अपने देश में एक कहावत बहुत प्रसिद्द है, जैसी करनी वैसी भरनी। पूर्व भारतीय क्रिकेटर नवजोत सिंह सिद्धू आज अपनी की गई कर्मकांड पर यही सोंच रहे होंगे। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को नवजोत सिंह सिद्धू के खिलाफ पीड़ित परिवार द्वारा दायर तीन दशक पुराने रोड रेज मामले में पुनर्विचार याचिका पर अपना आदेश दिया। जिसके बाद 1988 के रोड रेज मामले में सिद्धू को एक साल कैद की सजा सुनाई गई है। आपको बतादें कि यह आदेश न्यायमूर्ति एएम खानविलकर और न्यायमूर्ति संजय किशन कौल की पीठ ने दिया। इससे पहले कोर्ट ने नवजोत सिंह सिद्धू के खिलाफ रोड रेज मामले में नोटिस का दायरा बढ़ाने की मांग वाली एक अर्जी पर फैसला सुरक्षित रख लिया था।
ज्ञात हो कि शीर्ष अदालत ने 15 मई, 2018 को पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के उस आदेश को रद्द कर दिया था। जिसमें उन्हें मामले में तीन साल की जेल की सजा सुनाई गई थी, लेकिन उन्हें एक वरिष्ठ नागरिक को चोट पहुंचाने का दोषी ठहराया गया था। सिद्धू को पीड़ित को “स्वेच्छा से नुकसान पहुंचाने” का दोषी ठहराते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने 1,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया। बाद में सितंबर 2018 में, अदालत मृतक के परिवार के सदस्यों द्वारा दायर एक समीक्षा याचिका की जांच करने के लिए सहमत हुई और उस पर सिद्धू को नोटिस जारी किया।
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इस मामले में हुई कारवाई
27 दिसंबर, 1988 को नवजोत सिंह सिद्धू ने कथित तौर पर गुरनाम सिंह नाम के व्यक्ति के सिर पर वार किया, जिससे उसकी मौत हो गई। पीड़ित के परिवार ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष एक समीक्षा याचिका दायर कर सिद्धू को बरी करने के अपने पिछले आदेश में संशोधन की मांग की थी। सिद्धू पर पीठ ने फैसला सुनाते हुए कहा, हमें लगता है कि रिकॉर्ड के आधार पर एक त्रुटि स्पष्ट है इसलिए, हमने सजा के मुद्दे पर समीक्षा आवेदन की अनुमति दी है। लगाए गए जुर्माने के अलावा, हम एक साल की अवधि के लिए कारावास की सजा देना उचित समझते हैं वहीं जब पत्रकारों ने गुरुवार को फैसले पर उनकी प्रतिक्रिया मांगी, तो नवजोत सिंह सिद्धू ने टिप्पणी करने से इनकार कर दिया। वहीं इस फैसले के बाद मृतक गुरनाम सिंह के परिवार ने कहा कि आखिरकार उन्हें 34 साल बाद न्याय मिला है। “हम भगवान के आभारी हैं। हमें आखिरकार 34 साल बाद न्याय मिला है।”
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विवादों में हमेशा बना रहे
सिद्धू अपने कारनामों के लिए हमेशा से विवादों में रहे हैं। सत्ता के भूखे सिद्धू का उनके सामने एक जबरदस्त करियर और जीवन था, लेकिन अपने आत्मकेंद्रित स्वभाव और संकीर्णतावादी तरीकों के कारण वे हमेशा विवादों से घिरे रहते थे। अपने क्रिकेट जीवन के दौरान भी, उन्होंने अपने बारे में बहुत सोचा और क्रिकेट टीम के साथ नोक-झोंक की। क्रिकेटर के रूप में संन्यास लेने और क्रिकेट कमेंटर होने के कुछ वर्षों के बाद, सिद्धू ने राजनीति में अपनी किस्मत आजमाई और तब तक अच्छा प्रदर्शन किया जब तक कि उनकी अति-महत्वाकांक्षाओं ने उन्हें पागल नहीं कर दिया।
पंजाब के सीएम पद की लालसा में वो अपनी पुरानी पार्टी भाजपा के खिलाफ गए बाद में उन्होंने कांग्रेस ज्वाइन कर लिया। सत्ता की भूख से सिद्धू का असली चेहरा कई बार सामने आया, लेकिन एक मासूम बूढ़े पर अपना गुस्सा उतारने का यह मामला समझ से परे है। लेकिन सिद्धू को यह ज्ञात होना चाहिए था की बुरे कर्म का अंजाम भी बूरा होता है।
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