किसी ने सही ही कहा है, “मुझे उस व्यक्ति से भय नहीं जिसने दस हज़ार दांव सीखे हों, मुझे उस व्यक्ति से भय है जिसने एक दांव पर दस हजार बार अभ्यास किया हो!” कूटनीति के परिप्रेक्ष्य में ये बात अब विदेश मंत्री सुब्रह्मण्यम जयशंकर पर शत प्रतिशत सही बैठती है। वर्तमान संसदीय सत्र में न केवल एस जयशंकर ने विपक्ष के खोखले दावों की पोल खोली, बल्कि एक ऐसा दांव से उन्हें चारों खाने चित्त किया जिसकी उन्होंने सपने में भी कल्पना नहीं की होगी।
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विदेश नीति पर उठे प्रश्नों पर जयशंकर का आक्रामक रुख
सुब्रह्मण्यम जयशंकर आम तौर पर अपने शब्दों के लिए कम और अपने एक्शन के लिए अधिक चर्चा में रहते हैं परंतु कल सदन में भारत की विदेश नीति पर उठे प्रश्नों पर उन्होंने जो आक्रामक रुख अपनाया, उससे बड़े से बड़े विरोधी भी सकते में आ गए।
टाइम्स नाऊ की एक रिपोर्ट के अंश के अनुसार, “[जयशंकर ने] एडवायजरी के संबंध में कहा कि अगर यह कदम प्रभावी न रहा होता तो जंग शुरू होने से पहले चार हजार लोग भारत क्यों आए। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि भारत ही एकलौता देश है जिसने 20 हजार लोगों को यूक्रेन के अलग अलग शहरों से बाहर निकाल कर स्वदेश लाया। पीएम मोदी ने रूस और यूक्रेन के राष्ट्राध्यक्षों से वार्तालाप की। अब और किनसे वार्तालाप की आवश्यकता है? पीएम मोदी ने जिनसे आवश्यक था उनसे बात की। शायद आवश्यक लोगों से बातचीत करना आपकी दृष्टि में आवश्यक नहीं परंतु भारत सरकार के लिए उनकी कूटनीति स्पष्ट है”।
परंतु जयशंकर वहीं पे नहीं रुके। उन्होंने एक विपक्षी सदस्य द्वारा वीके कृष्ण मेनन का उल्लेख करने पर व्यंग्यात्मक लहजे में कहा, “मैं आपको विश्वास दिलाता हूं, मैं छह मिनट में वही कह सकता हूं। आज हमें विदेश नीति पर दुनिया को ‘ज्ञान’ देने की चिंता कम करनी चाहिए। हमें अपनी भूमिका निभानी चाहिए। हमें अपना योगदान देना चाहिए। हमें अपना राष्ट्रीय हित देखना चाहिए” –
I can say in 6 minutes what VK Krishna Menon took hours to do at the UN. We should stop giving gyaan to the world and worry about our national interests: Dr. S. Jaishankar.
What a speech by our EAM @DrSJaishankar !
Content copied from @Mohansinha
Video credit @RajMohanSinha pic.twitter.com/nqlJhidlAX— Jayesh Mehta (@JMehta65) April 6, 2022
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विपक्ष से न उगलते बने न निगलते
अब विपक्ष से न उगलते बने न निगलते। बता दें कि वीके कृष्ण मेनन जवाहरलाल नेहरू की सरकार में प्रथम रक्षा मंत्री थे, जिनके नाम UN में सबसे लंबा भाषण देने का रिकॉर्ड रहा है। इसके साथ ही उनकी रक्षात्मक नीतियों पर अनेकों प्रश्न उठे और उन्हीं के प्रशासन में देश का सर्वप्रथम सरकारी घोटाला यानी ‘जीप घोटाला’ भी हुआ। यदि भारत 1962 के युद्ध में बुरी तरह पराजित न हुई होती तो ये महोदय गोंद की तरह आजीवन रक्षा मंत्री की कुर्सी से चिपके होते।
इससे पूर्व में भी सुब्रह्मण्यम जयशंकर ने स्पष्टता के साथ राष्ट्रहित को सर्वोपरि रखा है। हाल ही में जब अमेरिका ने भारत को धमकाने का प्रयास किया, तो जयशंकर ने उलटे अमेरिका को लताड़ लगाते उनका धागा खोल दिया।
भारत-ब्रिटेन सामरिक फ्यूचर्स फोरम में बोलते हुए, एस जयशंकर ने बताया कि यूरोपीय देश रूसी गैस और तेल के सबसे बड़े आयातक थे। रूसी कच्चे तेल को रियायती कीमतों पर खरीदने के निर्णय का बचाव करते हुए, विदेश मंत्री ने इस बात पर जोर दिया कि भारत के लिए ऊर्जा आपूर्ति पर अच्छे सौदे प्राप्त करना महत्वपूर्ण था, वो भी ऐसे समय में जब वैश्विक बाजार अस्थिर थे।
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एस जयशंकर ने आगे क्या कहा?
उन्होंने आगे कहा, “यह दिलचस्प है क्योंकि हमने कुछ समय के लिए देखा है कि इस मुद्दे पर लगभग हमारे खिलाफ एक अभियान चलाया जा रहा है। जब तेल की कीमतें बढ़ती हैं, तो मुझे लगता है कि देशों के लिए सस्ते बाजार में जाना स्वाभाविक है और एक देश के रूप में यह देखना कि उनके लोगों के लिए क्या अच्छे सौदे हैं।”सच कहें तो अपने वक्तव्य से एस जयशंकर ने सिद्ध कर दिया कि वे क्यों वास्तव में दिवंगत विदेश मंत्री सुष्मा स्वराज के वास्तविक उत्तराधिकारी हैं।