जहांगीरपुरी में क्या हुआ हम सभी जानते हैं। अगर नहीं जानते तो देश का एक जागरूक नागरिक होने के नाते इस विवाद के बारे में जानना हमारा उत्तरदायित्व बनता है। जहांगीरपुरी उत्तरी पश्चिम दिल्ली के 1 वर्ग किलोमीटर में बसा हुआ एक इलाका है। जहांगीरपुरी के अंतर्गत 12 ब्लॉक और 3 विधानसभा क्षेत्र आते हैं। इसे A से लेकर H ब्लॉक में बांटा गया है।
जहांगीरपुरी का इतिहास
अत्यंत रोचक रहा है। 1975 के आपातकाल के दौरान इंदिरा गांधी मंत्रिमंडल का सारा कार्यभार संजय गांधी देखते थे। संजय गांधी ने दिल्ली के सौंदर्यीकरण पर कार्य शुरू किया। इस दौरान नगर पालिका और दिल्ली विकास प्राधिकरण को दिल्ली के केंद्रीय भाग में स्थित झुग्गी झोपड़ियों को हटाने का निर्देश दिया गया। इसी निर्देश के पालन के तहत थॉमसन रोड, मिंटू रोड आदि स्थानों पर बसे यूपी-बिहार, राजस्थान और बंगाल के मजदूरों को जहांगीरपुरी और मंगोलपुरी इलाके में लगभग 30-30 गज के प्लॉट आवंटित किए गए। अतः, इन इलाकों में हिंदू और मुस्लिम आबादी लगभग बराबर है। किंतु समस्या का सृजन तब हुआ जब इन इलाकों में मुख्य रूप से जहांगीरपुरी के सी ब्लॉक में बेतरतीब और आड़े-तिरछे गलियों में बसे मुस्लिम समुदाय के लोगों ने रोहिंग्याओं को बसाने के साथ-साथ जुआ, सट्टा, वसूली, फिरौती, रंगदारी हत्या आदि अनैतिक अवैध और सामाजिक कार्य आरंभ कर दिया।
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इसी जुआ-सट्टा, वसूली-फिरौती, रंगदारी-हत्या, नशा-तस्करी और चोरी आदि के कार्यों को संचालित करने के लिए छोटे-छोटे रेहड़ी पटरी और कबाड़ का कार्य करने वालों को बसाकर एक सुरक्षा कवच तैयार किया गया। जब भी किसी अवैध कार्य को रोकने के लिए पुलिस-प्रशासन इन इलाकों में पहुंचती थी तब यही रोहिंग्या हाथ में पत्थर और लाठी लेकर के अंसार जैसे आतंकियों का बचाव करते थे, पुलिस पर पथराव करते थे। इस बार ये पथराव हनुमान जयंती के शोभायात्रा पर हुई और दैनिक रूप से अतिक्रमण हटाने का कार्य करने वाली एमसीडी पर मुसलमान विरोधी कारवाई करने का आरोप लगा दिया गया। इस सांप्रदायिक ध्रुवीकरण पर राजनीतिक दल अपनी रोटियाँ तो सेंक लेंगे पर दो प्रश्न जो अनुत्तरित रह जाएंगे वो ये है की रोहिङ्ग्या और अवैध निर्माण तथा अतिक्रमित स्थानों का क्या होगा? क्या ये समस्या ऐसे ही रह जाएगी? क्या इसे भी लाउडस्पीकर जैसा सांप्रदायिक रंग देकर हमेशा के लिए लटका दिया जाएगा?
वर्तमान समय में हमारा देश संविधान, राजनीति, धर्म और न्याय के बीच के संघर्षों को देख रहा है। संविधान सर्वोच्च है। किन्तु, एक विशेष समुदाय मजहब को अधिक अहमियत देता है। अर्जनीति इसी अहमियत को उभारती है और संविधान सर्वोच्चता को नकारती है। न्याय क्या करता है? न्याय बस देखता रहता है।
संविधान कहता है
आप सार्वजनिक संपतियों का संरक्षण और संवर्धन करेंगे। परंतु, धर्म को अहमियत देने के कारण मुस्लिम समुदाय सार्वजनिक संपतियों का अतिक्रमण कर अवैध निर्माण, भू-जिहाद और रोहिङ्ग्या आबाद में लिप्त है। राजनीति उनके मझाबी अहमियत को समझते हुए उल्टा सत्ता से प्रश्न पूछने लगती है की आखिर आपने अतिक्रमण हटाया क्यों? मामले को लटकाने के लिए कानूनी पेचीदगी का सहारा लिया जाता है और न्याय इन्ही कानूनी जटिलता, राजनीतिक दबाव और मझहबी उन्माद में फँसकर सिर्फ तमाशा देखता है।
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यह पहली बार नहीं है जब जहांगीरपुरी क्षेत्र में अतिक्रमण विरोधी अभियान चलाया गया है। इस साल जनवरी से 19 अप्रैल तक जहांगीरपुरी में अस्थायी अतिक्रमण हटाने के लिए चार अभियान चलाए गए हैं। उत्तरी दिल्ली नगर निगम के आयुक्त संजय गोयल ने कहा कि सड़क या सार्वजनिक भूमि पर ‘अस्थायी अतिक्रमण’ की कार्यवाही पर दिल्ली नगर निगम (डीएमसी) अधिनियम की धारा 321,323, और 325 के तहत अग्रिम नोटिस देने की आवश्यकता नहीं है। कभी-कभी हटाए गए लोग फिर से अतिक्रमण कर लेते हैं, इसलिए इस अभ्यास को लगातार करना पड़ता है। एनडीएमसी ने कहा कि एक घर को गिराना और सार्वजनिक भूमि से अतिक्रमण हटाना दो अलग-अलग चीजें हैं। दिल्ली में सार्वजनिक सड़कों, जल निकायों और रेलवे भूमि पर अतिक्रमण की समस्या तेजी से बढ़ रही है, जिसने सरकार को बेदखली के लिए अदालतों का रुख करने के लिए मजबूर किया और अब यह राजधानी के लिए एक बड़ी चुनौती है।
पूर्व में सुप्रीम कोर्ट ने अतिक्रमण के मुद्दे पर बार-बार हस्तक्षेप किया और दिल्ली पुलिस, नगर निगम और अन्य कानून प्रवर्तन अधिकारियों को अनधिकृत बस्तियों और अतिक्रमणों को हटाने के लिए आगे बढ़ने के लिए कहा था, लेकिन कुछ भी ठोस नहीं हो रहा है। 600 जलाशयों के सर्वेक्षण में से 400 से अधिक पर अतिक्रमण है। यह इकोसिस्टम के लिए बेहद खतरनाक चीज है। अन्य सार्वजनिक भूमि जैसे रेलवे भूमि, एमसीडी भूमि आदि पर भी अतिक्रमण किया गया है, इसलिए उल्लंघनकर्ताओं को बेदखल करने के लिए सभी अधिकारियों और सरकारी एजेंसियों को शामिल करते हुए एक एकीकृत कार्य योजना होना महत्वपूर्ण है।
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