पानी मत फेंको पानी का अपव्यय होता है, पटाखे मत जलाओ हवा दूषित होती है, ऐसे ज्ञान देने वाले कई महानुभाव देश में हर दिशा में दिवाली और होली पर मिल ही जाते हैं। वहीं अब ऐसी रिपोर्ट सामने आई है जो ऐसे तत्वों के गाल पर एक करारा तमाचा है। दिवाली क्या हिन्दू पर्वों पर अक्सर ज्ञान बहादुरों की एक मण्डली उसके तौर तरीकों पर प्रश्न चिह्न लगा देते हैं। इसी में सबसे बड़ा प्रश्न चिह्न होता है कि पटाखे क्यों जलाने जब उससे प्रदूषण का स्तर चरम पर पहुंच जाता है। इस आधार को दरकिनार करने के लिए एक अध्ययन ही काफी है जो हाल ही में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) दिल्ली ने किया है। इस अध्ययन ने दिल्ली में हर वर्ष बढ़ती स्मॉग के पीछे का कारण स्पष्ट रूप से यह बताता है कि इसका कारण पटाखे है ही नहीं, स्वयं IIT दिल्ली ने इस बात की की पुष्टि कर दी है।
पराली या पटाखा, कौन है जिम्मेदारा
दरअसल, दिल्ली में दिवाली का त्यौहार अक्सर जब फसल कटाई का समय आता है तब का मौसम एक साथ मेल खाता है और इस प्रकार पराली जलाने का नियोजन भी उसी समय होता है। निस्संदेह उस पराली के जलाने से स्मॉग का उदय होता है और वो एकमात्र कारण प्रतीत होता है। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) दिल्ली ने एक नए अध्ययन में कहा कि दोनों गतिविधियां (पटाखे और पराली जलना) परिवेशी वायु गुणवत्ता को गंभीर रूप से प्रभावित करती हैं। ये संयोग की घटनाएं अक्सर राजधानी में परिवेशी वायु प्रदूषण पर दोनों में से किसी एक के प्रभाव का पता लगाना मुश्किल बना देती हैं।
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इसी क्रम में आईआईटी दिल्ली के शोधकर्ताओं के नेतृत्व में ‘दिवाली आतिशबाजी के पहले, उसके दौरान और उसके बाद के मानकों का परिक्षण किया। वहीं शोधकर्ताओं ने स्टडी के दौरान पाया कि दिवाली के दौरान दिल्ली में पीएम 2.5 लेवल में मेटल कंटेंट 11 सौ फीसदी बढ़ गया और इसमें 95 प्रतिशत मेटल आतिशबाजी की वजह से हुआ था। इस अध्ययन के प्रमुख लेखक चिराग मनचंदा ने कहा, “हालांकि, दिवाली के लगभग 12 घंटों के भीतर पटाखों का प्रभाव कम हो जाता है।”
अध्ययन ने क्या निष्कर्ष निकाला है?
आईआईटी-दिल्ली के शोधकर्ताओं के नेतृत्व में किए गए इसम कि आतिशबाजी के बजाय बायोमास जलने का उत्सर्जन, दिवाली के बाद के दिनों में राष्ट्रीय राजधानी में खराब हवा की गुणवत्ता को बढ़ाता है। इस अध्ययन का शीर्षक ‘रासायनिक विशिष्टता और परिवेश पीएम 2.5 का स्रोत विभाजन’ है। नई दिल्ली में दीवाली आतिशबाजी से पहले, दौरान और बाद में ‘वायुमंडलीय प्रदूषण अनुसंधान’ पत्रिका में प्रकाशित हुआ था। इसे आंशिक रूप से आईआईटी-दिल्ली और शिक्षा मंत्रालय द्वारा वित्त पोषित किया गया था, और आईआईटी-दिल्ली के बीच सहयोग के एक भाग के रूप में आयोजित किया गया था।
IIT दिल्ली का एक आधिकारिक बयान में कहा गया कि, “शोधकर्ताओं ने पाया है कि दिवाली के बाद के दिनों में बायोमास जलने से संबंधित उत्सर्जन में तेजी से वृद्धि हुई है, जिसमें दीवाली पूर्व एकाग्रता की तुलना में औसत स्तर लगभग 2 के क्रम से बढ़ रहा है। साथ ही, कार्बनिक PM 2.5 से संबंधित स्रोत विभाजन परिणाम दिवाली के बाद के दिनों में प्राथमिक और द्वितीयक दोनों कार्बनिक प्रदूषकों में उल्लेखनीय वृद्धि का संकेत देते हैं, जो प्राथमिक कार्बनिक उत्सर्जन में वृद्धि में बायोमास-बर्निंग संबंधित उत्सर्जन की भूमिका का सुझाव देते हैं।
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यह सर्वविदित है कि, इस रिपोर्ट को न मानने वाले अब भी समाज में विद्यमान हैं और वो आगे भी दिवाली और अन्य हिन्दू पर्वों को कोसेंगे कि यह कैसा त्यौहार है जो प्रदूषण बढ़ाकर मनाया जाता है। तथ्य न होने पर चिंघाड़ने वालों को तथ्य मिलने के बाद भी वही राग अलापना पसंद है क्योंकि वो आदतन है, पहले वैज्ञानिकी आधार नहीं है उसको लेकर ढोल पीटना और जब आधार आ जाए तो भी रोना जारी रखना यह तो इनकी बड़ी पुरानी बीमारी और विशेषता है। निस्संदेह, IIT दिल्ली के द्वारा की गयी इस पुष्टि के बाद कि दिल्ली के वार्षिक स्मॉग का कारण पटाखे नहीं है उससे सभी के पेट में मरोड़े तो उठ रही होंगी कि “एक एजेंडा तो हमेशा के लिए छद्म रूप से विलुप्त हो गया, अब क्या करा जाए।”