जब इतिहास को तोड़ने मरोड़ने की बात आती है तो वैश्विक इतिहासकारों में ऑड्रे ट्रुशके का नाम काफी ज़ोर शोर से सामने आता है। औरंगज़ेब का दिन रात जाप करने वाली इस फर्जी इतिहासकार को इसी कारण से सोशल मीडिया पर लोग ग्लोबल डिस्टोरीयन [Global Dystorian ] की उपाधि भी दिए हैं यानी वह व्यक्ति, वैश्विक तौर पर इतिहास को तोड़ मरोड़ कर पेश करे और इसे अपना दैनिक व्यवसाय बना ले।
लेकिन इसी दैनिक व्यवसाय का अनुसरण करने वाली ऑड्रे ट्रुशके को ज़ोर का झटका तब लगा जब दिल्ली हाईकोर्ट ने ट्विटर को इनके 5 ट्वीट्स हटाने का हाल ही में आदेश सुनाया। वर्तमान में एक आदेश में दिल्ली हाईकोर्ट ने इनके 5 ट्वीट्स को द्वेष से परिपूर्ण यानी malicious मानते हुए ट्विटर को इन्हें तत्काल प्रभाव से हटाने का आदेश दिया है।
विक्रम संपत पर लगाए थे आरोप
परंतु वे 5 ट्वीट थे क्या? उनमें ऐसा भी क्या था जिसके कारण लोग ऑड्रे ट्रुशके पर इतना भड़के हुए हैं? असल में इस फर्जी इतिहासकार ने एक वास्तविक इतिहासकार विक्रम संपत पर plagiarism यानी साहित्यिक चोरी का आरोप लगाते हुए एक के बाद 5 ट्वीट किए थे। औड्रे का आरोप था कि विक्रम संपत ने उनके शोध से अपने विश्व प्रसिद्ध पुस्तक शृंखला ‘सावरकर’ के लिए काफी संसाधन चुराए थे, जिसके लिए उन्होंने रॉयल हिस्टॉरिकल सोसाइटी लंदन को भी पत्र लिखा था, जब विक्रम संपत उसके मानद सदस्य बने थे।
लेकिन ऑड्रे ट्रुशके शायद भूल गई थीं कि उन्होंने किससे पंगा मोल लिया है। विनायक दामोदर सावरकर जैसे ओजस्वी क्रांतिकारी पर अकाट्य शोध करने वाले प्रख्यात लेखक एवं इतिहासकार विक्रम संपत ऐसी ओछी हरकत को हल्के में कहां लेने वाले थे। उन्होंने तुरंत ऑड्रे ट्रुशके के विरुद्ध मानहानि का मुकदमा फरवरी में ही दर्ज कर दिया, जिसके अंतर्गत कोर्ट ने ऑड्रे ट्रुशके पर आपत्तिजनक कॉन्टेन्ट प्रकाशित करवाने पर पहले भी रोक लगवाई, और ट्विटर से पूर्व में भी ट्वीट हटवाये।
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संपत ने वामपंथियों को सुनायी है खरी खरी
इसके अतिरिक्त विक्रम संपत उन चंद इतिहासकारों में सम्मिलित हैं, जिन्होंने वास्तविक इतिहास के साथ छेड़छाड़ पर वामपंथियों को कहीं का नहीं छोड़ा। वामपंथियों के पोस्टर बॉय कहे जाने वाले पत्रकार राजदीप सरदेसाई की धुलाई करते हुए विक्रम संपत ने उन्हीं के मंच से एक बार इतिहास के साथ छेड़छाड़ पर बताया, “कोई भी व्यक्ति जब पहली बार भारतीय इतिहास के बारे में पढ़ता है तो विद्यालय में पढ़ता है। अपने कल के बारे में शर्मिंदा होना, हमेशा अपने भूतकाल पर लज्जित होना, ये हमारे ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में अभिशाप है, क्योंकि ब्रिटिश राज में भी राष्ट्रवादी इतिहासकारों के लिए जगह थी – जैसे जदुनाथ सरकार, राधा कुमुद मुखर्जी, रमेश चंद्र मजूमदार, वीके रजवाड़े, भंडारकर, सीवी वैद्य इत्यादि। परंतु स्वतंत्रता के पश्चात कांग्रेस पार्टी ने इतिहासकारों में वामपंथियों के अलावा किसी और के लिए जगह ही नहीं छोड़ी” ।
लेकिन इतनी सी बेइज्जती से शायद राजदीप का मन नहीं भरा था। विरासत, इतिहास, अभिमान के टॉपिक पर बात करते वक्त जब राजदीप सरदेसाई ने सवाल किया कि आखिर सावरकर कौन थे? फ्रीडम फाइटर? हिंदुवादी नेता? या वह सिर्फ मुस्लिम विरोधी नेता थे? उनको क्या माना जाए? तब सावरकर पर किताबें लिख चुके इतिहासकार विक्रम संपत ने कहा कि ‘मेरी नजर में तो सावरकर इन सब का मिश्रण थे।’ अपने एक जवाब से संपत ने राजदीप की बोलती अवश्य बंद कर दी. ऐसे में ऑड्रे ट्रुशके को दिल्ली हाईकोर्ट ने न केवल दर्पण दिखाया है, अपितु स्पष्ट शब्दों में बताया है – कृपया अपना झूठ अपने दोस्तों तक ही सीमित रखें।