अमेरिका हमेशा से अपनी विदेश नीति को लेकर कन्फ्यूज रहा है. भारत के प्रति उसकी गलतफहमी तुलनात्मक रूप से कुछ ज्यादा ही रही है. मुख्य रूप से भारत के मामले में अमेरिका का रवैया इसलिए गलत रहा है क्योंकि वह सहभागिता नहीं अपितु, आधिपत्य में विश्वास रखता है. आधिपत्य जमाने की यही भावना असुरक्षा को जन्म देती है और इसी असुरक्षा के चक्रव्यू को तोड़ते हुए भारत ने संतुलित निष्पक्ष और स्वतंत्र विदेश नीति का मार्ग चुना. परंतु, शीत युद्ध के समय जब पूरा विश्व द्विपक्षीय हो चुका था, उस समय भी भारत ने संतुलन, निष्पक्षता और अपनी संप्रभुता को साधते हुए गुटनिरपेक्षता का प्रतिनिधित्व किया और आज के जमाने में जब पूरा विश्व बहुध्रुवीय हो चुका है तब भी भारत अपनी इसी निष्पक्ष और स्वतंत्र विदेश नीति पर कायम रहते हुए रूस और यूक्रेन विवाद के मामले में भी संतुलन को साध रहा है। बढ़ते भू-राजनीतिक तनाव के बीच संयुक्त राज्य अमेरिका ने भारत को रूस के साथ गुटनिरपेक्ष और G77 साझेदारी के अपने दीर्घकालिक कूटनीतिक इतिहास से दूर जाने की याचना की है.
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भारत को साधने की कोशिश में लगा अमेरिका
दरअसल, अमेरिकी कांग्रेस की नेता बुर्चेट ने पूछा, “मैं सोच रही हूं, क्या यूक्रेन पर रूस के युद्ध में भारत की तटस्थता और रूस के साथ सामान्य मित्रता के कारण भारत के प्रति हमारी नीति पर कोई प्रभाव पड़ेगा।” वहीं, उप विदेश मंत्री वेंडी शेरमेन ने इस सप्ताह की शुरुआत में कांग्रेस की एक सुनवाई के दौरान हाउस फॉरेन अफेयर्स कमेटी के सदस्यों से कहा कि यह देखते हुए कि भारत के साथ रक्षा व्यापार एक बड़ा अवसर है, भारत के साथ अमेरिका के संबंध बहुत महत्वपूर्ण हैं। उन्होंने कहा, “वे दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र हैं। उनके साथ हमारे मजबूत रक्षा संबंध हैं। वे ऑस्ट्रेलिया और जापान के साथ क्वाड का हिस्सा है और हम कई उपलब्धियों पर आगे बढ़ रहे हैं, जो इंडो-पैसिफिक समृद्धि और सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण हैं।”
कांग्रेस सदस्य टिम बर्चेट के एक सवाल के जवाब में अमेरिका की उप विदेश मंत्री शर्मन ने कहा, “हम जाहिर तौर पर यह पसंद करेंगे कि भारत रूस के साथ गुटनिरपेक्ष जी77 साझेदारी के अपने दीर्घकालिक इतिहास से दूर चला जाए, क्योंकि प्रतिबंधों के कारण रूस से पुर्जे प्राप्त करना या उन्हें बदलना अब उनके लिए बहुत कठिन होगा। उन्होंने हमारे साथ अपने रक्षा संबंध, रक्षा बिक्री और सह-उत्पादन प्रयासों में वृद्धि की है और मुझे लगता है कि आने वाले वर्षों में इसके लिए यह एक महान अवसर है।” वहीं, अमेरिकी कांग्रेस (लोकसभा) के सदस्य जो विल्सन ने यूक्रेन पर भारत की स्थिति के बारे में कहा कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र (भारत) को अन्य लोकतंत्रों के साथ मजबूती से खड़ा होना चाहिए।
भारत को कई बार धमकाने का प्रयास कर चुका है अमेरिका
आपको बताते चलें कि अमेरिका कभी भी भारत का घनिष्ठ मित्र नहीं रहा है। अमेरिकी प्रशासन को टीकों के लिए बौद्धिक संपदा संरक्षण की छूट के लिए विश्व व्यापार संगठन के समक्ष भारत के प्रस्ताव की गंभीरता का एहसास करने और भारत-दक्षिण अफ्रीका के प्रस्ताव को समर्थन देने का निर्णय लेने में छह महीने से अधिक समय लगा। अमेरिका ने रूस की S-400 मिसाइल रक्षा प्रणालियों की खरीद के लिए भारत पर प्रतिबंध लगाने को लेकर अपनी बात कही थी। रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच हाल ही में अमेरिकी ने भारत पर प्रतिबंध लगाने और भारत को धमकाने का प्रयास किया था और अब बेचारा बना फिर रहा है। ऐसे में अमेरिका को गंभीरता से और गहराई से विचार करना होगा तथा दुनिया के लोकतंत्रों तक पहुंचने के लिए एक व्यापक वैश्विक योजना तैयार करनी होगी, जिसका मार्ग निश्चित रूप से भारत से होकर जाता है। अब अपने गौरव और स्थान की रक्षा करने के अलावा अमेरिका के पास बहुत कुछ दांव पर है और वह किसी भी रूप में भारत के साथ अपने संबंधों के सरल गणित की उपेक्षा नहीं कर सकता!
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