रूस-यूक्रेन मामले को लेकर पूरी दुनिया की नजरें भारत पर टिकी हुई है। पश्चिम समेत दुनिया के तमाम देश रूस पर कई तरह के प्रतिबंध लगा चुके हैं, लेकिन भारत अपने सदाबहार दोस्त रूस के साथ अप्रत्यक्ष रूप से ही सही, पर हर कदम पर खड़ा है। रूस-यूक्रेन मामले पर भारत के रूख को देखते हुए पश्चिमी देशों के कलेजे में आग लगी हुई है। ऐसा प्रतीत हो रहा है कि किसी ने उनकी किडनी ही निकाल ली है। हालांकि, भारत स्पष्ट कर चुका है कि वह दोनों देशों के बीच शांति चाहता है। लेकिन खुद को कथित तौर पर महाशक्ति कहने वाला डरपोक अमेरिका भारत को लगातार धमकाने का काम कर रहा है। अमेरिका की ओर से भारत पर प्रतिबंध लगाने की बात कही जा रही है। सुप्त अवस्था में चले गए जो बाइडन को इस बात को थोड़ा भी एहसास नहीं है कि वो अपनी पूरी कोशिशों के बावजूद किसी भी तरह से भारत का बाल भी बांका नहीं कर सकते हैं। इसी बीच इस मामले पर विदेश मंत्री एस जयशंकर ने करारी प्रतिक्रिया दी है।
भयावह होगा भारत को धमकाने का परिणाम
दरअसल, भारत और रूस के बीच दशकों से व्यापारिक और कूटनीतिक सम्बन्ध रहे हैं। जब से रूस और यूक्रेन के बीच भीषण युद्ध छिड़ा है तब से पश्चिमी देशों ने रूस पर कड़े आर्थिक प्रतिबन्ध लगा दिए हैं, जिससे रूस को आर्थिक और वैश्विक संकट का सामना करना पड़ सकता है लेकिन भारत और रूस ने कूटनीतिक स्तर पर इसका हल निकालने की कोशिश कर ली है। खबरों की मानें तो रूस -यूक्रेन युद्ध के बीच रूस, भारत को भारी रियायती दरों पर तेल की पेशकश कर रहा है।भारत सरकार रूसी समकक्ष के साथ रियायती मूल्य पर कच्चे तेल का आयात करने के लिए बातचीत भी कर रही है। जिसके कारण पश्चिमी देशों की सुलग पड़ी है और वे भारत को धमकाने के अपने विफल प्रयासों में लगे हुए हैं।
अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन का मानना है कि वह प्रतिबंध की धमकी देकर भारत को रूस का साथ छोड़ कर वाशिंगटन के पाले में ले आएंगे। हालांकि, बाइडन ग़लतफ़हमी में जी रहे है और वो भूल गए हैं कि आज का भारत किसी भी धमकियों के सामने नहीं झुकता। रूस-यूक्रेन संघर्ष की पृष्ठभूमि में, जहां एक ओर अमेरिका क्रेमलिन को अलग-थलग करने का प्रयास कर रहा है। वहीं, बाइडन ने अपने लेफ्टिनेंट और उप राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार दलीप सिंह को नई दिल्ली भेजा, जहां दलीप सिंह ने अनर्गल बाते कर भारत को रूस से तेल नहीं खरीदने और वैकल्पिक भुगतान तंत्र स्थापित करने के लिए राजी करने हेतु अपने राजनयिक कौशल का उपयोग करने के बजाय, नई दिल्ली को बुरे ‘परिणाम’ भुगतने की धमकी दी, जिसे लेकर उनकी जमकर क्लास लगाई जा रही है।
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एस जयशंकर ने कर दिया बेनकाब
ध्यान देने वाली बात है कि रूस को चीन का जूनियर पार्टनर बताते हुए दलीप सिंह ने दावा किया था कि अगर चीन वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर अपने दुस्साहस जारी रखता है, तो मॉस्को भारत के बचाव में नहीं आएगा। जैसे ही अमेरिकी प्रतिनिधि दलीप सिंह ने यह बयान दिया उसी समय भारत की ओर से भी अमेरिका को करारा जवाब दिया जाने लगा। इसी क्रम में पूर्व राजनयिक सैयद अकबरुद्दीन ने कूटनीति की भाषा का पालन नहीं करने के लिए अमेरिकी उप राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार दलीप सिंह की जमकर आलोचना की। सैयद अकबरुद्दीन ने अपने ट्ववीट में लिखा, “तो यह हमारा दोस्त है..यह कूटनीति की भाषा नहीं है..यह जबरदस्ती की भाषा है।”
वहीं, इस मामले पर पश्चिम को बेनकाब करते हुए विदेश मंत्री एस जयशंकर ने अमेरिका का धागा ही खोल दिया। भारत-ब्रिटेन सामरिक फ्यूचर्स फोरम में बोलते हुए, एस जयशंकर ने बताया कि यूरोपीय देश रूसी गैस और तेल के सबसे बड़े आयातक थे। रूसी कच्चे तेल को रियायती कीमतों पर खरीदने के निर्णय का बचाव करते हुए, विदेश मंत्री ने इस बात पर जोर दिया कि भारत के लिए ऊर्जा आपूर्ति पर अच्छे सौदे प्राप्त करना महत्वपूर्ण था, वो भी ऐसे समय में जब वैश्विक बाजार अस्थिर थे। उन्होंने आगे कहा, “यह दिलचस्प है क्योंकि हमने कुछ समय के लिए देखा है कि इस मुद्दे पर लगभग हमारे खिलाफ एक अभियान चलाया जा रहा है। जब तेल की कीमतें बढ़ती हैं, तो मुझे लगता है कि देशों के लिए सस्ते बाजार में जाना स्वाभाविक है और एक देश के रूप में यह देखना कि उनके लोगों के लिए क्या अच्छे सौदे हैं।”
ब्रिटिश विदेश सचिव लिज़ ट्रस के साथ बातचीत के दौरान, एस जयशंकर ने इस बात पर भी जोर दिया कि भारत ने अपनी अधिकांश ऊर्जा आपूर्ति मध्य पूर्व से करता आया है। उन्होंने बताया कि भारत के कुल तेल आयात का लगभग 8% संयुक्त राज्य अमेरिका से आता है, जबकि कच्चे तेल की 1% से भी कम खरीद रूस से होती है। दलीप सिंह पर पलटवार करते हुए उन्होंने कहा कि रूसी तेल और गैस के सबसे बड़े खरीदार यूरोप से थे। उन्होंने आगे कहा, “मुझे पूरा यकीन है कि अगर हम दो या तीन महीने प्रतीक्षा करें और वास्तव में देखें कि रूसी तेल और गैस के बड़े खरीदार कौन हैं, तो मुझे संदेह है कि सूची पहले की तुलना में बहुत अलग नहीं होगी और मुझे संदेह है कि हम उस सूची में शीर्ष 10 में भी नहीं होंगे।”
रूस ने हमेशा दिया है भारत का साथ
कुल मिलाकर भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने अमेरिका सहित पश्चिमी देशों की बोलती बंद कर दी है और बड़े साफ़ और स्पष्ट रूप से सूझबूझ दिखाते हुए जयशंकर ने अमेरिका को बता दिया है कि भारत अपने आंतरिक मामलों में किसी दूसरे देशों का हस्तक्षेप नहीं होने देगा। अमेरिका को भारत से रूस के खिलाफ बोलने के लिए कहने से पहले, पश्चिम को, खुद से पूछना चाहिए: क्या भारत-पाकिस्तान तनाव के दौरान वे स्पष्ट रूप से भारत के पक्ष में खड़े थे? जवाब है नहीं। क्या लद्दाख में भारत-चीन तनाव के दौरान वे स्पष्ट रूप से भारत के पक्ष में खड़े थे? इसका भी जवाब है नहीं। जब आप पहले भी भारत के साथ किसी भी समय खड़े नहीं रहे हैं, तो हम उस देश का साथ कैसे छोड़ दें जिसने हमेशा से भारत का साथ दिया है चाहे युद्ध स्तर पर हो या अंतराष्ट्रीय मंच पर, रूस ने भारत के साथ अपनी मित्रता हमेशा से निभाया है।
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