अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) भीख मांग रहा है। जी हां, आपने सही सुना, IMF भारत के सामने भीख मांग रहा है। वैसे ये भी बहुत रोचक बात है कि ये वही IMF है जिसने मनमोहन सिंह के राज में भारत की आर्थिक संप्रभुता को गिरवी रख लिया था। पर, ऐसा हो क्यों रहा है, आज के संस्करण में इसी की विवेचना करेंगे। ऐसा क्या हुआ कि IMF भारत के आगे करबद्ध खड़ा है? इस लेख में हम जानेंगे कि आखिर IMF क्यों दुनिया का पेट भरने के लिए भारत से भीख मांग रहा है।
पूरी पश्चिमी दुनिया भारत की ओर मुड़ रही है
यह वास्तव में एक महत्वपूर्ण अवसर है कि आईएमएफ विश्व व्यापार संगठन और पूरी पश्चिमी दुनिया भारत की ओर मुड़ रही है। अब ना सिर्फ वो भारत को विश्वगुरु मानने लगे हैं बल्कि गेंहू अनुउपलब्धता के वैश्विक संकट से उन्हें बाहर निकालने की गुहार भी लगा रहे है। आईएमएफ प्रमुख घुटनों पर हैं और अब भारत से गेहूं निर्यात को फिर से शुरू करने के लिए भीख मांग रहें है। हालांकि, नई दिल्ली इस बात पर अडिग है कि वर्तमान प्रशासन के लिए बड़े देशों से विश्वगुरु के प्रमाण की तुलना में अपने देश की भलाई और जरूरत अधिक महत्वपूर्ण है।
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देश में खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए भारत द्वारा गेहूं के निर्यात पर प्रतिबंध लगाने के बाद, पश्चिमी दुनिया लगातार रो रही है। अब अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) भारत के सामने घुटने टेककर भीख मांग रहा है। दावोस में विश्व आर्थिक मंच के मौके पर, आईएमएफ प्रमुख क्रिस्टालिना जॉर्जीवा ने मंगलवार को भारत से गेहूं के निर्यात पर प्रतिबंध पर पुनर्विचार करने की गुहार लगाई।
क्रिस्टालिना ने कहा- “मैं इस तथ्य के लिए सराहना करती हूं कि भारत को लगभग 1.35 बिलियन लोगों को खिलाने की जरूरत है। और देश में खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए भारत द्वारा गेहूं के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया गया है लेकिन, मैं भारत से जल्द से जल्द इस पर पुनर्विचार करने की भीख मांगती हूं. हम इस वैश्विक संकट से निपटने के लिए कम सुसज्ज है।”
सहानुभूति कार्ड खेलते हुए आईएमएफ प्रमुख ने यह भी कहा कि- “गेहूं उन क्षेत्रों में से एक है जहां यूक्रेन और रूस युद्ध से नाटकीय रूप से प्रभावित हुए हैं, इसलिए इस संकट की समाप्ति इस बात पर निर्भर करता है कि भारत कितना निर्यात कर सकता है और उसके इस प्रतिबन्ध का महत्वपूर्ण प्रभाव हो सकता है, खासकर यदि निर्यात मिस्र या लेबनान जैसे सबसे गंभीर रूप से प्रभावित देशों को है, जहां हम न केवल भूख का जोखिम देखते हैं बल्कि सामाजिक अशांति और वैश्विक स्थिरता पर प्रभाव का जोखिम देखते हैं।”
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पीयूष गोयल ने गलत प्रचार का भंडाफोड़ किया
हालांकि, दावोस में एक ही मंच पर भारत के वाणिज्य और उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने प्रचार का भंडाफोड़ करते हुए टिप्पणी की कि भारत का निर्यात वैश्विक आपूर्ति के 1 प्रतिशत से कम है और प्रतिबंध वैश्विक व्यापार को प्रभावित नहीं करता है।
गोयल ने कहा, “भारत के गेहूं का निर्यात विश्व व्यापार के 1% से भी कम है और हमारे निर्यात विनियमन को वैश्विक बाजारों को प्रभावित नहीं करना चाहिए। हम कमजोर देशों और पड़ोसियों को निर्यात की अनुमति देना जारी रखते हैं।”
आईएमएफ द्वारा किए गए दावों के विपरीत भारत ने वैश्विक संकट के समय काफी मदद की है। नई दिल्ली ने इस साल मार्च और अप्रैल में क्रमशः 177 मिलियन डॉलर और 473 मिलियन डॉलर मूल्य के गेहूं का निर्यात किया है, अत्यधिक गर्मी के परिणामस्वरुप कम गेहूं उत्पादन की चुनौतियों का सामना करने के बावजूद।
इस बीच, अभाव की इस स्थिति में भी, आईएमएफ, विश्व व्यापार संगठन शक्तिशाली देशों के पूर्व उपनिवेशों को धमकाना बंद करने के लिए तैयार नहीं हैं। अब तक, विकासशील देशों को उनकी पूर्ण क्षमता प्राप्त करने से रोकने के उद्देश्य से बनाये गए विश्व व्यापार संगठन के मानदंडों में ढील देने का कोई इरादा नहीं दिखाया है।
वर्तमान में, ऐसे कई मुद्दे हैं जिन्हें विश्व व्यापार संगठन को भारत के साथ सुलझाने की आवश्यकता है। उनमें से प्राथमिक मुद्दा कृषि सब्सिडी है। वर्तमान विश्व व्यापार संगठन के मानदंडों के अनुसार, भारत उत्पादित खाद्य के कुल मौद्रिक मूल्य के 10% से अधिक कृषि सब्सिडी प्रदान नहीं कर सकता है। इसलिए, अगर भारत 10 अरब डॉलर के खाद्य उत्पादन करता है, तो वह 1 अरब डॉलर से अधिक की सब्सिडी नहीं दे सकता है।
विश्व व्यापार संगठन का कहना है कि यह देशों को अनुचित लाभ प्रदान करता है, व्यापार को विकृत करता है। हालांकि, इस तरह का तर्क केवल पैसे छापने के लिए ही सही है। कृषि सब्सिडी को प्रतिबंधित करना केवल सदस्य देशों को प्रभावी फसल उत्पादन से रोकता है। जिन देशों ने इस सीमा का पालन करने का फैसला किया है, वे अपने स्वदेशी किसानों के साथ कभी न्याय नहीं कर सकते।
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पीएम मोदी ने की थी टिप्पणी
पिछले महीने, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक सार्वजनिक संबोधन में टिप्पणी की थी कि भारत दुनिया को खिलाने के लिए तैयार है, अगर विश्व व्यापार संगठन इसकी अनुमति देता है।
पीएम ने कहा- ‘एक नया संकट सामने आया है जहां खाद्य सुरक्षा को खतरा पैदा हो गया है। कल (सोमवार), मैंने अमेरिकी राष्ट्रपति के साथ चर्चा की और मैंने सुझाव दिया कि अगर विश्व व्यापार संगठन अनुमति देता है, तो भारत कल जैसे ही दुनिया को खाद्यान्न की आपूर्ति कर सकता है। हमारे पास अपने लोगों के लिए पहले से ही पर्याप्त भोजन है लेकिन हमारे किसानों ने दुनिया को खिलाने की व्यवस्था की है। लेकिन हमें दुनिया के नियमों से जीना है इसलिए मुझे नहीं पता की क्या विश्व व्यापार संगठन अनुमति देगा?
पश्चिमी दुनिया भारत से गेहूं जारी करने की मांग कर रही है, लेकिन साथ ही, वह अनुचित नियमों को हटाने के लिए तैयार भी नहीं है। भारत के सामने भीख मांगने के बजाय, आईएमएफ को डब्ल्यूटीओ को गुत्थियों को ठीक करने के लिए राजी करने पर विचार करना चाहिए और भारत को अपने किसानों का तहे दिल से समर्थन करने देना चाहिए। तभी मोदी सरकार गेहूं के लिए तरसती दुनिया के लिए अपना भण्डार खोलेगा।