जगन मोहन रेड्डी सरकार ने आंध्र प्रदेश राज्य के लिए एक नया नक्शा तैयार किया है। पहले राज्य में जिलों की संख्या 13 थी, जो अब दोगुनी होकर 26 हो गई है। जाहिर है, ऐसा 2019 के विधानसभा चुनाव में रेड्डी द्वारा किए गए चुनावी वादे को पूरा करने के लिए किया गया है। रेड्डी सरकार का कहना है कि इस फैसले से प्रशासनिक कार्यकुशलता बढ़ेगी। जगन सरकार का कहना है कि जिलों की संख्या बढ़ाने से शहर की प्रशासनिक इकाई और गांव अधिक समीप हो जाएंगे जिससे प्रशासनिक अधिकारियों को ग्रामीण लोगों से सीधे संवाद की सुविधा मिलेगी। हालांकि यह सुनने में अच्छा लगता है किंतु इस योजना को वास्तविकता के धरातल पर उतारना ना केवल अत्याधिक कठिन है बल्कि अनावश्यक रूप से खर्चीला भी है। इसके अतिरिक्त यह योजना भ्रष्टाचार की संभावना भी बढ़ाएगी, क्योंकि नए सिरे से शहरों के निर्माण में, कई ठेके बटेंगे, कई टेंडर खुलेंगे और हर जगह भ्रष्टाचार करने की पर्याप्त जगह होगी।
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जिलों की संख्या दोगुनी करने पर नए प्रशासनिक भवनों का निर्माण, नई प्रशासनिक अधिकारियों और स्टाफ की नियुक्ति जैसे कई खर्चे बढ़ेंगे। इसके अतिरिक्त आंध्र प्रदेश को केंद्र और राज्य स्तर के अधिकारियों की आवश्यकता होगी। देश पहले ही IAS स्तर अधिकारियों के कमी का सामना कर रहा है। हिंदी की कहावत है, चार आने की सब्जी, बारह आने का मसाला। यह कहावत जगन मोहन रेड्डी जैसे लोगों के लिए बनी है।
जगन सरकार ऐसे फैसले लेने वाली पहली राज्य सरकार नहीं है। वस्तुतः पश्चिम बंगाल, पंजाब तमिलनाडु आदि राज्यों में जो गैर भाजपाई दल सरकार चला रहे हैं, वह अपनी की शक्ति राजनीतिक जमीन को बचाने के लिए लोकलुभावन वादे कर रहे हैं। पंजाब चुनाव के समय आम आदमी पार्टी ने पंजाब की प्रत्येक महिला को 1000 रुपये देने का वादा कर दिया था, बिना यह सोचे कि पंजाब पर पहले ही 2.73 लाख करोड़ का ऋण चढ़ा हुआ है। अब अपने वादे को पूरा करने के लिए मुख्यमंत्री भगवंत मान प्रधानमंत्री से विशेष पैकेज की मांग कर रहे हैं।
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इसका प्रत्यक्ष दुष्प्रभाव अर्थव्यवस्था पर पड़ता है। हाल ही में प्रधानमंत्री मोदी ने देश के वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारियों के साथ एक मीटिंग में यह बात भी उठाई है। प्रधानमंत्री मोदी ने ब्यूरोक्रेट्स के साथ बातचीत में कहा भी है कि कुछ राज्य सरकारों द्वारा घोषित की जा रही लोकलुभावन योजनाएं, देश को श्रीलंका के समान आर्थिक संकट की ओर धकेल सकती है। उन्होंने कहा कि बजट की कमी का बहाना देकर महत्वपूर्ण इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं को अटकाने की मानसिकता का त्याग करना चाहिए।
विकास योजनाओं पर पैसा खर्च करना चाहिए
एक ओर अन्य राज्य सरकारें ऐसे वादे कर रहीं हैं, वहीं दूसरी ओर मोदी सरकार, बजट का एक बड़ा हिस्सा केवल विकास योजनाओं पर खर्च कर रही है। भाजपा का विकास मॉडल भी लोकलुभावन वादों वाला होता है, लेकिन यह अर्थव्यवस्था की सेहत को दांव पर रखकर नहीं बनाया जाता। केंद्र द्वारा प्रस्तुत बजट 22, इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है।
मोदी सरकार ने इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास के लिए 2022 के बजट में फंड का आवंटन बढ़ा दिया है। इस बजट में मोदी सरकार ने राजमार्गों, ग्रामीण सड़कों, आवास, परिवहन, कार्गो टर्मिनलों और पीने योग्य नल के पानी के कनेक्शन के निर्माण पर ध्यान केंद्रित किया है। गति शक्ति योजना के अंतर्गत 1 वर्ष के अंतर्गत 25000 किलोमीटर एक्सप्रेस वे निर्माण की योजना है। साथ ही पांच नदियों को जोड़ने की रिवर लिंक योजना पर भी कार्य शुरू होने वाला।
सरकार ने केवल राजमार्ग निर्माण के लिए ही लगभग 2 लाख करोड़ रुपये आवंटित किए, जो पिछले वर्ष की तुलना में 60 प्रतिशत अधिक है। इसी तरह, परिवहन क्षेत्र के लिए कुल आवंटन में 40 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई क्योंकि यह पिछले वर्ष के 2.3 लाख करोड़ से बढ़कर चालू वित्त वर्ष में 3.5 लाख करोड़ हो गया।
प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना का बजट 14000 करोड़ से बढ़ाकर 19000 करोड़ कर दिया गया है। रेलवे की सुरक्षा बढ़ाने के लिए 2000 किलोमीटर के ट्रैक को कवच योजना से सुरक्षित किया जाएगा। 100 गति शक्ति कार्गो ट्रेन और 400 वंदे भारत एक्सप्रेस चलाने की योजना है।
एक और जहां केंद्र सरकार इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास पर ध्यान दे रही है जिससे अर्थव्यवस्था की प्रगति को और गति मिल सके वहीं दूसरी ओर विभिन्न राज्य सरकारें भी हैं जिन्हें राजनीतिक लाभ के लिए राज्य के आर्थिक संसाधनों को लुटाने में हिचक नहीं होती। तमिलनाडु से लेकर पंजाब तक ऐसे उदाहरण देखने को मिलते हैं। मुम्बई, हैदराबाद, चेन्नई जैसे शहरों में जो भी समस्याएं, बुनियादी ढांचे में दिखाई देती उसका बड़ा कारण, इन शहरों के संसाधनों का चुनावी फायदे के लिए होने वाला प्रयोग है। यदि भारत की राज्य सरकारें और गैर भाजपाई दल, मोदी सरकार के विकास मॉडल को अपना लें तो भारत का विकास दोगुना तेजी से आगे बढ़ेगा।
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