रूस-यूक्रेन मामले को लेकर भारत अपने तटस्थ रूख पर कायम है और रूस के साथ होने वाले व्यापार को लेकर भी उसने अपनी स्थिति स्पष्ट कर दी है, जिससे अमेरिका समेत पश्चिमी देशों की सुलग पड़ी है। एक ओर पश्चिमी मीडिया भारत को रूस के साथ संबंध तोड़ने की सीख दे रहा है और ऐसा न करने पर भारत के विरुद्ध आर्थिक प्रतिबंध लगाने की गीदड़भभकी दे रहा है, वहीं दूसरी ओर यूरोपीय यूनियन भारत के साथ मुक्त व्यापार समझौता करने के लिए आतुर है।
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार यूरोपीय यूनियन जल्द ही भारत के साथ मुक्त व्यापार समझौता करने के लिए बातचीत शुरू करने वाला है। हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट में बताया गया है कि पिछले दो महीनों में संयुक्त अरब अमीरात और आस्ट्रेलिया के साथ भारत के सफल मुक्त-व्यापार समझौतों ने भारत और यूरोपीय संघ को तीन दौरे की वार्ता की योजना बनाने के लिए प्रोत्साहित किया है। इस साल के अंदर ही बातचीत द्वारा एक समझौते के लिए एक बुनियादी ढांचे का निर्माण किया जाएगा और अगले 5 वर्षों में द्विपक्षीय व्यापार को बढ़ाकर 220 बिलियन डॉलर किया जाएगा।
2013 में भी दोनों पक्षों के बीच शुरू हुई थी बातचीत
महत्वपूर्ण बात यह है कि वर्ष 2013 में भी भारत ने मुक्त व्यापार समझौते के लिए बातचीत शुरू की थी किंतु उस समय यूरोपीय यूनियन द्वारा बातचीत को स्थगित कर दिया गया था। इस बार यूरोपीय यूनियन स्वयं भारत के पास बातचीत करने के लिए आया है। यूरोपीय यूनियन के अतिरिक्त संघ से बाहर निकल चुके ब्रिटेन द्वारा भी भारत से फ्री ट्रेड एग्रीमेंट के लिए बातचीत चल रही है। मीडिया रिपोर्ट में बताया गया है कि यूरोपीय यूनियन के प्रतिनिधियों ने भारत के वाणिज्य सचिव बी.वी.आर सुब्रह्मण्यम के नेतृत्व में भारत सरकार के अधिकारियों की एक टीम के सामने इस समझौते के लिए अपनी मंशा व्यक्त की। एक अधिकारी ने बताया, “EU ने इस मामले पर सहमति दी है कि बुनियादी अवधारणा बनाने के बाद जल्द ही, नई दिल्ली के साथ आगे बढ़ने के लिए आधिकारिक बातचीत की जाएगी। इसके लिए तीन दौर की वार्ता होगी जो 1 वर्ष के भीतर कर ली जाएगी।”
यूरोपीय देशों को हो गया है अपनी औकात का एहसास
यूरोपीय देशों की उत्सुकता का कारण यह है कि भारत वर्तमान समय में सबसे अच्छी और स्थित आर्थिक विकास दर का प्रदर्शन कर रहा है। गति शक्ति योजना के अंतर्गत इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास को बढ़ावा दिया जा रहा है। PLI योजना लागू करके अलग-अलग सेक्टर में विनिर्माण को प्रोत्साहन दिया जा रहा है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से लेकर आर्थिक मामलों के संदर्भ में महत्वपूर्ण कई अंतरराष्ट्रीय थिंक टैंक भी भारत के सतत विकास की भविष्यवाणी कर रहे हैं। ऐसे में भारत में निवेश सर्वाधिक सुरक्षित और लाभदायक सिद्ध हो सकता है।
देखा जाए तो यूक्रेन युद्ध के कारण यूरोप इस समय रूस और उसके सहयोगियों के प्रति आक्रामक रुख अपनाए हुए है। पश्चिमी देशों की मीडिया जो उनके प्रचार तंत्र का प्रमुख हथियार है, वह लगातार रूस के समर्थक देशों को गंभीर परिणाम भुगतने की चेतावनी दे रही है। हाल ही में भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर जब अमेरिका गए थे तो रूस द्वारा भारत को की जा रही ऊर्जा संसाधनों की आपूर्ति को लेकर उनसे प्रश्न किए गए। उस पर जयशंकर ने पश्चिमी देशों को आइना दिखाते हुए उनका धागा खोल दिया। पश्चिमी मीडिया की ओर से दिखाया ऐसा जा रहा है जैसे पश्चिमी देश यूक्रेन युद्ध में भारत द्वारा रूस का विरोध न करने के कारण, भारत को सबक सिखाएंगे। किंतु वास्तविकता यह है कि यूरोपीय देशों को स्वयं अपनी औकात का एहसास हो गया है और अब वह भारत के साथ आर्थिक समझौता करने के लिए पीछे-पीछे आ रहे हैं।
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