केरल हाई कोर्ट द्वारा एक अप्रत्याशित निर्णय दिया गया है जिसके बाद रेप से जुड़े मामलों में पुरुषों को न्याय मिलना अधिक आसान हो जाएगा। जी हां आपने सही पढ़ा। तो चलिए इस पूरे मामले को विस्तार से समझने की कोशिश करते हैं। रेप के संदर्भ में भारत में एक कानून यह भी है कि यदि कोई पुरुष किसी महिला से विवाह का वादा करता है और उसकी अनुमति से उसके साथ यौन संबंध बनाता है किंतु बाद में किसी कारणवश विवाह नहीं करता है तो उस पुरुष पर बलात्कार का मामला दर्ज किया जा सकता है एवं उसे सजा दी जा सकती है। किंतु केरल हाईकोर्ट ने ऐसे एक मामले में सुनवाई पर टिप्पणी करते हुए यह स्पष्ट किया कि इस प्रकार के मामले में कब रेप स्वीकार किया जाएगा और कब नहीं।
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व्यक्ति पर आरोप क्या था?
केरल हाईकोर्ट के समक्ष 35 वर्षीय एक व्यक्ति का मामला प्रस्तुत हुआ था। इस व्यक्ति पर आरोप था कि इसमें एक महिला से विवाह का वादा करके यौन संबंध बनाए और बाद में विवाह नहीं किया। इस मामले में निचली अदालत ने इस व्यक्ति को उम्रकैद की सजा सुनाई थी। किंतु केरल हाईकोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को बदलते हुए इस व्यक्ति को बरी कर दिया। साथ ही टिप्पणी करते हुए शादी के वादे पर संबंध बनाना बलात्कार के बराबर तभी होगा जब पीड़िता की निर्णयात्मक स्वायत्तता का उल्लंघन होगा।
बताते चलें कि पीड़िता की निर्णयात्मक स्वायत्तता का यहां तात्पर्य यह है कि पीड़ित द्वारा यौन संबंध बनाने का निर्णय बिना किसी दबाव अथवा प्रभाव के उसकी अपनी इच्छा और स्वतंत्रता से लिया गया है। इसका अर्थ हुआ यौन सम्बंध बनाते समय, पीड़ित का निर्णय उसकी अपनी इच्छा से उपजा था, न कि किसी जोर जबर्दस्ती अथवा भ्रम के कारण। यदि पीड़ित के निर्णय को, झूठे वादे से, अथवा तथ्य छुपाकर प्रभावित किया गया होता तो इसे पीड़िता की निर्णयात्मक स्वायत्तता का उल्लंघन माना जाता।
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शादी का वादा पर नहीं की शादी तो क्या होगा?
हाई कोर्ट का फैसला इस आधार पर आया है कि क्योंकि एक व्यक्ति ने शादी का वादा किया किंतु किसी कारणवश वह शादी नहीं कर सका तो इस मामले में यह नहीं माना जा सकता कि उस व्यक्ति ने झांसा देकर यौन संबंध बनाए हैं अथवा यौन संबंध बनाते समय उस व्यक्ति का विवाह करने का इरादा या सहमति नहीं थी। कोर्ट ने कहा “शादी के वादे पर संबंध बनाना बलात्कार के बराबर तभी होगा जब पीड़िता की निर्णयात्मक स्वायत्तता का उल्लंघन होगा।”
कोर्ट ने इस मामले को महिला की यौन स्वायत्तता का उल्लंघन नहीं माना। उच्च न्यायालय ने माना है कि आरोपी द्वारा सहमति को प्रभावित करने वाले भौतिक तथ्यों का खुलासा न करना एक महिला की यौन स्वायत्तता का उल्लंघन होगा। यदि विवाह अनिश्चित था, तो आरोपी महिला को इसका खुलासा करने के लिए बाध्य है।
अर्थात यौन संबंध बनाते समय यदि वह व्यक्ति महिला से यह तथ्य को छुपाता कि उसका विवाह संभव नहीं है अथवा कोई कारण जो विवाह में बाधक हो सकता है, उसकी जानकारी महिला को ना देता तो इसे यौन उत्पीड़न का मामला माना जाता है।
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अदालत ने क्या कहा?
कोर्ट के समक्ष जो मामला आया था उसमें पुरुष ने उस महिला से विवाह का प्रयास किया था किंतु परिवार के विरोध के कारण उसे पीछे हटना पड़ा। अदालत ने कहा कि अभियोजन पक्ष के साक्ष्य ही यह दर्शाते हैं कि अभियुक्त के माता-पिता ने बिना दहेज के विवाह को स्वीकार करने का विरोध किया था। इससे पता चलता है कि अभियुक्त द्वारा बनाया गया यौन संबंध पीड़िता से शादी करने के वास्तविक इरादे से किया गया था। उनके परिवार के प्रतिरोध के कारण वह शादी नहीं कर सके।
भारत के कई कानून अपने स्वरूप में पुरुष विरोधी हैं, रेप से संबंधित कानून कि यह धारा, पुरुषों के विरुद्ध कई बार प्रयोग हुई। इसी प्रकार दहेज के झूठे मामले भी देखने को मिलते हैं। हाई कोर्ट का निर्णय स्वागत योग्य है क्योंकि यह पुरुषों को झूठे मामलों से बचाने में बड़ी भूमिका निभाएगा।