भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व के चौंकाने वाले फैसले के बाद त्रिपुरा के पूर्व मुख्यमंत्री बिप्लब देब ने इस्तीफा दे दिया। उनकी जगह पर डॉक्टर माणिक साहा त्रिपुरा के नए मुख्यमंत्री बने हैं। केंद्रीय नेतृत्व ने यह फैसला किन परिस्थितियों में तथा किस रणनीति के अंतर्गत लिया है, इसके बारे में कोई स्पष्ट जानकारी नहीं है।
मीडिया अटकलें लगा रही है कि पार्टी में बिप्लब देब के नेतृत्व के कारण कोई असन्तोष था, किन्तु यह अफवाह ही है। कारण यह है कि बिप्लब देब के नेतृत्व में पिछले 4 वर्षों में त्रिपुरा में अभूतपूर्व विकास हुआ है। बिप्लब देब ने त्रिपुरा को अगले 25 वर्षों में पूरी तरह से बदलकर आर्थिक हब बनाने का रोड मैप बनाया था और इसके लिए कार्य भी शुरू कर दिया गया था।
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बिप्लब देब के नेतृत्व में ‘सुवर्ण जयंती त्रिपुरा निर्माण योजना’ के अंतर्गत इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास हेतु 1 हजार करोड़ रुपये खर्च करने की योजना लाई गई। त्रिपुरा में न्यूजीलैंड की तकनीक पर आधारित हाउसिंग योजना इस वर्ष दिसंबर तक पूरी हो जाएगी। सरकार की इस महत्वकांक्षी योजना से गरीब वर्ग को सस्ते दामों पर फ्लैट मिलेंगे। यह हाउसिंग स्कीम भूकंप से सुरक्षित रहे इसके लिए विशेष ध्यान दिया गया है। इसके साथ ही बिप्लब देब के नेतृत्व में त्रिपुरा को उसका दूसरा हवाईअड्डा मिला है।
त्रिपुरा अपने जंगली क्षेत्र और पर्यावरण के कारण पर्यटन के लिए आकर्षक क्षेत्र बनने की क्षमता रखता है। इसके अतिरिक्त त्रिपुरा का धार्मिक महत्व भी है। इस राज्य का उल्लेख पुराणों और महाभारत में है। यहां 51 शक्तिपीठ में एक त्रिपुरा सुंदरी मंदिर है। किंतु राज्य तक पहुँचने के लिए रेलवे की अनुपलब्धता राज्य के पर्यटन में रुकावट बन रही थी।
बिप्लब सरकार में रेलवे कनेक्टिविटी पर विशेष ध्यान दिया गया। जल्द ही त्रिपुरा को असम में लुमडिंग के लिए एक डबल लाइन रेलवे लिंक और एक मल्टीमॉडल ट्रांसपोर्ट हब मिलने वाला है। रेलवे कनेक्टिविटी राज्य के आर्थिक विकास के लिए सबसे आवश्यक घटक है। इसके साथ ही बांग्लादेश से व्यापारिक संबंध मजबूत करने के लिए भी त्रिपुरा को माध्यम बनाया गया है। इसमें केंद्र व राज्य सरकार साथ मिलकर काम कर रहे हैं। निवेश को बढ़ावा देने के लिए बिप्लव सरकार द्वारा ‛त्रिपुरा इंडस्ट्रियल इन्वेस्टमेंट प्रमोशन इंसेंटिव स्कीम’ शुरू की गई है।
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इन तमाम उपलब्धियों के साथ ही अगर बिप्लब सरकार की सबसे बड़ी उपलब्धि की बात करें तो वो कानून व्यवस्थाको सुदृढ़ करना है। लंबे समय तक वामपंथी शासन में रहने वाला यह राज्य राजनीतिक हत्याओं के मामले में बंगाल और केरल से पीछे नहीं था। बिप्लब सरकार में ना केवल राजनीतिक हत्याएं पर रोक लगी बल्कि दूसरे तरह के अपराधों पर भी सरकार ने कठोर रवैया अपनाया।
त्रिपुरा कोई औद्योगिक क्रांति वाला राज्य नहीं है। ग्रामीण पृष्ठभूमि के कारण इस राज्य में गाय का विशेष महत्व है और यह महत्व धार्मिक के साथ आर्थिक कारणों से भी है। इसलिए त्रिपुरा में गौ तस्करी एक ज्वलंत सामाजिक मुद्दा है, समय-समय पर गौ तस्करों और ग्रामीणों के बीच टकराव की खबरें आती रहती हैं। मॉब लिंचिंग की घटनाओं पर विपक्ष ने सरकार को ख़ूब बदनाम करने की साज़िश रची किंतु सरकार इन दबावों के आगे झुकी नहीं।
त्रिपुरा के पूर्व मुख्यमंत्री माणिक सरकार की छवि भले ही ईमानदार नेता की थी किंतु उनकी पार्टी के अन्य मंत्रियों द्वारा त्रिपुरा में व्यापक रूप से भ्रष्टाचार किया गया था। इसके विपरीत बिप्लब सरकार पर 4 वर्ष में भ्रष्टाचार का एक भी आरोप नहीं लगा है।
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लंबे समय तक पश्चिम बंगाल भारत की बंगाली संस्कृति का एकल प्रतिनिधि बना हुआ था। किंतु बिप्लब देब सरकार में केंद्र और राज्य दोनों सरकारों ने यह प्रयास किया कि त्रिपुरा को बंगाली संस्कृति के नए रोल मॉडल के रूप में आगे बढ़ाया जाए। बांग्लादेश के साथ त्रिपुरा एक लंबी सीमा साझा करता है। इसके बाद भी पूर्ववर्ती सरकारों में त्रिपुरा के महत्व को नजरअंदाज किया जाता रहा। किंतु मोदी सरकार में बिप्लब देब के नेतृत्व वाले त्रिपुरा को उसका उचित स्थान दिया गया।
बिप्लब देब ने राज्य के विकास के साथ-साथ राज्य की संस्कृति को बढ़ाने और सामाजिक समस्याओं को सुलझाने के अनवरत प्रयास किए। वह पूर्वोत्तर भारत में भाजपा के फायर ब्रांड नेताओं में एक हैं।
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