हाल के दिनों में देशभर में हुए विरोध प्रदर्शनों को देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि इन सभी में भारत विरोधी विदेशी ताकतों का हाथ रहा है. चाहे नागरिकता कानून पर हुए विरोध प्रदर्शन हो या फिर किसान आंदोलन के नाम पर फैली अराजकता, सभी प्रदर्शनों में विदेशों से भरपूर मात्रा में धनराशि प्राप्त हुई. हाल ही में मदर टेरेसा की संस्था ने भी विदेशों से बड़ी मात्रा में चंदा प्राप्त किया. सरकार ने अभी कुछ दिन पहले ही 19 गैर सरकारी और गैर लाभकारी संगठनों को अवैध विदेशी चंदा प्राप्त करने के कारण उनका लाइसेंस रद्द किया है.
धर्मांतरण के व्यापक कार्यक्रम को सुचारू रूप से चलाने के लिए देश भर के कई ईसाई संगठन बड़ी मात्रा में विदेशी चंदा प्राप्त करते हैं. इसी प्रकार का कार्य करने और अराजकता तथा आतंकवाद को फैलाने के लिए पीएफआई और जाकिर नाइक के प्रतिबंधित मुस्लिम संगठन भी पूरे विश्व से विदेशी चंदा प्राप्त करते हैं.
सरकार ने इस प्रवृत्ति को काबू में करने के लिए विदेशी योगदान (विनियमन) अधिनियम के संशोधनों को मंजूरी दी जिसके बाद देश भर में बवाल हो गया और इन संशोधनों को असंवैधानिक करार दिए जाने के लिए उच्चतम न्यायालय में गुहार लगाई गई है पर, उच्चतम न्यायालय ने कहा की अब बस बहुत हुआ.
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विदेशी चंदा राजनीतिक विचारधारा थोप सकता है
सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को विदेशी योगदान (विनियमन) अधिनियम के संशोधनों को मंजूरी देते हुए कहा कि वे अनिवार्य रूप से सार्वजनिक व्यवस्था के हित में की गई थी. इन संशोधनों का उद्देश्य एक संप्रभु लोकतांत्रिक गणराज्य के मूल्यों की रक्षा के लिए विदेशी स्रोतों से आने वाले दान के दुरुपयोग को रोकना है।
यह निर्णय तीन रिट याचिकाओं के परिप्रेक्ष्य में आया जिनमें से दो ने 2020 के संशोधनों को चुनौती दी जबकि तीसरे ने संशोधित और अधिनियम के अन्य प्रावधानों को सख्ती से लागू करने की प्रार्थना की।
जस्टिस एएम खानविलकर, दिनेश माहेश्वरी और सी टी रविकुमार की बेंच ने कहा- “विदेशी दान प्राप्त करना पूर्ण अधिकार नहीं हो सकता क्योंकि क्योंकि विदेशी योगदान का देश की सामाजिक-आर्थिक संरचना और राजनीति पर भौतिक प्रभाव डाल सकता है। यह देश की नीतियों को प्रभावित कर सकती है। यह राजनीतिक विचारधारा को प्रभावित या थोप सकता है।”
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देश मे विदेशी दान का विस्तार
इससे देश की संवैधानिक नैतिकता के सिद्धांत के साथ-साथ विदेशी प्रभाव को विस्तार दे सकता है। यह प्रभाव देश के भीतर सामाजिक व्यवस्था को अस्थिर कर सकता है।” संसद के लिए कदम उठाना और विदेशी योगदान के प्रवाह और उपयोग को प्रभावी ढंग से विनियमित करना आवश्यक हो गया था।
याचिकाओं ने विशेष रूप से धारा 7, 12(1ए), 12ए और 17(1) में किए गए संशोधनों की संवैधानिक वैधता को चुनौती देते हुए कहा कि वे स्पष्ट रूप से मनमाना, अनुचित और मौलिक अधिकारों का हनन करनेवाले हैं।
- धारा 7 किसी भी विदेशी योगदान के हस्तांतरण को प्रतिबंधित करती है.
- धारा 12ए ने पंजीकरण प्राप्त करने के उद्देश्य से पहचान दस्तावेज के रूप में पदाधिकारियों/कार्यकर्ताओं/सोसाइटियों/न्यासों के निदेशकों के आधार कार्ड विवरण को अनिवार्य बना दिया
- धारा 12(1ए) और धारा 17 ने प्राप्तकर्ताओं के लिए एसबीआई खाता खोलना अनिवार्य कर दिया और केवल भारतीय स्टेट बैंक की नई दिल्ली मुख्य शाखा में विदेशी अंशदान प्राप्त करने की छूट दी है।
सर्वोच्च न्यायालय के मुहर के बाद यह स्पष्ट हो गया है की प्रावधान संविधान के दायरे में आता है जो कानून के विधायी इतिहास में की गई थी, जिसे पहली बार 1976 में लागू किया गया था. यह इसलिए लागू किया गया क्योंकि नकारात्मक प्रभाव को कम करने के लिए और अधिक कठोर व्यवस्था की आवश्यकता थी। विदेशी दान की आमद में वृद्धि और एक संप्रभु लोकतांत्रिक गणराज्य के मूल्यों को बनाए रखने के लिए यह अधिनियम बनाया गया था।
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