधिकरण जारी किए। अर्थात रक्षा उपकरणों की बिक्री के लिए दूसरे देशों के साथ होने वाले समझौतों में पिछले 5 वर्षों में लगभग 4 गुना वृद्धि हुई है। भारत सरकार की योजना वर्ष 2025 तक सैन्य उपकरणों के निर्यात को 5 बिलियन डॉलर अर्थात लगभग 36,500 करोड़ रुपए के स्तर पर पहुंचाने की है। इस लक्ष्य की प्राप्ति हेतु सरकार ने निजी कंपनियों की भागीदारी सुनिश्चित कर एवं ऑर्डिनेंस फैक्ट्री बोर्ड को 7 भागों में बांट कर आवश्यक सुधार लागू कर दिए। हाल ही में भारत ने फिलीपींस के साथ 2770 करोड़ रुपए की लागत पर ब्रह्मोस मिसाइल निर्यात का समझौता किया है। फिलीपींस के अतिरिक्त वियतनाम भी इस मिसाइल को लेकर अपनी रुचि व्यक्त कर चुका है। इसके अतिरिक्त सऊदी अरब और यूएई के साथ भी ब्रम्होस के निर्यात हेतु बात चल रही है।
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भारत द्वारा निर्यात किये जाने वाले प्रमुख हथियार
भारत का प्रमुख निर्यात ब्रह्मोस मिसाइल सिस्टम है , किन्तु भारत ब्रह्मोस मिसाइल सिस्टम के अतिरिक्त भारत की एयर डिफेंस सिस्टम आकाश, एयर टू एयर मिसाइल अस्त्र, लाइट कॉम्बैट हेलीकॉप्टर तेजस आदि की निर्यातक क्षमता भी रखता है । इसके अतिरिक्त भारत रडार सिस्टम के निर्यात पर जोर दे रहा है। चीन का दक्षिणी चीन सागर में बढ़ता प्रभाव और अमेरिका को उसे रोकने में हो रही असफलता, भारत के लिए सुनहरा अवसर बन सकती है। पूर्वी एशियाई देश भारत के लिए बड़ा रक्षा बाजार बन सकते हैं। इसके अतिरिक्त खाड़ी देशों को होने वाले अस्त्र निर्यात पर बाइडेन प्रशासन ने रोक लगा दी हैं। यह क्षेत्र भी भारत के लिए एक बड़ा रक्षा बाजार बन सकता है। महत्वपूर्ण है कि चीन भी इसी क्षेत्र में नजर गड़ाए है। इसके अतिरिक्त अफ्रीका में भी भारत को रक्षा बाजार उपलब्ध हो सकते है।
रक्षा निर्यात ना केवल आर्थिक लाभ देते हैं बल्कि यह कूटनीतिक शक्ति का विस्तार करते हैं। रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता किसी भी देश की सुरक्षा के लिए सबसे जरूरी है । पश्चिमी यूरोप के देश अमेरिका के पीछे इसलिए खड़े होते हैं, क्योंकि अपनी सुरक्षा हेतु वह अमेरिकी हथियारों पर निर्भर है। बिना सशक्त डिफेंस मैन्युफैक्चरिंग उद्योग के भारत महाशक्ति नहीं बन सकता है।