ब्रिटिश शासन के दौरान हुए सामाजिक शोषण के बाद जब देश 1947 में आज़ाद हुआ तब देश दो टुकड़ों में विभाजित हो गया था। भारत से जो दूसरा देश टूट कर अलग हुआ, वो था आतंक परस्त पाकिस्तान।आज़ादी के बाद जब भारत के भीतर संवैधानिक ढांचे का निर्माण हुआ तो उस समय के नेतृत्वकर्ता या कहें सत्ताधीन कांग्रेस ने अपने हिसाब से इतिहास को गढ़ने की कोशिश की, ऐसा हम नहीं कह रहे हैं बल्कि कई राजनीतिक पंडितों ने समय-समय पर इस बात का उल्लेख किया है। देश की स्वतंत्रता में लाखों लोगों का बलिदान था पर उसके बाद भी सरकार चलाने वाले लोग देश को यह बताने की कोशिश करते रहे कि नेहरू और उनके समकक्ष ही देश की आज़ादी के सूत्रधार रहे हैं। अभी तक कुछ लोग भ्रम में ही जी रहे हैं कि आखिर देश के विभाजन का मुख्य कारण क्या था? इसी बीच विभाजन प्रकरण को लेकर अब हरियाणा सरकार ने कांग्रेस को विभाजन नीति का दोषी ठहराते हुए उसे जम कर कोसा है।
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हरियाणा सरकार का बेहतरीन कदम
दरअसल, हरियाणा बोर्ड ऑफ स्कूल एजुकेशन (HBSE) ने कक्षा 9 की इतिहास की पाठ्यपुस्तक में 1947 में भारत के विभाजन के कारणों में से एक के रूप में कांग्रेस की “तुष्टीकरण” नीति का उल्लेख किया है। बंटवारे से पहले की घटनाओं का जिक्र करते हुए किताब के एक हिस्से में कहा गया है कि मुस्लिम लीग ने कांग्रेस के रास्ते में रुकावटें पैदा करने की नीति अपनाई। दूसरी ओर, कांग्रेस ब्रिटिश सरकार के खिलाफ मुस्लिम लीग का समर्थन चाहती थी और 1916 का लखनऊ समझौता, 1919 का खिलाफत आंदोलन और गांधी-जिन्ना वार्ता कांग्रेस के ‘तुष्टीकरण’ के उदाहरण थे।
पाठ्यपुस्तक में यह भी कहा गया है कि मोहम्मद अली जिन्ना से बार-बार अनुरोध करने के परिणामस्वरूप कांग्रेस ने उन्हें अनुचित महत्व दिया और फलस्वरूप देश के हालात खराब होने लगे। सांप्रदायिक दंगे भड़क रहे थे, जिसके पीछे मुस्लिम लीग का हाथ था। कांग्रेस ने तब महसूस किया कि शांति और व्यवस्था बनाए रखने के लिए, देश के विभाजन को स्वीकार करना आवश्यक है। इस पाठ्यपुस्तक में यह भी कहा गया है कि देश के विभाजन के पीछे अन्य प्रमुख कारणों में कांग्रेस नेतृत्व की थकान और सत्ता की लालच थी और कांग्रेस के कुछ नेता आजादी के तुरंत बाद सत्ता का स्वाद चखना चाहते थे। किताब के एक खंड में यह भी कहा गया है कि अगर दोनों देशों के बीच शांति सुनिश्चित करने के लिए बंटवारा जरूरी था तो आज तक शांति स्थापित क्यों नहीं हो पाई।
देश के असली इतिहास से परिचित होंगे छात्र
वहीं, HBSE के चेयरपर्सन प्रो जगबीर सिंह ने कहा कि किताब इतिहास की घटनाओं को बताती है जैसे वे सामने आईं। उन्होंने कहा कि इस पुस्तक की विख्यात इतिहासकारों ने समीक्षा की है। सिंह ने आगे कहा कि किताब को मौजूदा शैक्षणिक सत्र से पढ़ाया जाएगा। आरएसएस के संस्थापक डॉ केशव बलिराम हेडगेवार और अभिनव भारत के संस्थापक विनायक दामोदर सावरकर को किताब में शामिल किया गया है। सावरकर के अंडमान जेल में रहने का विशेष उल्लेख है, लेकिन उनकी दया याचिकाओं का कोई जिक्र नहीं है। हरियाणा सरकार ने जिस तरह से यह ऐतिहासिक कदम उठाया है उससे अन्य राज्यों के लोगों को भी सीख लेनी चाहिए कि हमारे इतिहास में जो हमें पढ़ाया गया, वो बनावटी था उसे सत्ता के लोभियों द्वारा गढ़ा गया था और उसमे अपने लोगों को कमजोर जबकि हमेशा से दुश्मनों, आक्रांताओं को बेहतर दिखाया गया था। हालांकि, हरियाणा शिक्षा बोर्ड द्वारा उठाया गया यह कदम सराहनीय है। इससे छात्रों को दूसरे पहलु को भी जानने को मौका मिलेगा जिसे आज़ादी के समय से पिछली सरकारों ने छिपा रखा था।
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