मुग़ल कौन थे, क्या थे और कैसे थे यह हमारे देश में अभी भी विवाद का विषय बना हुआ है? यह विवाद अज्ञानता के कारण नहीं बल्कि तुष्टीकरण के कारण है। हमारे तथाकथित बुद्धिजीवियों को लगता है कि मुगलों की सच्चाई खुल गयी तो इससे समाज का एक वर्ग नाराज़ हो जाएगा और समाज के उस वर्ग का दुस्साहस देखिए कि मुगलों की असलियत जानने के बावजूद भी वो उसे अपना आदर्श मानता है। सब जानते हैं की उन्होंने हजारों हिंदू मंदिर तोड़े, सीख धर्म के गुरुओं को मारा, बलात् धर्मांतरण करवाया, स्त्रियों की अस्मिता लूटी, धर्म के नाम पर नरसंहार किए, यहां तक की धर्म के आधार पर कर भी लगाए। हमारी परंपरा को छिन्न-भिन्न करके रख दिया। पर अज्ञानता, विविधता, धर्मनिरपेक्षता और सहिष्णुता के नाम पर हमने आक्रमणकारियों और हत्यारों तक को अपना लिया या यूं कहें की अपनाने के लिए हमें मजबूर कर दिया गया।
विदेशी धरती से हुआ है मुगलों की सच्चाई का खुलासा!
पर आप सोच रहे होंगे कि आज हम आपको मुगलों से जुड़ा इतिहास क्यों बता रहें हैं? आज हम मुग़ल से जुड़ा इतिहास आपको इसलिए बता रहे हैं क्योंकि मुग़लों और मुस्लिम आक्रमणकारियों से जुड़ी सच्चाई का खुलासा इस बार विदेशी धरती से हुआ है। दरअसल, पिछले एक हफ्ते से विश्व रूस और यूक्रेन के बीच विध्वंशक युद्ध देख रहा है। यूक्रेन पूरी तरह से लाचार और परेशान है। इसी बीच यूक्रेन में बमबारी और गोलेबारी को रोकने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से अपील करते हुए, भारत में यूक्रेन के राजदूत डॉ. इगोर पोलिखा ने रूसी आक्रमण की तुलना राजपूतों के खिलाफ मुगलों द्वारा आयोजित छल पूर्वक किए गए नरसंहार से की। यूक्रेन के राजदूत डॉ. इगोर पोलिखा ने मुग़लों के बाद नादिर शाह का भी जिक्र किया। उन्होंने खुले तौर पर यह कहा कि जिस तरह नादिर शाह ने खुलेआम दिल्ली की जनता का कत्लेआम किया उसी तरह रूस की सेना यूक्रेन के साथ कर रही है।
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आपको बता दें की रूस ने 24 फरवरी को यूक्रेन पर हमला किया और तब से पूरे देश में निरंतर बमबारी हो रही है। हमारे देश में आज भी मुग़लों को लेकर देश के कुछ लिबरल समूहों और राजनेताओं के बीच मतभेद दिखाई पड़ता है। कुछ लिबरल लोग यह तक कहते हुए पाए गए हैं कि मुग़ल शासन बहुत अच्छा था जबकि कुछ स्वदेशी इतिहासकार का मत उनके विपरीत है यानी कि मुग़ल देश के आक्रांता और दुष्ट प्रवृत्ति वाले शासक थे।
यूक्रेन के राजदूत ने क्योंकि नादिर शाह की तुलना यूक्रेन-रूस युद्धा से?
लेकिन आज के परिदृश्य में उन्होंने मुग़लों की सच्चाई पूरे विश्व के सामने उजागर कर दी है। अब हम आपको फिर से डॉ. इगोर पोलिखा द्वारा मुग़लों और राजपूतों पर दिए गए बयान पर ले चलते हैं। प्रश्न यह है कि आखिर यूक्रेन के राजदूत ने नादिर शाह की तुलना यूक्रेन और रूस के बीच युद्ध से क्यों की? दरअसल, नादिर शाह का इतिहास भी बहुत ही क्रूर था। ईरान के नादिर शाह ने करनाल में आसानी से मुगल सेना को कुचलने और दिल्ली में प्रवेश करने के बाद भी शहर में नरसंहार करने का आदेश दिया था इस दौरान 30,000 से अधिक निर्दोषों को मार दिया गया।
हमारे इतिहास, फिल्मों और किताबों में मुग़लों की सामान्य धारणा उदार और रोमांटिक राजाओं के रूप में है। हम में से कितने जानते हैं कि मुगल तो वास्तव में लुटेरे, आक्रांता, अन्यायी, अत्याचारी और व्यभिचारी थे? सच्चाई यह है कि हम में से कई लोग उनकी भयानक क्रूरता से अवगत तो हैं लेकिन बोल नहीं पाते। यूक्रेन के राजदूत ने इसलिए बोल दिया क्योंकि उन्हें किसी के गुस्से से फर्क नहीं पड़ता, जो सच है सो है।
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बाबर की आत्मकथा ‘तुज़ुक-ए-बाबरी के मुताबिक बाबर के युद्धाभियान में हिन्दू व सिख नागरिकों और गैर-सुन्नी मुसलमानों को निशाना बनाया गया। अनेक नरसंहार हुए और मुस्लिम शिविर ‘काफिरों के सिरों की मीनारों’ के रूप में जाने जाने लगे। बाबर ने भारत पर आक्रमण को और खासकर राणा सांगा के साथ युद्ध को एक इस्लामिक जिहाद के तौर पर लिखा और तो और वो अपने आप को गाज़ी मानता था। बाबरनामा में कई हिन्दू नरसंहारों का उल्लेख है। बहुत से राष्ट्रवादियों का मानना है कि राम जन्मभूमि पर स्थापित मंदिर को तोड़ कर वहां बाबरी मस्जिद भी उसके सिपहसालार मीर बाकी ने बनवायी थी।
जब दिल्ली में मचा था भयानक कत्लेआम!
1739 में जब वह दिल्ली पहुंचा तब उस समय यह अफ़वाह फैली कि नादिर शाह मारा गया। इससे दिल्ली में भगदड़ मच गई और फारसी सेना का कत्लेआम शुरू हो गया। उसने इसका बदला लेने के लिए दिल्ली में भयानक कत्लेआम मचाया था। कहते हैं कि एक दिन में उसने 20000-22000 लोगों की हत्या कर दी। इसके अलावा उसने उस समय दिल्ली की सत्ता पर आसीन मुगल बादशाह मुहम्मद शाह आलम से विपुल धनराशि भी जप्त कर ली। औरंगजेब के मंदिर विध्वंस के बारे में कौन नहीं जानता? जहांगीर के द्वारा किए गए क्रूरतापूर्ण नरसंहार और धर्मांतरण से कौन अवगत नहीं हैं? सिख गुरुओं को किसने मारा? हम सभी जानते हैं।
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यूक्रेन के राजदूत ने ऐसा इसलिए कहा होगा क्योंकि हमारे वामपंथी इतिहासकारों और तुष्टीकरण के पुरोधा राजनेताओं ने इस तथ्य को बड़ी ही चालाकी से दबा दिया। आरसी मजूमदार जैसे इतिहासकर पीछे छूट गए और हममें हीनता का भाव लाल सलाम वाले और गोरे इतिहासकारों ने भर दिया। जाने अनजाने में यूक्रेन के राजदूत ने इसी की अभिव्यक्ति की है।