अवसरवादी ! जितना नकारात्मक यह शब्द है उससे कही अधिक नकारात्मक छवि अब कथित रणनीतिकार प्रशांत किशोर की बनती जा रही। कभी पीएम मोदी के साथ अपनी रणनीतिकार-राजनीतिक पारी खेलने वाले पीके ने बीते 8 वर्षों में थाली के बैंगन वाली छवि बना ली है। अपनी महत्वकांक्षा और स्वार्थ सिद्ध करने के लिए प्रशांत किशोर ने राजनीति के आभामंडल में एक ऐसा वातावरण बना दिया है कि “आया राम गया राम” वाला सिद्धांत एक बार पुनः जीवंत हो चुका है। एक जगह टिकना प्रशांत किशोर के बस में नहीं है, यह उनकी प्रवृत्ति बन चुकी है, ऐसे में यह तो सिद्ध हो चुका है कि, प्रशांत किशोर समय से पहले और अपनी हैसियत से ज़्यादा के आकांक्षी लोभी हैं जो यही कारण है कि वो एक पार्टी के साथ रह ही नहीं सकते हैं।
बड़ा प्रचलित कथन है कि समय से पहले और भाग्य से ज़्यादा आजतक न किसी को मिला है और न ही मिलेगा। इस कथन को प्रशांत किशोर को निश्चित रूप से टेप रिकॉर्डर में ड़ालकर दोहरा-दोहरा कर सुनना चाहिए क्योंकि उनकी लोभी सोच ने उन्हें पीएम लेवल या नीतीश कुमार के समर्थकों की भाषा में कहें तो “पीएम मैटेरियल” बना दिया है, हालांकि बिसात तो उनकी विधायक बनने की भी नहीं है। अब तक जितनी भी पार्टियों में प्रशांत किशोर ने जाकर अपनी संस्था “IPAC” का प्रचार करने के साथ ही उसके लिए उगाही की है उससे वो धनाढ्य तो हो ही गए हैं और रही बची कसर राजनेता बनकर पूरी करना चाहते हैं जो अभी तक संभव नहीं हो सका है।
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हवा का रुख देखकर पाला बदलते PK
वर्ष 2014 में कई सितारों को चमक मिली और कईयों के सितारे गर्दिश में गए, पीके के मामले में यह पीके और उनकी संस्था IPAC के लिए उद्गम का समय था। उन्हें एनडीए गठबंधन की जीत का एक कारक बनने के अवसर के साथ ही पीएम मोदी का आलोचक वाला टैग ही हासिल हुआ जो प्रचार के साथ-साथ उसमें कमियों का आंकलन करके पीएम मोदी को बताते थे। बस 2014 के जीत ने प्रशांत किशोर को नाम दिया और वो बन गए राजनीतिक रणनीतिकार। अब यहाँ भी महत्वकांक्षों की पूर्ती होती नहीं दिखी तो प्रशांत किशोर ने पीएम मोदी और भाजपा से सभी राजनीतिक बंधन ख़त्म कर लिए थे। इसके बाद वो बिहार पहुंचे जहाँ बीजेपी से गठबंधन तोड़ जेडीयू ने आरजेडी के साथ चुनाव लड़ने का निर्णय लिया था और यहाँ भी “मैं एक्सपर्ट हूँ एक्सपर्ट” कहते हुए आ गए माननीय इस बात का ठप्पा लगवाने की मैंने दिया चुनाव जिताये, अब उस पार्टी की कमान मुझे दे दी जाए। यानी पार्टी किसी की, समय किसी का और नेता बनेंगे हम।
फिर आया 2017 और किशोरावस्था वाले प्रशांत किशोर पहुँचे कांग्रेस के दामन में जीत की बगिया खिलाने वो बात अलग है की उत्तर प्रदेश में मठियामेंठ करने के बाद वो कांग्रेस के पंजाब में जीतने का कारक बन गए। न जाने कैसे पर इस प्रतिभा में उनका कोई सानी नहीं है, एक के बाद एक ऐसे कई राज्य पीके चिन्हित करते गए और जीत का सेहरा अपने और IPAC के नाम करने का अदम्य सहस प्रदर्शित करते गए।
2019 में आंध्रप्रदेश में YSRCP की जीत हो या 2020 में पुनः आम आदमी पार्टी की जीत हो सभी में हवा का रुख भांपकर अंत में आकर अभी ठीक करके देता हूँ वाली सोच को भुनाकर प्रशांत किशोर ने यहाँ भी अपनी चुनाव जिताऊ मशीनरी का ढोंग रचाया। समय आया 2021 का, जब पीके ने एक ओर ममता बनर्जी को पूरा समर्पण दिखाते हुए उनके लिए रणनीतिक तिगड़म लगाई तो वहीं दक्षिण में तमिलनाडु में भी दूसरा पैर गढ़ाए हुए DMK का समर्थन करते हुए वहां भी IPAC की जड़ें दिखानी शुरू कर दीं, दोनों राज्यों में ही जीत हासिल हुई और पीके ने कमाई के साथ-साथ कब्जाई का भी प्रबंध करना चाहा। TMC को अपने हिसाब से चलाना तभी संभव था जब उसकी यथावत कमान पीके के हाथ में होती जो ममता बनर्जी अपने जीते-जी तो नहीं होने देतीं।
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न घर के रहे हैं न घाट के
बस फिर क्या था पीके अब मजबूत नहीं मजबूर पार्टी को तलाशते हुए पुनः कांग्रेस के आगंन में चले गए चूंकि कांग्रेस नेतृत्व त्रास से जूझ रहा है और किशोर के अनुसार लोहा गरम होते ही वो हथौड़ा मारने की जुगत में भी थे पर इस बार कांग्रेस तक में उनकी बात नहीं बनी। भाजपा तो खैर कुछ देती ही नहीं, पर 2015 के बाद जेडीयू हथियाने का प्रपंच रहा हो, 2017 के बाद कांग्रेस का चेहरा बनने का प्रयास रहा हो, या फिर 2021 में टीएमसी को अपना बनाने की जुगत हो या, अंततः 2022 में पुनः कांग्रेस के दरवाजे पर किशोर मांगे छांव, थूका चाटा, चाटा थूका गधा बनाया बाप पर आया न पंजा हाथ।
आज प्रशांत किशोर प्रपंचकर्ता, ढोंगी व्यक्तित्व वालों में अग्रज और अहम भूमिका के साथ खड़े हुए प्रतीत होते हैं। वो बात अलग है हर ओर से धुत्कार और धिक्कार मिलने के बाद किशोर अभी न घर के रहे हैं न घाट के। जिस हिसाब से कांग्रेस तक में उनकी हालत दोयम दर्ज़े तक पहुँच गई है ऐसे में कौन ही हारे हुए महत्वकांक्षी घोड़े पर दांव लगाएगा।
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