क्या पीड़ा कभी पुरस्कार और पैसे में परिवर्तित हो सकती है। जी हां, बिल्कुल हो सकती है। पुलित्जर पुरस्कारों का वितरण इसका एक मानक उदाहरण है। कहते हैं दुनिया बहुत खूबसूरत है, बस नजर का फर्क है। परंतु, पुलित्जर पुरस्कार के विजेता और इसके प्रदाता बिल्कुल ही उल्टी दिशा में काम करते हैं। हमेशा से ऐसे आरोप लगते रहे हैं कि पुलित्जर पुरस्कार बोर्ड प्रायः ऐसे फोटो को चयनित करता है जो सिर्फ और सिर्फ मानवीय पीड़ा, अशांति, भय, भूख और गहरे संकट को दर्शाते हैं।
पत्रकारिता में पुरस्कारों की भरमार
वैसे भी पत्रकारिता पेशे में अनंत प्रकार के पुरस्कार मिलते है। मीडिया लेखकों, युवा पत्रकारों, साहसी पत्रकारों, अश्वेत पत्रकारों और नवोन्मेषी पत्रकारिता, सही-गलत काम, मानव हित की कहानियां, श्रेष्ठ पत्रकारिता, जनहित पत्रकारिता और कल्याण कार्यसहित सभी के लिए पत्रकारिता के पुरस्कार हैं। इलेक्ट्रॉनिक पत्रकारिता, बच्चों और परिवारों की पत्रकारिता, विकलांगता पत्रकारिता, विज्ञान पत्रकारिता, अंतर्राष्ट्रीय पत्रकारिता, राजनीतिक लेखन, निडर पत्रकारिता, डेटा पत्रकारिता और इसके अलावा अन्य कई तरह के पत्रकारिता पुरस्कार हैं। पर, इन सभी में पुलित्ज़र पुरस्कार अनोखा है।
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पुलित्ज़र पर विवाद
1921 में, सिनक्लेयर लुईस ने जूरी सदस्यों का वोट जीतने के बावजूद फिक्शन के लिए पुलित्जर पुरस्कार प्रतिस्पर्धा में हार गए। उन्हें उनके उपन्यास ‘मेन स्ट्रीट’ के लिए नामांकित किया गया था, जो अमेरिका के छोटे शहर का व्यंग्यपूर्ण चित्रण था। अत्यधिक रूढ़िवादी पुलित्जर पुरस्कार बोर्ड ने जूरी सदस्यों के वोट को उलट दिया और उनके उपन्यास ‘द एज ऑफ इनोसेंस के लिए एडिथ व्हार्टन’ को पुरस्कार प्रदान किया। अपने निर्णय को सही ठहराने के लिए, बोर्ड ने पुरस्कार मानदंड को “अमेरिकी जीवन के वातावरण को सर्वश्रेष्ठ तरीके से प्रस्तुत करने” से “अमेरिकी जीवन के संपूर्ण वातावरण को सर्वश्रेष्ठ तरीके से प्रस्तुत करने” में बदल दिया।
जॉन स्टीनबेक ने 1940 में अपने उपन्यास द ग्रेप्स ऑफ रैथ के लिए पुलित्जर जीता। जबकि आज इसे महान अमेरिकी उपन्यासों में से एक के रूप में सराहा जाता है। पर, उस समय इसकी आलोचना की गई और व्यापक रूप से प्रतिबंधित कर दिया गया। प्रेस और कई राजनेताओं ने स्टीनबेक पर समाजवादी या कम्युनिस्ट होने का आरोप लगाया और कुछ मामलों में किताब को जला भी दिया गया। उपन्यास के बारे में लोकप्रिय और आलोचनात्मक दोनों राय विभाजित थी। कई लोगों ने इसे शानदार माना, जबकि अन्य ने इसकी निंदा की। न्यूज़वीक के समीक्षक ने इसे “मूर्खतापूर्ण प्रचार, सतही अवलोकन, मुहावरे के उचित उपयोग के लिए लापरवाह, बेस्वाद, अश्लील और निंदनीय पुस्तक” कहा।
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पुलित्ज़र का भारत विरोधी चित्रण
इतना ही नहीं जम्मू-कश्मीर के तीन फोटो जर्नलिस्ट डार यासीन, मुख्तार खान और चन्नी आनंद को 2020 के पुलित्जर पुरस्कार से सम्मानित किया गया क्योंकि उन्होंने जम्मू कश्मीर पर भारतीय सेना की बर्बरता को दिखाने वाले फोटो खीचें उन्होंने अपने फोटो को पुलित्ज़र दिलाने के लिए भारत के संप्रभुता से समझौता तक किया। वैसे भी पुलित्जर पुरस्कार बोर्ड ने कश्मीर में भारत की वैधता पर सवाल उठा चुका है। घाटी को एक “विवादित क्षेत्र” कहा जिसकी “स्वतंत्रता” को भारत ने अनैतिक कब्ज़े से रद्द कर दिया है।
२०२१ के विजेता
भारत की ओर से दिवंगत दानिश सिद्दीकी ने अफगानिस्तान में अपनी दुखद मौत के कुछ महीने बाद मरणोपरांत अपना दूसरा पुलित्जर पुरस्कार जीता है। दिवंगत भारतीय फोटो जर्नलिस्ट को कोविड महामारी की दूसरी लहर पर उनकी तथाकथित संवेदनशील तस्वीरों के लिए प्रतिष्ठित पुरस्कार से सम्मानित किया गया। विजेताओं की सूची में द वाशिंगटन पोस्ट के अलावा भारतीय अदनान आबिदी, सना इरशाद मट्टू और अमित दवे भी शामिल थे।
पुलित्जर विजेता एक फोटो में पूर्व सैनिक जोस रोड्रिग्ज के दर्दनाक अंत की कहानी है जो फिदेल कास्त्रो के नेतृत्व वाली सेनाओं द्वारा मारे गए हजारों अन्य लोगों में से थे। इस फोटो में उनका अंतिम संस्कार किया जा रहा है क्योंकि उन्हें फायरिंग दस्ते द्वारा मौत की सजा सुनाई गई थी। इसी तरह के एक फोटो में अपने माँ के शव पर मृत्यु की प्रतीक्षा करता एक अबोध और कमज़ोर बालक है जिसे एक गिद्ध देख रहा है ताकि वो मेरे और वो उसे खा सके।
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कुल मिलकर कहने का सारांश यह है की पुलित्ज़र पुरस्कार अब सिर्फ उन्हें दिया जाने लगा है जो गिद्ध पत्रकारिता को बढ़ावा देते है। जो मानवीय संवेदनाओं को क्रूर तरीके से उछालते हैं। भारत के सन्दर्भ में भी कभी कश्मीर तो कभी covid के नाम पर ऐसे पुरस्कार बंटना यही दर्शाता है की पुलित्ज़र प्रोपगैंडा और पीड़ा का व्यापार करने वाला पुरस्कार है।