यह खबर उन लोगों के मुंह पर करारा तमाचा है जो ये सोचते हैं कि कांग्रेस की जड़ स्वतंत्रता संग्राम से निकली है। यह उन लोगों के साथ भी विश्वासघात है जो ये मानते हैं कि कांग्रेस की नींव राष्ट्र के शूरवीरों ने रखी है। कांग्रेस के सन्दर्भ में ये सारी बातें स्वतंत्रता पूर्व सत्य हो सकती थीं परन्तु जैसे ही नेहरु भारत के प्रथम प्रधानमंत्री बने कांग्रेस भारत की कोई पार्टी नहीं बल्कि गांधी परिवार की एक निजी संस्था बन गयी जो पूरे देश में चुनाव और लोकतंत्र का धंधा करती है। इंदिरा काल इसी स्वीकारोक्ति की पराकाष्ठा है। उसके बाद राजीव फिर राजनीतिक दलाली, सरकार गिराने और बनाने का दौर चलता रहा। फिर, मनमोहन के नाम पर सोनिया ने सत्ता संभाली और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत के प्रधानमंत्री पद का मखौल उड़ाया। अंततः, एक परिवार के इसी अहंकार, तानशाही रवैया और विदेश प्रेम के कारण जनता ने कांग्रेस को सत्ता से बेदखल कर दिया और एक ऐसे व्यक्ति की सत्तासीन किया जो कभी भारत के सम्मान के साथ समझौता ना करे। पर फिर भी कुछ मीडिया, गैर-सरकारी संस्थान और स्वयं कांग्रेस पार्टी द्वारा शहजादे को ‘देश का महाराज’ बनाने के हठ के कारण कांग्रेस निरंतर गर्त में जाती रही।
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चिंतन शिविर में हो क्या रहा है?
लगातार हार के कारण कांग्रेस ने 13 मई से 15 मई तक उदयपुर में चिंतन शिविर का आयोजन किया। पर यहां चिंतन कम मस्ती ज्यादा हुई, मस्ती करते हुए आखिरकार कांग्रेसी नेता मुद्दे पर पहुंचे और सोचा की भाजपा हमें परिवारवाद के मुद्दे पर घेरती रहती है अतः, इस विकार को ही ख़त्म कर दिया जाए। अतः, ‘एक आदमी, एक पद’ और ‘एक परिवार से एक टिकट’ का प्रस्ताव लाया गया। लेकिन, इससे तो आलाकमान ही दुविधा में फंस गयी क्योंकि अगर ऐसा हुआ तो वो कौन है जिसे गांधी परिवार में टिकट दिया जायेगा? नियम के तहत, गांधी परिवार के केवल एक सदस्य को कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ने की अनुमति होगी और वह सदस्य होने की सबसे अधिक संभावना राहुल गांधी होंगे। इस पर प्रियंका के समर्थक चिढ़ गए, कहने लगे सारी चीज़े भैया ही ले लेंगे तो दीदी को क्या मिलेगा? 2024 में प्रियंका गांधी के संभावित चुनावी मैदान का क्या होगा? क्या सोनिया गांधी उन्हें बाहर कर रही हैं? या गांधी परिवार के लिए कोई अपवाद होगा?
निश्चित रूप से राजा अपवाद ही होता है, अतः, गांधी परिवार को अपवाद रखा गया, कई नेताओं ने तो इस प्रावधान को स्वीकार कर लिया पर कईयों ने मुह फुला लिया कि फिर, उनके बच्चों या करीबी रिश्तेदारों को टिकट क्यों नहीं दिया जाये, प्रश्न ये भी उठा की क्या इस प्रावधान से इस आलोचना को बल नहीं मिलेगा कि कांग्रेस गांधी परिवार से परे नहीं देख सकती?
निश्चित ही मिलेगा, पर, नासमझ राजा को पार्टी और प्रजा की भलाई से क्या मतलब उसे तो बस राजा रहने से मतलब है, अतः, तय हुआ की गांधी परिवार अपवाद बनी रहेगी, अगर मंत्री-संत्री को अपने बच्चों को टिकट दिलाना है तो पहले 5 साल की पार्टी की सदस्यता खरीद लें, मेरा मतलब हैं ले लें, राजा भी खुश और मंत्री भी, दीदी का करियर भी बच गया और राजमाता की गद्दी भी सुरक्षित रही,
पर, ये खबर मीडिया के माध्यम से आम जनता में फ़ैल गयी, विडम्बना देखिये, इस खबर को प्रसारित कर कांग्रेस को नंगा करने का काम उसी मीडिया ने किया जो कभी कांग्रेस की चहेती हुआ करती थी, नाम है- ndtv.
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गांधी परिवार की चालीसा गाती रहती थी NDTV
ये वही NDTV है जो कभी दिन रात राहुल और गांधी परिवार की चालीसा गाते रहती थी, ये वही NDTV है जिसके प्राइम टाइम वाले भैया के भैया को बिहार विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की ओर से टिकट भी मिला, पर, इस बार NDTV ने कांग्रेस पार्ट्री द्वारा परिवारवाद को नियमों के आड़ में मान्यता देने और गांधी परिवार को अपवाद रखने वाले की पोल खोल दी। युवराज की इस अपमान से कांग्रेस चिढ़ गयी और उसके युवा मोर्चा के अध्यक्ष श्रीनिवास ने ट्वीट करते हुए कहा की गांधी परिवार को अपवाद की श्रेणी में नहीं रखा गया है बल्कि NDTV को एक हिंदी ट्रांसलेटर की आवश्यकता है, उनके कहने का सार था कि पार्टी में परिवारवाद बना हुआ है बस आपको 5 साल की सदस्यता खरीदनी पड़ेगी, एक पार्टी और एक उसकी वफादार मीडिया संस्थान को सोशल मीडिया पर लड़ते देख काफी हास्यास्पद लगा। लेकिन अंत में, इससे दो चीजें स्पष्ट होने की संभावना है – राजमाता की बात मानना और यह कि राहुल गांधी को कांग्रेस के लिए अपरिहार्य घोषित करना।