संयुक्त राज्य अमेरिका ने क्यूबा पर कई वाणिज्यिक, आर्थिक और वित्तीय प्रतिबंध लगाए हैं, जिससे अमेरिकी गुट के राष्ट्रों के लिए इस कम्युनिस्ट राष्ट्र के साथ व्यापार करना अवैध हो गया है। दोनों देशों के संबंध लंबे समय से विवादों में घिरे रहे हैं। हर बार अमेरिकी सरकार को क्यूबा में साम्यवादी शासन के साथ गठबंधन करना पड़ा। बाइडन प्रशासन ने डोनाल्ड ट्रम्प की “अधिकतम दबाव नीति” का विस्तार किया है और कैरेबियाई राष्ट्र के अधिकारियों और संस्थानों पर मानवाधिकारों के हनन के आरोप में प्रतिबंध भी लगाए हैं।
अमेरिका के दबाव में आए बिना भारत क्यूबा की मदद कर रहा है। भारत ने अमेरिकी आर्थिक प्रतिबंधों के चक्रव्यूह में फंसे क्यूबा को ना सिर्फ लाइन ऑफ क्रेडिट से नवाजा बल्कि उसकी खाद्यान्न आपूर्ति को सुनिश्चित कर अपने द्विपक्षीय संबंधों में नए आयाम और सहभागिता के नए क्षेत्रों को जोड़ा। भारत के इस निर्णय ने रूस से कर्तव्य भार को भी कम किया है।
क्यूबा एक पारंपरिक रूस सहयोगी देश रहा है। अब जबकि रूस यूक्रेन के साथ युद्ध में फंस गया है, क्यूबा को आर्थिक तंगी महसूस हो रही है। हवाना के लिए विशेष रूप से चिंता की बात यह है कि यदि इसके आर्थिक संकट को तत्काल आधार पर संबोधित नहीं किया गया तो इसे भोजन की कमी का सामना करना पड़ सकता है। अभी भी एक कम्युनिस्ट मॉडल के तहत काम करते हुए, क्यूबा को अपनी 1.2 करोड़ की मजबूत आबादी के लिए खाद्य आपूर्ति सुरक्षित करने की आवश्यकता है।
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भारत क्यूबा को बचाने में जुटा
आर्थिक मंदी से उबरने में मदद के लिए क्यूबा ने रूस का एक सार्थक और सशक्त विकल्प ढूंढ लिया है और वो है भारत। भारत हरकत में आ गया है और यह सुनिश्चित करने का अथक प्रयास कर रहा है कि कि तनावपूर्ण वैश्विक वातावरण और आपूर्ति श्रृंखला में व्यवधान के कारण क्यूबावासियों को भूखा न रहना पड़े।
इसी संदर्भ में भारत ने क्यूबा को 100 मिलियन यूरो की लाइन ऑफ क्रेडिट (एलओसी) देने का फैसला किया है। इस तरह की क्रेडिट लाइन का प्राथमिक लक्ष्य क्यूबा को अल्पावधि में भोजन की कमी से बचने में मदद करना है। फाइनेंशियल एक्सप्रेस ने भारत सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी के हवाले से कहा- “क्यूबा को 100 मिलियन यूरो के एलओसी को अंतिम रूप देने के लिए बातचीत उन्नत चरणों में है। देश को क्यूबा खाद्यान्न की कमी को पूरा करने के लिए इसका विस्तार किया जा रहा है। एलओसी इस महीने के अंत में सौंपे जाने की उम्मीद है।
एक बार अंतिम रूप दिए जाने के बाद, लाइन ऑफ क्रेडिट भारत को क्यूबा के खाद्यान्न और अन्य खाद्य वस्तुओं का निर्यात करने में सक्षम बनाएगी। हाल ही में, भारत ने सौर पैनलों की स्थापना में मदद के लिए क्यूबा को $75 मिलियन की लाइन ऑफ क्रेडिट भी दी थी।
इस बीच, भारत में क्यूबा के राजदूत को हाल ही में यह कहते हुए उद्धृत किया गया था- “दोनों पक्ष बायोफार्मेसी, नवीकरणीय ऊर्जा, आईटी और कृषि क्षेत्रों में एक दूसरे के पूरक हो सकते हैं। हम भारतीय ट्रैक्टर आयात करना चाहते हैं। हम खाद्य प्रसंस्करण उद्योग में और अधिक भारतीय निवेश करना चाहेंगे।
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क्यूबा का अलगाव और भारत की स्वीकृति
क्यूबा अब 60 से अधिक वर्षों से संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा आर्थिक नाकेबंदी के अधीन है। नाकाबंदी ने क्यूबा की अर्थव्यवस्था को पंगु बना दिया है। चल रहे आर्थिक संकट से जूझ रहे क्यूबा के पीछे अमेरिकी प्रतिबंध प्राथमिक कारक हैं।
विदेश नीति के मामले में अपने स्वार्थ सिद्धि हेतु संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा लगाए गए आर्थिक प्रतिबंध सूची तक सीमित नहीं रहते बल्कि वह अपने मित्र राष्ट्रों को इसके लिए बाध्य करता है। संयुक्त राज्य अमेरीका कम से कम अपने द्वारा लगाए गए आर्थिक प्रतिबंधों को झेलने वाले देशों के साथ अपने भागीदारों, सहयोगियों और दोस्तों के आर्थिक जुड़ाव को रोकने का प्रयास करता है।
फिर भी, जब क्यूबा और लैटिन अमेरिका के अन्य देशों को ऋण सहायता देने की बात आती है तो भारत लगातार अमेरिका की बात माने बिना उनके मदद और आवश्यक वस्तुओं के प्रबंधन का नेतृत्व कर रहा है। क्यूबा भी उन्हीं में से एक है पर, प्रभावी रूप से भारत अमेरिका की क्यूबा की नाकाबंदी को दरकिनार कर रहा है। अब, भारत में क्यूबा के राजदूत मारियल ने क्यूबा के स्पेशल इकोनॉमिक ज़ोन में निवेश करने के लिए नई दिल्ली को भी बुलाया है, जिसे उन्होंने न केवल लैटिन अमेरिका बल्कि कैरिबियन राष्ट्रों में भारत के निवेश के लिए प्रवेश द्वार के रूप में वर्णित किया है।
अब सवाल यह उठता है कि जो बाइडन अब क्या करेंगे? गेंद उनके पाले में है। क्या वह अपने गॉडफादर बराक ओबामा की तरह क्यूबा पर नरमी बरतेंगे? या क्या बाइडन अपने कट्टर दुश्मन डोनाल्ड ट्रम्प के रास्ते पर चलते रहेंगे और क्यूबा पर नाकेबंदी को तेज करेंगे?
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एक तथ्य अब स्पष्ट रूप से स्थापित हो गया है कि भारत अब ऐसा देश नहीं है जो वैश्विक “महाशक्तियों” की छाया के भीतर से संचालित होता है बल्कि अब भारत स्वयं में एक महाशक्ति बन चुका है। भारत की विदेश नीति स्वतंत्र, स्वायत्त और संतुलित है और विशेष रूप से मोदी सरकार के तहत, किसी भी विश्व शक्ति के दबाव एवं डराने धमकाने वाले वक्तव्यों के बावजूद, भारत के राष्ट्रीय हितों को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जाती है।