हमारे स्वास्थ्य क्षेत्र की गुमनाम नायक हैं आशा वर्कर्स, जिन्हें अब WHO ने किया है सम्मानित

कोरोना महामारी में लोगों की जान बचाने हेतु दीवार की भांति खड़ी रही आशा वर्कर्स!

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हाल ही में विश्व स्वस्थ्य संगठन (WHO) ने 10 लाख महिला आशा कार्यकर्ताओं को ग्लोबल हेल्थ लीडर्स अवार्ड से सम्मानित किया है. यह सम्मान उन्हें ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सुविधाएं पहुंचाने के लिए और कोरोना महामारी के दौरान एक फ्रंटलाइन वर्कर की अहम भूमिका निभाने के लिए मिला. इस मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आशा कार्यकर्ताओं को बधाई दी. उन्होंने अपने ट्विटर हैंडल पर लिखा, मुझे इस बात की खुशी है कि आशा कार्यकर्ताओं की पूरी टीम को डब्ल्यूएचओ महानिदेशक के ग्लोबल हेल्थ लीडर्स अवार्ड से सम्मानित किया गया है. सभी आशा कार्यकर्ताओं को बधाई. वे एक स्वस्थ भारत सुनिश्चित करने में सबसे आगे हैं. उनका समर्पण और दृढ़ संकल्प सराहनीय है. इस आर्टिकल में हम स्वास्थ्य क्षेत्र के इस गुमनाम नायकों के बारे में विस्तार से समझेंगे, जिन्हें अब विश्व स्वास्थ्य संगठन की ओर से सम्मानित किया गया है.

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एक स्वस्थ भारत बनाने में सबसे आगे हैं आशा वर्कर्स

तो कौन  हैं ये आशा वर्कर्स और क्या करती हैं? इतना बड़ा सम्मान पाने वाला उन्होंने क्या काम किया है और देश के स्वास्थ्य में उनका क्या योगदान है? दरअसल, आशा वर्कर्स, वे स्वयंसेवक या volunteers हैं जो देश के पिछड़े से पिछड़े इलाकों तक गवर्नमेंट की कई हेल्थकेयर स्कीम्स पहुंचाती हैं. वे उन पिछड़े वर्गों और हेल्थ केयर सेंटर्स एवं हॉस्पिटल के बीच के पुल हैं जिसके दम पर आज भारत कोरोना जैसी भयावह महामारी से अच्छे से लड़ रहा है. मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ता (Accredited Social Health Activist) यानी ASHA की स्थापना साल 2005 में National Rural Health Mission (NRHM) के तहत  हुई, जिसमें स्थानीय महिलाओं को उनके समुदाय में स्वास्थ्य शिक्षकों के रूप में कार्य करने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है.

आज देश में 10 लाख से ज़्यादा आशा वर्कर्स हैं जिसमें उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे ज़्यादा आबादी वाले राज्यों में सबसे ज़्यादा महिलाएं इस वर्कफोर्स का हिस्सा हैं. आशा स्वास्थ्य कार्यकर्ता ज़मीनी स्तर पर कार्य करती हैं. वे घर-घर जाकर लोगों को बुनियादी पोषण और स्वच्छता के बारे में जागरूक करती हैं. मलेरिया, एनीमिया और टीबी के मरीज़ों तक दवाएं पहुंचाती है. गर्भवती महिला को गर्भावस्था के दौरान सभी दवाएं और ज़रूरी पोषण उपलब्ध हो, आशा कार्यकर्ताओं द्वारा इसपर भी विशेष ध्यान दिया जाता है. ये पल्स पोलियो प्रोग्राम का हिस्सा बन घर-घर जाकर अपनी ड्यूटी निभाती हैं और यह उनकी ही मेहनत का नतीजा है कि साल 2014 तक भारत पूरी तरह से पोलियो मुक्त हो गया था.

इतना ही नहीं, कोरोना काल में जब लोग अपने घरों से निकलने से डर रहे थे, तो उस समय भी यही वीरांगनाएं उन इलाकों में जाती थी, जिन्हें रेड जोन, ऑरेंज जोन आदि घोषित किया गया था. वे वहां पहुंचकर उन मरीज़ों के Temprature लेना, उनका टेस्ट करना, अगर वे होम क्वारंटीन या क्वारंटीन सेंटर्स में हैं तो वहां पहुंचकर उनकी हर संभव सहायता करना, लोगों में कोविड के लक्षणों की जांच करना और अगर किसी को खांसी, ज़ुकाम या बुखार है तो उसका चेकअप करवाना ये सभी काम आशा वर्कर्स ने किये हैं.

महामारी में अपनी जान जोखिम में डालकर किया था काम

आपको यह सब सुनकर हैरानी हो रही होगी लेकिन जिस तरह हमारे डॉक्टर फ्रंटलाइन पर खड़े होकर उस महामारी से लड़ रहे थे, उसी तरह ये आशा कार्यकर्ताएं भी उसका डटकर सामना कर रही थी. दुःख की बात तो यह है कि जहां एक तरफ डॉक्टर के योगदान को सबने माना और सराहा, तो वहीं दूसरी ओर ये आशा कार्यकर्ताएं किसी फिल्म के उन पात्रो की तह बनकर रह गई जिनकी मेहनत और योगदान पर किसी ने एक नज़र भी नहीं डाली. अगर कोरोना काल में डॉक्टर को कुछ मूर्ख लोगो की बदसलूकी झेलनी पड़ी, उसी तरह आशा वर्कर्स को भी कई परेशानियों और उत्पीड़न का सामना करना पड़ा. महामारी के दौरान उन्होंने संक्रमित मरीज़ों के घरों में जाकर उन्हें दवाएं और ऑक्सी मीटर्स उपलब्ध करवाए और अपनी जान जोखिम में डालकर सर्वे तक किया.

वैसे तो NHM की गाइडलाइन्स के तहत आशा में जो भी महिलाएं कार्य करती हैं वे अपनी इच्छा से करती हैं और इसके लिए वेतन या कोई सैलरी नहीं मिलती, क्योंकि उनका कहना था कि यह कार्य उनकी रोजमर्रा की ज़िंदगी में बाधक नहीं बनेगा. यह एक तरह की समाजसेवा है. पर पिछले कुछ सालों में उनका कार्यभार जो हफ्ते में केवल 2 घंटे की स्वयंसेवा थी, वह अब बढ़कर हफ्ते के 25 से 30 घंटे तक हो गई है. आज देश भर की आशा वर्कर्स हफ्ते के औसतन 15 से 16 घंटे काम करती हैं और उन्हें तो शनिवार और रविवार की भी कोई छुट्टी नहीं मिलती. लेकिन ये देश के लोगों की सेवा करने से अभी तक पीछे नहीं हटी हैं. हाल ही में मोदी सरकार ने आशाकर्मियों की प्रोत्साहन राशि बढ़ाकर दोगना करने और आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं का मानदेय 3000 रूपये से बढ़ा कर 4500 रूपये करने का फैसला किया है। सरकार भी इनके उत्थान की दिशा में द्रुत गति से काम कर रही है।

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