WTO को अब खाद्य भंडार का स्थायी समाधान निकालना चाहिए, भारत करेगा वकालत

वास्तविकताओं से कब तक भागेगा WTO ?

Source: TFI

जब कोई आपसे मदद मांगता है तो यह मायने नहीं रखता कि आप मदद करने योग्य हैं या नहीं बस उस वक्त मानवता सबसे आगे हो जाती है और किसी ना किसी तरह से हम सामने वाले की मदद करना चाहते हैं। लेकिन विश्व व्यापार संगठन जैसी वैश्विक संस्था से मानवीयता पूरी तरह से गायब है।

रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से विश्व में खाद्य संकट चल रहा है। भारत ने पहले लगातार दुनिया को गेहूं भेजा। बाद में देश की खाद्य सुरक्षा को देखते हुए गेहूं के निर्बाध निर्यात पर रोक लगा दी। भारत ने इसके बाद भी बहुत जरूरतमंद देशों को सप्लाई करना जारी रखा।

इसके बाद भी पश्चिमी देशों ने भारत पर गेहूं के निर्यात के लिए दवाब बनाना शुरु कर दिया। लेकिन भारत दबाव में आने वाला नहीं था। भारत अपनी खाद्य सुरक्षा को देखते हुए अपने फैसले पर अडिग रहा।

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एक तरफ तो भारत अपने निर्णय पर अडिग है वहीं अब दूसरी तरफ भारत 12 जून से जिनेवा में शुरू होने वाली विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) की बैठक में खाद्य सुरक्षा के लिए सार्वजनिक भंडारण के मुद्दे का स्थायी समाधान खोजने की वकालत करेगा।

जानकारी के अनुसार कृषि सब्सिडी और विश्व खाद्य कार्यक्रम समेत विभिन्न मुद्दे 12वें मंत्रिस्तरीय सम्मेलन के एजेंडे में शामिल होंगे। मंत्रिस्तरीय सम्मेलन 164 सदस्यीय विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) का सर्वोच्च निर्णय लेने वाला निकाय है।

इस बैठक के लिए भारतीय दल का नेतृत्व केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल करेंगे। भारत की तरफ से कहा गया है कि सार्वजनिक भंडारण का स्थायी समाधान खोजना हमारी प्रमुख मांग होगी।

वैश्विक व्यापार मानदंडों के तहत विश्व व्यापार संगठन के सदस्य देश के खाद्य सब्सिडी का खर्च वर्ष 1986-88 के संदर्भ मूल्य के आधार पर उत्पादन के मूल्य के 10 प्रतिशत की सीमा से अधिक नहीं होना चाहिए।

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स्थायी समाधान के तहत भारत ने खाद्य सब्सिडी की सीमा की गणना के फार्मूले में संशोधन करने और वर्ष 2013 के बाद लागू किए गए कार्यक्रमों को ‘पीस क्लॉज’ के दायरे में शामिल करने जैसी मांगें की हैं।

WTO की यह बैठक भारत के लिए एक तरह से दशकों में मिलने वाले अवसर की तरह है। वर्तमान में दुनिया को भारत के उत्पादन चाहिए। हालात इतने बुरे हैं कि अगर इस वक्त भारत गेंहू के निर्यात पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दे तो दुनिया के कई देशों में भुखमरी जैसे हालात हो सकते हैं.

इस बुरी स्थिति के बाद भी पश्चिमी देश और उनके नेतृत्व वाले संगठन अपने पूर्व उपनिवेशों को धमकाना बंद करने के लिए तैयार नहीं हैं। दरअसल, विश्व व्यापार संगठन ने विकासशील देशों पर कई तरह के प्रतिबंध लगा रखे हैं, जिससे कि विकासशील देश अपनी पूर्ण क्षमता प्राप्त नहीं कर पाते हैं। ऐसे कठिन वक्त में भी विश्व व्यापार संगठन ने मानदंडों में ढील देने का कोई इरादा नहीं दिखाया है।

वर्तमान में ऐसे कई मुद्दे हैं जिन्हें विश्व व्यापार संगठन को भारत के साथ सुलझाने की आवश्यकता है। उनमें से प्राथमिक मुद्दा कृषि का सब्सिडी है। विश्व व्यापार संगठन के वर्तमान मानदंडों के अनुसार भारत उत्पादित खाद्य के कुल मौद्रिक मूल्य का 10 फीसदी से अधिक कृषि सब्सिडी प्रदान नहीं कर सकता है। ऐसे में अगर भारत 10 अरब डॉलर का खाद्य उत्पादन करता है तो वह 1 अरब डॉलर से अधिक की सब्सिडी नहीं दे सकता है।

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जिन देशों ने इस सीमा का पालन करने का फैसला किया है, वे अपने देश के किसानों के साथ कभी न्याय नहीं कर सकते। इसलिए भारत ने जरूरत पड़ने पर इसका पालन नहीं करने का फैसला किया। वर्तमान में, भारत लगातार इस सीमा का उल्लंघन कर रहा है।

भारत यह WTO के समझौते के ही एक प्रावधान के तहत करता है। हालांकि इसके लिए भारत 164 सदस्यीय WTO फोरम को समय-समय पर खाद्य खरीद, स्टॉकहोल्डिंग, वितरण और सब्सिडी पर अपना डेटा देता है। ऐसे में भारत WTO से सब्सिडी फॉर्मूला में बदलाव करने और इसका कोई एक नियमित हल निकालने का प्रस्ताव रखेगा।

यह इसलिए भी बहुत जरूरी है क्योंकि WTO एक ऐसे काल्पनिक संसार में खोया रहता है, जहां उसके लगता है कि पश्चिमी देश खाद्य श्रृंखला के शीर्ष पर हैं, जबकि वास्तविकता इससे बहुत अलग है।

हालांकि इसमें संगठन की भी गलती नहीं है क्योंकि पश्चिमी देश WTO जैसी वैश्विक संस्थाओं को अंधेरे में रखने के विशेषज्ञ हैं। लेकिन अब समय बदल गया है। अब उन्हें जागना चाहिए और वास्तविकताओं को समझते हुए दुनिया में देख रहे अन्न संकट से उभरने के लिए भारत जैसे देशों के साथ मिलकर काम करना चाहिए।

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