मानव जाति के इतिहास में सबसे मूर्ख चोर हैं ‘ज्ञानवापी चोर’

मूर्खों! मंदिर तो चुरा लिया, साक्ष्य तो छिपा देते

Gyanvapi Masjid

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नकल के लिए अकल की आवश्यकता पड़ती है पर यहां तो नकल करने से पूर्व कब्ज़ा करने के लिए भी शांतिदूत अकल का प्रयोग नहीं करते हैं। ज्ञानवापी मस्जिद के संदर्भ में यह कथन एकदम सटीक बैठता है। जिस हिसाब से पूरे जिहादी तत्वों ने षड्यंत्र रचकर ज्ञानवापी मंदिर को ज्ञानवापी मस्जिद बना दिया उसके चिट्ठे अब खुलकर बाहर आ रहे हैं।

इस लेख में हम जानेंगे कि कैसे ज्ञानवापी मंदिर को ज्ञानवापी मस्जिद बना देने की घटना ने एक तथ्य को चरितार्थ कर दिया है कि ये इस्लामवादी दुनिया के सबसे मुर्ख चोर हैं। जिन्होंने काशी में एक भव्य हिंदू मंदिर के ऊपर एक नाजायज मस्जिद तो बना दिया पर अपने कर्मों को छुपाने का लेशमात्र प्रयास नहीं किया।

विधवा विलाप करने में भी शर्म नहीं करते

यह सर्वविदित है कि अयोध्या विवाद के निस्तारण के बाद से ही यह जिहादी समूह बिलबिला रहा है और आलम तो यह है कि विधवा विलाप करने में भी अब वो शर्म महसूस नहीं कर रहे हैं। अब जब ज्ञानवापी के भीतर का सच सबके सामने आने लगा है तो वे जिहादी मर रही बकरियों की तरह रो रहे हैं। वर्तमान में इस्लामवादियों के पास कोई बचाव नहीं है। मंदिर के ऊपर मस्जिद बनने के सभी संकेत आंखों से साफ दिखाई देते हैं और इस्लामवादियों की यह मूर्खता और सुस्ती ही न्यायालयों में हिंदुओं के लिए मुकदमा जीतने का कारण बनेगी।

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यह सर्वविदित है कि क्या हुसैन शाह शर्क, क्या औरगजेब, क्या सिकंदर लोदी,  जहां इन सभी के शासन के दौरान काशी विश्वनाथ मंदिर को ध्वस्त किया गया तो वहीं अंतिम हमला मुगल तानाशाह औरंगजेब ने किया था। इसके बाद औरंगजेब ने उस स्थान पर ज्ञानवापी मस्जिद का निर्माण करवाया। इसके साथ ही पूर्ववर्ती मंदिर के अवशेष अभी भी नींव, स्तंभों और मस्जिद के पिछले हिस्से में देखे जा सकते हैं। जिसको दरकिनार करना अब न अधिवक्ताओं के हाथ में है, न ही सर्वेक्षण करने वाले अधिकारियों के हाथ में है और न ही न्यायलय इस बात को हलके में आंक सकता है।

रोचक बात यह है कि मुगल तानाशाह इतने कुम्भकरण थे कि सुस्ती में मस्जिद का नाम तक नहीं बदला। “ज्ञानवापी” संस्कृत शब्द का भाग है जिसका अर्थ है ‘ज्ञान का कुआं’। वापी भी व्यापी से निकला है इसे भी समझना कोई राकेट साइंस तो है नहीं। मुगलों की “तेजस्वी” सोच के अनुसार एक या दो पीढ़ियों के भीतर, कोई भी हिंदू या काफिर भारत में नहीं रह पाता और इसलिए मंदिर को वास्तव में मस्जिद में उन्होंने परिवर्तित करने के लिए कोई बड़े निर्णय नहीं लिए और ज्ञानवापी को ज्ञानवापी ही बना रहने दिया।

और यही कारण है कि ज्ञानवापी मस्जिद हमेशा से ही अपने मंदिर वाले अस्तित्व में ही रही है। संरचना और उसके आस-पास किए गए हालिया सर्वेक्षण यह साबित करते हैं। ज्ञानवापी मस्जिद में हाल ही में संपन्न वीडियोग्राफी सर्वेक्षण की दो रिपोर्टों ने तथाकथित “ज्ञानवापी मस्जिद” की “मनमोहिनी” विशेषताओं को उजागर किया है। रिपोर्टों में कहा गया है कि “मस्जिद” की बैरिकेडिंग के बाहर उत्तरी और पश्चिमी दीवारों के कोने पर पुराने मंदिरों का मलबा मिला और तहखाने में खंभों पर घंटियां, कलश, फूल और त्रिशूल जैसे हिंदू रूप दिखाई दे रहे थे। .

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हिंदू देवी-देवताओं की संरचनाएं मिलीं

अजय कुमार मिश्रा की रिपोर्ट के अनुसार, मस्जिद और उसके आसपास हिंदू देवी-देवताओं की संरचनाएं मिलीं। एक शिलापट्ट (पट्टिका) में शेषनाग की कृति बनी हुई थी जिसकी वीडियोग्राफी की गई थी। रिपोर्ट के अनुसार, एक शिलापट्ट पर चार मूर्तियों की आकृति दिखाई दे रही थी और वह ‘सिंदूरी’ रंग की थी। यही नहीं दीवारों पर मूर्तियों के बगल में दीपक जलाने का स्थान भी मिला है।

जब ज्ञानवापी मंदिर पर हमला शुरू हुआ तो संरचनाओं की सतही विशेषताओं को बदल दिया गया। विशेषकर बाहर से कुछ अटपटा न लगे इसलिए पहला नंबर गुंबद का आया लेकिन मंदिर की हिंदू विशेषताएं, जिसके ऊपर मस्जिद बनाई गई थी उन्हें कभी नहीं बदली गई। वास्तव में, उन्हें छुपाने की भी कोई कोशिश नहीं की गई। यही कारण है कि ऐसे जिहादियों की बेवकूफी की कोई सीमा न है और न थी और न ही रहेगी। इस ट्वीट्स पर भी आपको ध्यान देना चाहिए।

 हिंदू संपत्ति पर पूर्ण उदासीनता के साथ बैठे हैं

यह भी एक तथ्य है कि शिवलिंग उस जगह में सदा से है जहां यह शांतिदूत वजू करते आए हैं। यह दर्शाता है कि कैसे इस्लामवादी, पिछली तीन शताब्दियों से एक अंतर्निहित हिंदू संपत्ति पर पूर्ण उदासीनता के साथ बैठे हैं। वे चाहते तो शिवलिंग से छुटकारा पा सकते थे लेकिन उनसे यह भी नहीं हुआ क्योंकि उन्हें लगा कौन ही आएगा अंदर, कौन ही आकर करेगा सर्वेक्षण, अंदर की बात है अंदर ही रह जाएगी। उन्हें क्या पता था अंदर आना क्या, अब तो वीडिओग्राफी भी हो गयी।

तो यह स्पष्ट होता है कि मुगलकालीन जिहादी उच्च कोटि के मूर्ख हैं जिनके पास दूरदर्शिता के नाम पर कुछ भी नहीं है। जिस शिवलिंग से उन्हें छुटकारा मिला वह अब इस्लामवादियों के ज्ञानवापी परिसर पर अपना अवैध कब्जा खोने का सबसे बड़ा कारण बन जाएगा।

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जब इस्लामवादियों को पता चला कि भारतीय न्यायालयों में उनकी मस्जिद की प्रामाणिकता पर सवाल उठाया जा रहा है तो उन्होंने एक कवरअप शुरू करने का फैसला किया। इन सभी ने जड़ बुद्धि के साथ दिमाग चलाया और फिर संरचना की दीवारों को चूने से पलस्तर कर दिया।

निश्चित रूप से, इस्लामवादियों ने ऐतिहासिक तथ्यों को छिपाने की कोशिश की और साथ ही उस संरचना को अधिक रूप से नुकसान पहुंचाया। परिणामस्वरूप इससे उन्हें फिर से न्यायालयों में हार का सामना करना पड़ेगा। सारगर्भित बात यही है कि झूठ बोलो, बार बार झूठ बोलो की तर्ज़ पर चोरी करो, करते चलो के सिद्धांत पर जिहादियों ने अबकी बार मंदिर को ही चुरा लिया। इस चोरी में वो औंधे मुंह गिरे क्योंकि कथित मस्जिद के भीतर मंदिर की संरचनाएं नग्न आंखों से भी देखी जा सकती है। आ बैल मुझे मार की हालत लिए जिहादी पक्ष अब न्यायालय में उसे फ़व्वारा कह रहा है जो उनकी तुच्छ और नीच सोच का पर्याय है और कुछ नहीं।

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