दीपिका पादुकोण के पास इतना दुख दर्द, कष्ट, पीड़ा है कि इसे देख कोई भी पाषाण हृदय पानी पानी हो जाए। कैसे नहीं होगा, दीपिका पादुकोण जो ठहरी, कैसे गलत हो सकती है भैया। परंतु क्या यह वास्तव में इतनी पीड़ित हैं, जितना दिखाती हैं? इस लेख में हम बेचारी दीपिका पादुकोण के इसी पहलू को जानेंगे जहां वह इतनी बेचारी हैं कि इनके बेचारेपन पर दया कम और हंसी अधिक आती है।
हाल ही में दीपिका पादुकोण ने वोग इंडिया मैगज़ीन को दिए साक्षात्कार में इस बात का रोना रोया कि कैसे उन्हें उनके दक्षिण भारतीय परिवेश के लिए काफी विरोध का सामना करना पड़ा था, और उन्हें भय था कि कहीं इसके कारण उनका करियर खत्म न हो जाए। दुख हुआ जानकर कि दीपिका जी को इतना भेदभाव का सामना करना पड़ा।
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दीपिका पादुकोण ने पहली बार नहीं अश्रु गंगा बहायी है
हालांकि ये प्रथम ऐसा अवसर नहीं है जब दीपिका पादुकोण ने विक्टिम कार्ड की ऐसी अश्रु गंगा बहायी हो। ज़रा समय का पहिया घुमाइए और चलिए उस समय की ओर, जब महोदया ने दावा किया थी कि इन्हें अपने सपनों को प्राप्त करने के लिए कितना स्ट्रगल करना पड़ा था। किसको उल्लू बना रही हैं आप? जिसका पहला म्यूज़िक वीडियो हिमेश रेशमिया के साथ आया हो, जिसकी पहली फिल्म शाहरुख खान के साथ आई हो और जिसके पिता बैडमिंटन के सुपरस्टार हों, उसे स्ट्रगल करना पड़ा हो?
अरे ये तो कुछ भी नहीं है। याद है वो ‘माई चॉइस’ वाली वीडियो, जहां मैडम जी ने वुमन एमपावरमेंट पर खूब लंबा चौड़ा ज्ञान दिया था। बात यहां तक पहुंच गई कि महोदया के लिए ‘विवाहोत्तर संबंध’ भी ‘माई चॉइस’ बन गई। जी हां, adultery भी दीपिका पादुकोण के लिए एक चॉइस है। अब ये वैधानिक रूप से गलत हो या नहीं इस पर तो लंबी चौड़ी चर्चा हो सकती है, परंतु नैतिक रूप से क्या ये सही है?
अब बात नैतिकता की आई है, तो दीपिका पादुकोण के एक और पक्ष पर भी ध्यान देना होगा – अवसाद। कहते हैं कि निजी कारणों से दीपिका पादुकोण को काफी समय तक अवसाद में रहना पड़ा था। अब ये अवसाद क्यों हुआ और कैसे, यह कुछ लोगों के लिए एक निजी विषय हो सकता है, और किसी के बीमारी का आप उपहास नहीं उड़ा सकते, परंतु दीपिका इतनी बेचारी निकली कि इन्होंने अपनी ही बीमारी का जबरदस्त प्रचार किया और दुनिया को बताया कि अपनी बीमारी की मार्केटिंग कैसे की जाती है।
JNU यात्रा कैसे भूल सकते हैं
एक दुर्घटना में अपना सब कुछ गंवाने वाली पीड़िता लक्ष्मी अग्रवाल की व्यथा चित्रित करने वाली दीपिका उसकी कथा के लिए समर्थन जुटाने JNU पहुंची क्योंकि ‘क्रांति की नर्सरी’ से बेहतर प्रोमोशन लॉन्चपैड एक ‘पीड़िता’ के लिए कोई हो सकता है क्या? लेकिन प्रोमोशन का तो पता नहीं, उलटे इनके चरित्र की पोल पट्टी अवश्य खुल गयी। चूंकि ये यात्रा CAA विरोध प्रदर्शन के समय हुई इसलिए दीपिका पादुकोण के विक्टिम कार्ड ने जो रायता फैलाया उसके बारे में जितना लिखा जाए उतना कम।
अब आते हैं दीपिका पादुकोण के उस दावे पर, जहां वह कहती हैं कि उनके दक्षिण भारतीय बोली के कारण बॉलीवुड में उन्हे ‘विरोध’ का सामना करना पड़ा। आंटी जी आपके लॉजिक से तो फिर हेमा मालिनी, वैजयंतीमाला, रेखा, जयाप्रदा, विद्या बालन, ऐश्वर्या राय जैसे अभिनेत्रियों को कभी काम ही नहीं मिलना चाहिए थे, क्योंकि ये सभी दक्षिण भारतीय क्षेत्रों से संबंध रखती है और अभी तो हमने हम सबकी चहेती, ‘श्रीदेवी’ के बारे में बात भी नहीं की है, जिनके चर्चे तो कटक से अटक तक व्याप्त थे।
वास्तव में दीपिका पादुकोण एक ऐसी अभिनेत्री हैं, जो अपने अभिनय और कला के लिए कम, और विवादों के लिए अधिक चर्चा में रहती हैं। ये चाहती हैं कि ये जो कहें, जनता उसे सर आंखों पर ले, पर जनता अब सोचती होगी– छोटी बच्ची हो क्या?