रूस-यूक्रेन युद्ध ने अमेरिका, ब्रिटेन औऱ पश्चिमी देश जैसे वैश्विक महाशक्तियों के खोखलेपन को उजागर कर दिया है। इस युद्ध का प्रभाव पूरे विश्व पर पड़ा है पर वहीं इस युद्ध ने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि वैश्विक स्तर पर भारत की कूटनीति और शक्ति का कोई मुकाबला नहीं कर सकता। दुनिया अच्छे से जानती है कि भारत और रूस बहुत अच्छे मित्र हैं। रूस के साथ दशकों से भारत के संबंध रहे हैं। इस युद्ध पर भारत ने अपना रूख तटस्थ रखा, अमेरिका की लाख कोशिशों के बावजूद भारत ने उसे भाव नहीं दिया, जिसके बाद अमेरिका को अपनी औकात समझ में आ गई थी और भारत के प्रति वह सामान्य हो गया। ब्रिटेन भी इस युद्ध पर भारत के रूख को लेकर हमें धमकी दे रहा था, लेकिन मोदी सरकार की कूटनीति के आगे उसकी एक न चली और अब वह भारत के चरणों में लोट रहा है। मोदी सरकार की कूटनीति ने दुनिया को भारत के सामने झुकने पर मजबूर कर दिया और अब स्थिति ऐसी हो गई है कि ब्रिटेन को भी रूस-यूक्रेन मुद्दे पर भारत के रूख से कोई दिक्कत नहीं है।
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भारत दौरे पर जॉनसन ने कही ये बात
दरअसल, ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन दो दिवसीय भारत दौरे पर गुरुवार को गुजरात पहुंचे। ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन की भारत यात्रा को कई मायनों में काफी अहम माना जा रहा है। रूस-यूक्रेन मुद्दे पर बोरिस जॉनसन ने यह स्वीकार किया कि भारत और रूस के मजबूत संबंध रहे हैं। हालांकि, उन्होंने इस मुद्दे पर भारत के स्वतंत्र रुख की सराहना की और कुछ भी अनैतिक टिप्पणी करने से परहेज किया। ध्यान देने वाली बात है कि ब्रिटेन अपनी अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने की कोशिश कर रहा है क्योंकि यूरोपीय संघ छोड़ने के बाद से ब्रिटेन की स्थिति कुछ ठीक नहीं है। ब्रिटिश प्रधानमंत्री ने यह भी टिप्पणी की कि वह इस वर्ष एक एफटीए (फ्री ट्रेड एग्रीमेंट) प्राप्त करने के बदले में भारत को और अधिक वीजा देने के लिए तैयार थे क्योंकि ब्रिटेन में श्रमिकों की कमी थी। उन्होंने कहा, “मैं हमेशा इस देश से आने वाले प्रतिभाशाली लोगों के पक्ष में रहा हूं। हम कम हैं हमारी अर्थव्यवस्था में सैकड़ों हजारों लोग हैं और हमें एक प्रगतिशील दृष्टिकोण रखने की जरूरत है और हम वो करेंगे।”
इसके अलावा, बोरिस जॉनसन के कार्यालय की ओर से बताया गया कि “यूके और भारतीय व्यवसाय सॉफ्टवेयर इंजीनियरिंग से लेकर स्वास्थ्य तक के क्षेत्रों में नए निवेश और निर्यात सौदों में £1 बिलियन से अधिक का समझौता करेंगे, जिससे पूरे यूके में लगभग 11,000 नौकरियां पैदा होंगी।” रक्षा के मोर्चे पर बताया जा रहा है कि यूके भारत को रक्षा निर्माण का हब बनाने के पीएम नरेंद्र मोदी के सपने को साकार करने में अपना सहयोग बढ़ाने के लिए तैयार है। जैसा कि आप जानते हैं, भारत की राष्ट्रीय रक्षा और सुरक्षा रणनीति की हमारी एकीकृत समीक्षा में यूके का झुकाव हिंद-प्रशांत की ओर रहा है।
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अब भारत पर दबाव का नहीं होता असर
जैसा कि टीएफआई द्वारा रिपोर्ट किया गया है, वर्ष 2020 में भारत और यूनाइटेड किंगडम ने दोनों देशों के बीच FTA के रूप में एक ‘उन्नत व्यापार साझेदारी’ पर काम किया था। यूरोपीय संघ-भारत मुक्त व्यापार सौदा कई वर्षों से लंबित है और यह देखते हुए कि यूके यूरोपीय संघ से बाहर हो गया है, जो इस क्षेत्र में भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार था। ब्रिटेन ने कहा है कि व्यापार सौदा भारत में ब्रिटिश निर्यात को लगभग दोगुना कर सकता है और वर्ष 2035 तक कुल व्यापार को प्रति वर्ष 28 बिलियन पाउंड (38 बिलियन डॉलर) तक बढ़ा सकता है। यूके और बोरिस समझते हैं कि अगर वह रूस के मुद्दे पर नई दिल्ली पर दबाव बनाने की हिम्मत करेंगे, तो एफटीए से संबंधित वार्ताओं के लिए भारत उन्हें कुछ और वर्षों के लिए आसानी से टाल सकता है। ब्रिटेन यह भी समझ चुका है कि दबाव की रणनीति प्रधानमंत्री मोदी की सरकार पर चलने वाली नहीं है।
जयशंकर ने दिखाया था पश्चिमी देशों को आइना
आपको बताते चलें कि पिछले महीने, ब्रिटिश विदेश सचिव लिज़ ट्रस के सामने, भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने रूस और भारत के बारे में अपने पाखंड के लिए ब्रिटेन के साथ-साथ यूरोप को भी बेनकाब किया था। जयशंकर ने कहा था कि “यूरोप ने रूस से एक महीने पहले की तुलना में 15% अधिक तेल और गैस खरीदा। रूस से तेल और गैस के अधिकांश प्रमुख खरीदार यूरोप में हैं। हम अपनी ऊर्जा आपूर्ति का बड़ा हिस्सा मध्य पूर्व से प्राप्त करते हैं, अमेरिका से लगभग 7.5% -8%, रूस से एक प्रतिशत से भी कम हो सकता है।”
उस बैठक में रूस-यूक्रेन संघर्ष की पृष्ठभूमि में भारत-ब्रिटेन संबंधों के लिए स्वर निर्धारित किया गया था। लिज़ ने टिप्पणी करते हुए कहा था कि भारत एक संप्रभु राष्ट्र है और ब्रिटेन भारत को यह नहीं बताने जा रहा है कि उसे क्या करना है। और अब बोरिस जॉनसन ने इस यात्रा पर भारत पर अपनी दबाव बनाने से इतर अपनी सारी ऊर्जा एफटीए के लिए जमीन बनाने में लगा दी है। आज जिस तरह से ब्रिटेन अपनी आर्थिक नीत्ति को बढ़ाने के लिए भारत की परिक्रमा लगा रहा है उससे तो यह साफ़ हो गया है कि भारत की कूटनीति वैश्विक स्तर पर बहुत ही प्रभावशाली हो चुकी है और कोई भी दूसरा देश भारत पर किसी तरह दबाव बनाने में अक्षम दिख रहा है। भारत वैश्विक महाशक्ति बनने की ओर बढ़ चला है और अब दुनिया भी यह समझ चुकी है कि भारत से बैर करना किसी के लिए भी टेढ़ी खीर साबित हो सकती है।
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