अमेरिका ने अफगानिस्तान को नरक की आग में झोंक दिया। इस युद्धग्रस्त देश में सब कुछ विनाश के कगार पर है। इसी विनाशकरी अवस्था में फंसे हैं ‘अफगानिस्तान में भारत के निवेश।’ अफगानिस्तान में तालिबान की सरकार बनने के बाद भारत का बहुत कुछ दांव पर है। ढेर सारे निवेश के अलावा हमारी सांस्कृतिक और कूटनीतिक संपत्ति भी दांव पर है। ऊपर से पाकिस्तान इस्लामिक कट्टरपंथ के नाम पर अफगानिस्तान में अपनी जड़ें मजबूत कर रहा है। एक ओर जहां पाकिस्तान की सीमा अफगानिस्तान से मिलती है तो वही दूसरी ओर भारत अफगानिस्तान से कोई सीमा साझा नहीं करता। लेकिन ध्यान देने वाली बात है कि पाकिस्तान के साथ सीमा साझा करने वाला यह देश पाकिस्तान पर थोड़ा भी भरोसा नहीं करता।
ऐसे में भारत के पास ऐसा क्या है, जो अफगान और वहां के लोगों को भारत से जोड़ सकता है। एक चीज़ तो भारतीय सिनेमा है लेकिन तालिबानी सरकार आने के बाद भारतीय सिनेमा की स्थिति अफगानिस्तान में खतरे में है। अतः अफगानिस्तान के लोगों को भारत से जोड़ने वाली एकमात्र चीज़ है- ‘क्रिकेट’। हालांकि, पिछले टी-20 विश्व कप में तालिबान ने अफगान क्रिकेट टीम का आयोजक बनने से इनकार कर दिया था और अंतिम समय में टीम के कप्तान मोहम्म्द नबी ने टीम के खर्च का बेड़ा उठाया।
आपको जानकर आश्चर्य होगा कि यह देश पाकिस्तान से इतर भारत में लंबे समय से अपना होम ग्राउंड चुनते आया है और भारत की सरजमीं पर अन्य देशों के साथ कई सीरीज भी खेल चुका है। अफगानिस्तान क्रिकेट बोर्ड ने भारत में होम ग्राउंड इसलिए चुने थे क्योंकि स्वदेश में लगातार हिंसा के चलते मैच संभव नहीं था और क्रिकेट से जुड़ी सुविधाओं की कमी थी। वहीं, भारत में सुविधाएं भी बेहतर थी और अन्य टीमों को आने में भी कोई परेशानी नहीं थी, ऐसे में बीसीसीआई ने मदद की पेशकश की थी। अब अफगानिस्तान में तालिबान का शासन है, जिसके कारण इस खेल का भविष्य अधर में लटक गया है। हालांकि, बोर्ड की मदद से खिलाड़ी टी20 वर्ल्ड कप 2022 की अपनी तैयारियों में लगे हुए हैं। ऐसे में अब समय है कि बीसीसीआई एक बार फिर अफगानिस्तान क्रिकेट बोर्ड को जीवंत करने की ओर कदम बढ़ा सकता है और इसके साथ ही पाकिस्तान को साइडलाइन करते हुए भारत-अफगानिस्तान के लोगों की कनेक्टिविटी को बेहतर बना सकता है।
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मोदी-गनी का दौर
ध्यान देने वाली बात है कि बेंगलुरु के स्टेडियम में जब भारत के खिलाफ अफगानिस्तान की टीम अपनी पहली टेस्ट मैच खेलने उतरी तो मैच शुरू होने से पहले भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अफगानिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति अशरफ गनी दोनों के बयानों को मैदान और लाइव टेलीविजन दर्शकों के लिए पढ़ा गया। यह बात शायद हमारे पाठकों को याद होगी। इसे न सिर्फ भारत और अफगानिस्तान के बीच प्रथम मैत्री श्रृंखला के रूप में जाना जाता है, बल्कि दोनों देशों के बीच व्यापक संबंधों के लिए क्रिकेट कितना महत्वपूर्ण है, यह उस ओर भी इंगित करता है।
अपने बयान में पीएम मोदी ने राष्ट्र-निर्माण संस्था के रूप में अफगान क्रिकेट टीम की क्षमता और इसके लिए भारत के समर्थन पर ध्यान देते हुए कहा- “आज क्रिकेट अफगानिस्तान के लोगों के लिए एकजुट करने वाली ताकत है। भारत इस यात्रा में अफगानिस्तान के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलने पर गर्व महसूस करता है। ये उपलब्धियां चुनौतीपूर्ण और कठिन परिस्थितियों में मिली हैं। यह सभी चुनौतियों से पार पाने और एक उद्देश्यपूर्ण, स्थिर, एकजुट और शांतिपूर्ण राष्ट्र के लिए आकांक्षाओं को साकार करने के लिए अदम्य अफगान भावना को प्रदर्शित करता है।”
गनी ने भी भारत के उपकार पर बयान देते हुए कहा था कि “अफगानिस्तान के राष्ट्रपति के रूप में मैं भारत के खिलाफ उनके पहले टेस्ट मैच का स्वागत करता हूं। मुझे उन लोगों पर गर्व है जिन्होंने सदी की शुरुआत में अफगानिस्तान में क्रिकेट को चैंपियन बनाया और खुद पर विश्वास किया कि एक दिन अफगानिस्तान दुनिया के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ियों के खिलाफ खेलेगा।“
अफगान में क्रिकेट का जन्म
दरअसल, अफगानिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति अपने बयानों से अफगान क्रिकेट की मूल कहानी की ओर इशारा कर रहे थे। 1980 के दशक में सोवियत आक्रमण के बाद विस्थापित आबादी के बच्चों ने पेशावर के आसपास शरणार्थी शिविरों में इसे खेलना शुरू किया। 2000 के दशक की शुरुआत में अफगानिस्तान लौटने पर उत्साही लोगों ने एक राष्ट्रीय टीम बनाने और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धा शुरू करने के लिए आवश्यक औपचारिक संरचनाएं बनाना शुरू किया।
आपको बताते चलें कि पिछले साल अपने खेल को मजबूत करते हुए, अफगानिस्तान को टेस्ट-प्लेइंग का दर्जा दिया गया था। इसने उन्हें अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद की पूर्ण सदस्यता प्रदान की। सीमित संसाधनों और स्पष्ट आंतरिक कठिनाइयों वाले देश द्वारा कम समय में प्राप्त की गई यह एक अविश्वसनीय उपलब्धि रही है। भारत ने न सिर्फ अफगानिस्तान को घरेलू मैदान दिये, बल्कि अमूल जैसी संस्था उनकी आयोजक भी बनी। आपको जानकार हैरानी होगी कि अमूल हर साल अफगानिस्तान में 200 करोड़ का व्यापार करता है।
इस साल भी अफगानिस्तान के राशिद खान ने गुजरात टाइटन्स की कप्तानी कर इतिहास रच दिया। अब समय आ गया है कि भारत अपने क्रिकेट शक्ति का प्रयोग कर आईपीएल में अधिक से अधिक अफगानी खिलाड़ियों को स्थान दे क्योंकि यही खिलाड़ी आने वाले समय में भारत के राजदूत के रूप में काम करेंगे और क्रिकेट भारत-अफगान सम्बन्धों की आधारशिला बनेगी। इस बार लेग स्पीनर राशिद खान के अलावा अफगानिस्तान के 17 क्रिकेटरों ने आईपीएल 2022 की नीलामी के लिए पंजीकरण कराया था। इनकी संख्या को और बढ़ाया जाना चाहिए ताकि भारत इस खेल के माध्यम से अफगानिस्तान में और मजबूत हो सके।
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