‘चार धाम’ यह शब्द सुनते ही आपके मन में पवित्रता और आध्यात्म का भाव उत्पन्न हो जाता होगा। हिन्दू पुराणों के अनुसार ‘चार धाम यात्रा’ हमारे सारे पापों को धो देती है और “मोक्ष” का द्वार खोलती है। आज हम ‘चार धाम‘ को लेकर इतनी चर्चा इसलिए कर रहे है क्योंकि केदारनाथ में प्लास्टिक कचरे और कूड़े के ढेर की खबर सामने आयी है। इस ढेर ने देवभूमि के वातावरण को दूषित कर दिया है साथ ही उत्तराखंड प्रसाशन को भी इस मामले ने परेशान कर दिया है। समाचार एजेंसी एएनआई की रिपोर्ट के अनुसार, वहां प्लास्टिक सहित सभी प्रकार के कचरे जमा हैं। दरअसल, एएनआई ने पृष्ठभूमि में बर्फ से ढके पहाड़ों के साथ भूमि के बड़े हिस्से में फैले कई टेंटों की एक तस्वीर ट्वीट की। एएनआई ने जो तस्वीर पोस्ट की है उसमें धार्मिक क्षेत्र फेंकी गई प्लास्टिक की वस्तुओं जैसे बैग और बोतलों के साथ-साथ अन्य अपशिष्ट पदार्थों से पूरी तरह से पटा पड़ा है, जो उन्हें एक विशाल डंप का रूप दे रहा है।
अनैतिक कार्य करना कितना उचित?
अब यह प्रश्न उठता है की जो लोग आस्था के लिए चार-धाम के दर्शन करने जाते हैं उनके द्वारा इस तरह का अनैतिक कार्य करना कितना उचित है? एक समय था जब चार धाम यात्रा एक कठिन कार्य हुआ करती थी। लोगों को लंबी और कठिन यात्राएं करनी होती है और इसी ने तीर्थयात्रा को खास बना दिया। लेकिन आज चार धाम की यात्रा कुछ लोग भगवान की भक्ति के लिए नहीं बल्कि घूमने फिरने आते हैं और अनैतिक रूप से कूड़ा फैलाते है। लोगों को यह नहीं भूलना चाहिए कि केदारनाथ कोई पिकनिक स्थल नहीं बल्कि तीर्थस्थल है।
केदारनाथ यात्रा को लेकर चर्चा तब शुरू हो गई जब हाल ही में नोएडा के एक व्लॉगर का वीडियो इंटरनेट पर वायरल हो गया। यह व्लॉगर अपने पालतू कुत्ते को अपने साथ केदारनाथ ले गया। यही नहीं पालतू कुत्ते का नंदी की मूर्ति को अपने पंजे से छूते हुए एक वीडियो इंटरनेट पर वायरल हो रहा है जिसके बाद उत्तराखंड प्रशासन और मंदिर परिसर के लिए इन जैसे लोगों को रोकना एक चुनौती साबित हो रहा है।
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इस बीच TOI ने एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी के हवाले से कहा, “मंदिरों में उमड़ने वाले YouTubers और व्लॉगर्स अक्सर सुरक्षा व्यवस्था में मुश्किलें पैदा करते हैं। वे ट्रैक मार्गों के बीच में रुक जाते हैं और रील्स की शूटिंग शुरू कर देते हैं, जिससे अन्य तीर्थयात्रियों की यात्रा बाधित हो जाती है। उनका स्पष्ट रूप से भक्ति से कोई लेना-देना नहीं है। यह मंदिर संस्था पर निर्भर है कि वह उनके खिलाफ कार्रवाई करे।”
इस मामले को लेकर गढ़वाल केंद्रीय विश्वविद्यालय के भूगोल विभाग के प्रोफेसर एमएस नेगी ने कहा,”जिस तरह से केदारनाथ जैसे संवेदनशील स्थान पर प्लास्टिक कचरा जमा हो गया है वह हमारी पारिस्थितिकी के लिए खतरनाक है। इससे क्षरण होगा जो भूस्खलन का कारण बन सकता है। हमें 2013 की त्रासदी को ध्यान में रखना चाहिए और सावधान रहना चाहिए।”
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आस्था के साथ खिलवाड़
आज कुछ लोगों द्वारा जिस तरह से आस्था के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं उससे हमारे सनातन धर्म को नुकसान पहुंच सकता है। गर्मियों के मौसम में पहाड़ी क्षेत्रों में आनंद उठाने के लिए कुछ लोग श्रद्धालु के भेष में वहां पार्टी का आनंद लेने के लिए जाते हैं जिसके बाद यह लोग पवित्र स्थल और मंदिर की पवित्रता से समझौता करते हैं जो की निंदनीय है।
COVID महामारी के कारण पिछले दो वर्षों से चार धाम यात्रा नहीं हुई थी। लेकिन इस साल, 3 मई को अक्षय तृतीया के दिन यात्रा शुरू हुई, उत्तरकाशी जिले में गंगोत्री और यमुनोत्री मंदिरों के उपासकों के लिए खोले जाने के बाद से यह भयनाक स्थिति हो गई है। कूड़े के ढेर से पटा केदारनाथ को लेकर अब लोगों को जागरूक होना होगा।
देश के धार्मिक स्थल में सिर्फ धार्मिक स्थिति ही नहीं बल्कि पर्यावरण के दृष्टिकोण से भी हमें सोचना होगा की हम अपने पर्यावरण को दूषित ना होने दें। यहां अधिक महत्वपूर्ण मुद्दा तीर्थ स्थल के प्रति अटूट भक्ति है। यह वास्तव में एक तीर्थ को तीर्थ बनाता है। आपको मंदिर को एक पवित्र संस्था के रूप में मानना होगा।