देश में संविधान का झूठा दिखावा करके धार्मिक ध्रुवीकरण करने में माहिर असदुद्दीन ओवैसी ने सुप्रीम कोर्ट को लेकर जहरीला भाषण दिया है। दरअसल (AIMIM) के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट के ज्ञानवापी मस्जिद सर्वेक्षण के फैसले पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुये कहा कि वह और उनका पूरा समुदाय एक और मस्जिद को नहीं खोना चाहता, जैसा कि बाबरी मस्जिद मामले में हुआ था। बाबरी मस्जिद को भी ऐसे ही छीना गया। रात के अंधेरे में मूर्तियां रख दी गईं। राजीव गांधी ने ताला खुलवा दिया। फिर पूजा शुरू हो गई। इसके बाद मस्जिद को शहीद कर दिया। ओवैसी बोले, ‘मैं मुगलों का पैरोकार नहीं हूं मैं संविधान का पैरोकार हूं। और अगर किसी ने आक्रमण किया था कहां किया था बताइए। यही झूठ बाबरी मस्जिद के मामले में फैलाया गया। जबकि सुप्रीम कोर्ट ने इसे नहीं माना।’
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पूजा स्थल अधिनियम के अनुसार
ओवैसी देश के सर्वोच्च न्यालय पर ओछी टिपण्णी करते हुए सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पूजा स्थल अधिनियम 1991 का “घोर उल्लंघन” करार दिया और उन्होंने कहा की “अदालत का आदेश पूजा स्थल अधिनियम 1991 का घोर उल्लंघन है।” कोई भी व्यक्ति किसी भी धार्मिक संप्रदाय या उसके किसी भी वर्ग के पूजा स्थल को एक ही धार्मिक संप्रदाय के एक अलग वर्ग या एक अलग धार्मिक संप्रदाय या किसी भी पूजा के स्थान में परिवर्तित नहीं करेगा।
योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली उत्तर प्रदेश सरकार को लेकर ओवैसी ने कहा कि योगी सरकार को इन लोगों के खिलाफ तुरंत प्राथमिकी दर्ज करनी चाहिए क्योंकि 1991 का अधिनियम स्पष्ट रूप से कहता है कि कोई भी व्यक्ति जो 15 अगस्त, 1947 को खड़े धार्मिक स्थलों की प्रकृति को बदलने की कोशिश करता है। अगर अदालतें दोषी पाती हैं तो उन्हें 3 साल की कैद हो सकती हैं। एआईएमआईएम नेता की टिप्पणी वाराणसी की एक अदालत द्वारा गुरुवार दोपहर मामले की सुनवाई के दौरान आई थी जिसमें कहा गया था कि काशी विश्वनाथ मंदिर के बगल में स्थित ज्ञानवापी मस्जिद के अंदर सर्वेक्षण जारी रहेगा और रिपोर्ट 17 मई तक प्रस्तुत करने की आवश्यकता है।
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वाराणसी कोर्ट का रूख साफ
वाराणसी कोर्ट ने कोर्ट कमिश्नर अजय मिश्रा को हटाने से इनकार कर दिया और कहा कि ज्ञानवापी मस्जिद का वीडियो निरीक्षण जारी रहेगा और मंगलवार (17 मई) तक पूरा हो जाना चाहिए। वाराणसी के काशी विश्वनाथ मंदिर परिसर और ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में स्थित श्रृंगार गौरी समेत कई देवी-देवताओं के सर्वेक्षण को लेकर विरोध प्रदर्शन हो चुका है। वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद में अदालत द्वारा नियुक्त आयुक्त के सर्वेक्षण के बाद, अंजुमन इंतेजामिया मस्जिद समिति ने शनिवार को एक आवेदन दायर कर मामले पर कथित पक्षपात के कारण कार्यालय को हटाने की मांग की।
अब यह समझने वाली बात है की खुद को कानून की दुहाई देने वाले ओवैसी आज कोर्ट के फैसले पर प्रश्नचिन्ह लगा रहे हैं। यह और भी शर्मिंदगी की बात है की खुद को बैरिस्टर कहने वाले ओवैसी आज खुद को एक नेता साबित करके रह गए। एक कानून का जानकार होने के बाद भी धार्मिक विचारधारा से आगे नहीं बढ़ पाना ओवैसी की कमजोरी और उनका धर्मांध होना दिखाता है। ओवैसी आज सिर्फ न्यायलय को ही चुनौती नहीं दे रहे है बल्कि वो देश के संविधान के मूल्यों का भी तिरस्कार कर रहे हैं। ओवैसी को देश के कानून को धर्म के चश्मे से हट कर देखना चाहिए अन्यथा अपने नाम के आगे बैरिस्टर हटा देना चाहिए क्योंकि कोर्ट पर अमर्यादित टिपण्णी करने से अच्छा उनका फुल टाइम नेता होना ही सही है।
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