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अहिल्याबाई होल्कर– भारत के सांस्कृतिक उद्धार में जिनका अतुलनीय योगदान है

वामपंथियो की सोच पर अहिल्याबाई होल्कर करारा तमाचा हैं !

Animesh Pandey द्वारा Animesh Pandey
31 May 2022
in इतिहास
अहिल्याबाई होल्कर की प्रतिमा

Source- TFIPOST.in

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निरंतर हमें वामपंथियों ने अपमानित करने हेतु हमारी संस्कृति को पितृसत्तात्मक यानि patriarchal एवं रूढ़िवादी, एवं अंधविश्वास से परिपूर्ण ठहराने का परिपूर्ण, भले ही खुद में लाख कमियाँ छुपी हो। परंतु उन्हे निरुत्तर करने के लिए हमारे पास अधिकतम ठोस तर्कों और उदाहरणों की ‘कमी’ होती थी। ऐसा नहीं था कि हमारे पास ऐसे लोग नहीं थे, परंतु उनके बारे में हमें कभी आभास ही नहीं था, और ऐसी ही एक वीरांगना थी अहिल्याबाई होल्कर, जो वामपंथियों के खोखले इतिहास को धाराशायी करने के लिए अपने आप में पर्याप्त है। इंदौर प्रांत की सूबेदारणी के रूप में प्रसिद्ध इस वीरांगना का जन्म आज ही के दिन यानि 31 मई को 1725 में हिंदवी स्वराज्य के चौंडी ग्राम में हुआ था, जो वर्तमान महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले में स्थित है। इनके पिता थे मानकोजी शिंदे और इनकी माँ थी सुशीला शिंदे, जो एक धनाढ्य ढाँगर पाटिल परिवार, यानि गौपालक परिवार से संबंध रखते थे।

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यह वो भी समय था, जब हिंदवी स्वराज्य के पेशवा माधवराव थे, जो किशोरावस्था में ही पेशवा बनाए गए थे, और जिन्हे भारत को आंतरिक, एवं बाहरी, दोनों प्रकार के शत्रुओं से बचाना था। ऐसे में उनकी सहायता की तीन प्रमुख योद्धाओं ने – नाना फड़नवीस, जिन्होंने प्रशासन के साथ-साथ रघुनाथ राव जैसे कुलद्रोहियों से हिंदवी स्वराज्य की रक्षा की, महादजी शिंदे, जिन्होंने सैन्यबल को असीमित शक्ति प्रदान की, और अहिल्याबाई होल्कर, जिन्होंने शस्त्र और शास्त्र, दोनों ही प्रकार से हिंदवी स्वराज्य को एक नई ऊर्जा और दिशा प्रदान की। ये अहिल्याबाई होल्कर ही थी, जिन्होंने भारत के अनेकों मंदिरों और धर्मशालाओं का सांस्कृतिक पुनरुद्धार किया। आज जिस काशी विश्वनाथ मंदिर के भव्य परिसर का जीर्णोद्धार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रशासन ने करवाया, उसकी नींव इन्होंने ही रखी थी।

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जब चारों ओर हाहाकार मचा हुआ था। शासन और व्यवस्था के नाम पर घोर अत्याचार हो रहे थे। प्रजाजन-साधारण गृहस्थ, किसान मजदूर-अत्यन्त हीन अवस्था में सिसक रहे थे। उनका एकमात्र सहारा-धर्म-अन्धविश्वासों, भय त्रासों और रूढि़यों की जकड़ में कसा जा रहा था। न्याय में न शक्ति रही थी, न विश्वास। ऐसे काल की उन विकट परिस्थितियों में अहिल्याबाई होल्कर ने जो कुछ किया-और बहुत किया, उसके बारे में जितना लिखें वह कम है।

 

 

Tags: अहिल्याबाई होल्करभारत
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वंदे मातरम्, विभाजन की मानसिकता और मोदी का राष्ट्रवादी दृष्टिकोण – इतिहास, संस्कृति और आत्मगौरव का विश्लेषण
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वंदे मातरम्, विभाजन की मानसिकता और मोदी का राष्ट्रवादी दृष्टिकोण – इतिहास, संस्कृति और आत्मगौरव का विश्लेषण

10 November 2025

भारत के राजनीतिक और सांस्कृतिक इतिहास में वंदे मातरम् केवल एक गीत नहीं, बल्कि एक चेतना और राष्ट्र की आत्मा का उद्घोष रहा है। यह...

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