उत्तर प्रदेश विधानसभा परिषद के चुनाव परिणाम आ चुके हैं और इस बार भी योगी आदित्यनाथ का बुलडोजर बाकी पार्टियों के जीत के सपने को कुचलता हुआ विधानसभा भवन की ओर चल चुका है। 36 सीटों पर हुए चुनाव में भाजपा ने 33 सीटों पर विजय प्राप्त की है। दो सीटों पर निर्दलीय जीते और एक सीट पर राजा भैया की जनसत्ता पार्टी ने कब्जा जमाया है। वहीं, सपा का खाता भी नहीं खुल सका। उच्च सदन में नेता प्रतिपक्ष का पद पाने के लिए समाजवादी पार्टी के पास 10 विधायक उन्हें आवश्यक है किंतु विधान परिषद में जुलाई महीने तक समाजवादी पार्टी के 10 विधायक शेष नहीं रहेंगे। ऐसे में जुलाई महीने में सपा से नेता प्रतिपक्ष का पद छिन सकता है।
महत्वपूर्ण बात यह है कि 2017 में भाजपा की जीत से पूर्व विधान परिषद में भारतीय जनता पार्टी के केवल 7 सदस्य हुआ करते थे। जबकि सपा सबसे बड़े दल के रूप में काबिज थी। किंतु 5 वर्षों में समीकरण पूरी तरह बदल चुके हैं और अब समाजवादी पार्टी इकाई की अंक पर पहुंचने वाली है।
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सपा का हो जाएगा सूपड़ा साफ
वर्तमान में भाजपा की सदस्य संख्या 67 है जबकि सपा के पास 17 सदस्य हैं। जुलाई तक सपा के 12 विधायकों का कार्यकाल समाप्त हो जाएगा। आगामी विधान परिषद चुनाव में यदि सपा को सफलता नहीं मिलती है तो वह 5 विधायकों के साथ विपक्ष में बैठेगी। सपा की 17 में से 6 सीट राज्यपाल कोटे से नामित विधायकों की है। इन विधायकों का नामांकन समाजवादी पार्टी की सरकार में तात्कालिक राज्यपाल द्वारा सरकार की संस्तुति पर किया गया था। 28 अप्रैल को सपा के द्वारा राज्यपाल कोटे से नामित एमएलसी बलवंत सिंह रामूवालिया, वसीम बरेलवी और मधुकर जेटली का कार्यकाल पूरा हो जाएगा. इसके बाद 26 मई को भी राज्यपाल कोटे से नामित तीन एमएलसी राजपाल कश्यप, अरविंद कुमार व संजय लाठर का कार्यकाल खत्म हो जाएगा. यह 6 सीट भी भाजपा के खाते में जाना सुनिश्चित है।
जुलाई में विधानसभा कोटे की 13 सीटें रिक्त हो रही हैं, जिनमें सपा के छह सदस्य, बसपा के तीन, कांग्रेस के एक और तीन बीजेपी के सदस्य हैं. वर्तमान में भाजपा की सरकार है और विधानसभा में भाजपा के पास बहुमत है इसलिए विधानसभा कोटे की सीट पर भी भाजपा के विधायक नामित किए जाएंगे, यह सुनिश्चित है। उत्तर प्रदेश विधान परिषद में 100 सीट है। जुलाई तक भारतीय जनता पार्टी इन 100 सीटों में से 79 सीट पर कब्जा जमा चुकी होगी।
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